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संजय मिश्रा का नाम इस दौर के सबसे महत्वपूर्ण और जाने माने ऐक्टर्स में शुमार किया जाता है। उन्होंने पिछले एक दशक में बॉलीवुड की कई अलग-अलग फिल्मों में काम किया है और एक सक्सेसफुल ऐक्टर के तौर पर खुद की अलग पहचान बनाई। संजय मिश्रा ने फिल्मों में लीक से हटकर अलग-अलग तरह के कैरेक्टर रोल निभाकर अपनी खास पहचान बनाई है।
करीब दो दशकों से फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रहे संजय मिश्रा ने एक इंटरव्यू के दौरान अपने जीवन से जुड़ी बहुत सी बातें बताईं। इस दौरान उन्होंने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि वो 20 साल से फिल्मों में काम कर रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके आज भी किराए के घर में रहने को मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि इतनी फिल्में करने के बाद भी उनके पास एक घर खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं।
बड़ी वजह है मेरा एटिट्यूड
संजय मिश्रा ने कहा- 'पिछले काफी समय से सपोर्टिंग एक्टर्स की फीस कुछ बढ़ी जरूर है, लेकिन अब भी जितनी फीस की डिमांड हम करते हैं उतनी हमें मिल नहीं पाती। इसके एक बड़ी वजह मेरा एटिट्यूड भी है। दरअसल, मैं मेकर्स से पहले ही कह देता हूं कि पहले उनका (लीड एक्टर्स) का काम दिखाओ, इसके बाद ही मैं काम करूंगा।'
उनका कहना है कि जब आप लीड रोल में होते हैं, तो आप पर पैसा इन्वेस्ट किया जाता है। प्रोडक्शन टीम भी आपके साथ अलग तरीके से ट्रीट करती है। वहीं दूसरी ओर, सपोर्टिंग रोल वालों से कहा जाता है- आपकी वजह से फिल्म बिक रही है,लेकिन ज्यादा बड़ी वजह हीरो है। यही फर्क है एक लीड एक्टर और सपोर्टिंग एक्टर के काम में।
कम ही लोग जानते हैं कि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से ग्रैजुएट संजय की लाइफ में एक वक्त ऐसा भी आया था, जब उन्होंने एक्टिंग को बाए कह दिया था और एक छोटे से ढाबे पर जाकर नौकरी करने लगे थे। दरअसल, पिता के निधन के बाद संजय एक्टिंग छोड़कर ऋषिकेश चले गए थे, जहां वो एक ढाबे पर काम करने लगे।
100 से भी ज्यादा फिल्मों में किया काम
संजय 100 से भी ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके थे लेकिन बावजूद इसके उन्हें वो सफलता नहीं मिली, जो उन्हें मिलनी चाहिए थी। शायद इसी वजह से ढाबे पर संजय को किसी ने पहचाना भी नहीं। दिन बीतते गए और उनका वक्त ढाबे पर सब्जी बनाने, आमलेट बनाने में कटने लगा था। इस तरह काफी समय बीत गया।
शायद, अगर रोहित शेट्टी ना होते, तो संजय अपनी पूरी जिंदगी उस ढाबे पर काम करने में ही निकाल देते। रोहित और संजय फिल्म 'गोलमाल' में साथ काम कर चुके थे। वो अपनी अगली फिल्म 'ऑल द बेस्ट' पर काम कर रहे थे और उसी दौरान उन्हें संजय का ख्याल आया। संजय फिल्मों में दोबारा नहीं आना चाहते थे, लेकिन रोहित शेट्टी ने उन्हें मनाया और फिल्म में साइन किया। इसके बाद तो संजय ने बॉलीवुड छोड़ने की बात अपने मन से ही निकाल दी।
9 साल संघर्ष करने के बाद मिला काम
आपको बता दें, साल 1991 में संजय मुंबई आ गए। यहां 9 साल संघर्ष करने के बाद उन्हें फिल्म पहला ब्रेक मिला। टीवी पर ‘चाणक्य' सीरियल से शुरुआत करने वाले संजय ने पहले दिन की शूटिंग में 28 बार रिटेक दिया था। बाद में उन्होंने अपने दोस्त तिग्मांशु धूलिया के सीरियल 'हम बम्बई नहीं जाएंगे' में आर्ट डायरेक्टर के तौर पर काम करना शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद वो 'सॉरी मेरी लारी' में भी नजर आए।
संजय ने साल 1995 में आई हिंदी फिल्म 'ओह डार्लिंग ये है इंडिया' में काम किया। इस फिल्म में उन्होंने एक हार्मोनियम प्लेयर की छोटी सी भूमिका निभाई थी। उसके बाद उन्होंने फिल्म ‘सत्या’, ‘दिल से’, 'फंस गए रे ओबामा', ' मिस टनकपुर हाजिर हो', 'प्रेम रतन धन पायो', 'मेरठिया गैंगस्टर्स', 'दम लगाके हायेशा', गोलमाल और बादशाहो जैसी कई फिल्मों में काम किया है। अगर उनके अपकमिंग प्रोजेक्ट्स के बारे में बात करें तो संजय जल्द ही 'मंगल हो' और 'टोटल धमाल' जैसी फिल्मों में नजर आएंगे।