टीपू सुल्तान को हम एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जानते हैं, जिसने बहादुरी से अंग्रेजों का मुकाबला किया. इतिहास की पाठ्यपुस्तकें टीपू की उपलब्धियों से भरी हुई हैं - उनके कौशल से उनके क्षेत्र में प्रशासनिक परिवर्तन हुए और युद्ध के मैदान में दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए हथियारों में नवीन तकनीकों की शुरुआत हुई. लेकिन कम ही लोग टीपू - कट्टर सुल्तान के अंधेरे - जिहादी - पक्ष को जानते हैं.
प्रशंसित लेखक और सार्वजनिक बुद्धिजीवी, रजत सेठी द्वारा किए गए सावधानीपूर्वक शोध के बाद, मैसूर के टाइगर की कई अनदेखी धारियाँ सामने आई हैं.
फिल्म निर्माता संदीप सिंह ने कहा, "टीपू सुल्तान की असलियत जानकर मैं दंग रह गया. कहानी ने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए. यह वह सिनेमा है जिसमें मैं व्यक्तिगत रूप से विश्वास करता हूं. चाहे वह पीएम नरेंद्र मोदी हों, स्वातंत्र्यवीर सावरकर हों, अटल हों या बाल शिवाजी - मेरी फिल्में सच्चाई के लिए खड़ी होती हैं. मुझे लगता है कि लोग जानते थे कि टीपू सुल्तान कितना अत्याचारी था, लेकिन उसने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया. और यह वही है जो मैं 70 मिमी पर प्रदर्शित करना चाहता हूं. सच तो यह है कि वह सुल्तान कहलाने के लायक भी नहीं है. जैसा कि हमारे इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में दिखाया गया है, उसे बहादुर मानने के लिए मेरा ब्रेनवाश किया गया था. लेकिन उनके द्वेषपूर्ण पक्ष को कोई नहीं जानता. मैं आने वाली पीढ़ी के लिए उनके स्याह पक्ष को उजागर करना चाहता हूं."
डायरेक्टर पवन शर्मा ने कहा, "टीपू सुल्तान के बारे में हमें स्कूल में जो पढ़ाया जाता है, वह घोर गलत सूचना है. एक हिंदू के रूप में, एक धर्मांध मुस्लिम राजा के रूप में उनकी वास्तविकता जानने के लिए मैं पूरी तरह से हिल गया और मोहभंग हो गया. अपनी फिल्म के माध्यम से मैं एक क्रूर वास्तविकता दिखाने का साहस कर रहा हूं, जिसे सिर्फ हमारे लिए एक योद्धा नायक के रूप में दिखाने के लिए हेरफेर किया गया है. उसने अन्य धर्मों को मानने वाले लोगों को इस्लाम में धर्मांतरित करने के लिए मजबूर किया और मंदिरों और चर्चों को नष्ट कर दिया. टीपू सुल्तान की इस्लामिक कट्टरता उनके पिता हैदर अली खान की तुलना में बहुत खराब थी. वह उस दौर का हिटलर था."
लेखक रजत सेठी ने कहा, "यद्यपि इतिहास कई नायकों के प्रति निर्दयी रहा है, इसने शरारतपूर्ण ढंग से कई अन्य लोगों के अत्याचारों को नज़रअंदाज़ किया है. टीपू एक ऐसी ऐतिहासिक हस्ती हैं जिनकी प्रशंसा और प्रशंसा को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है, जबकि उनकी क्रूरताओं को हमारी पाठ्यपुस्तकों में बड़े करीने से छुपाया गया है. न केवल इतिहास बल्कि लोकप्रिय संस्कृति - फिल्मों, थिएटर आदि - ने भी व्यवस्थित रूप से टीपू के यथार्थवादी और संतुलित चित्रण की उपेक्षा की है. यह फिल्म उनकी कहानी में सुधार लाने का एक विनम्र प्रयास है."
इरोस इंटरनेशनल, रश्मी शर्मा फिल्म्स और संदीप सिंह द्वारा समर्थित टीपू पवन शर्मा द्वारा निर्देशित और रजत सेठी द्वारा शोध और विकसित किया जाएगा. यह फिल्म हिंदी, कन्नड़, तमिल, तेलुगू और मलयालम में रिलीज होगी.