रामानंद सागर कृत रामायण
रामायण तो हम सबने देखा है, अब चाहे हमारे माता-पिता ने उसको कैसेट पर देखा हो या दूरदर्शन पर या फिर हमने लॉकडाउन के दौरान सुबह उठकर टीवी पर, रामायण के फैन तो हम सब हो गए थें. इतने जीवंत तरीके से रामायण के हर किरदार को परदे पर उतारा गया था कि आज भी उन किरदारों को हम उसी रूप में देखते हैं और पूजते है. उन किरदारों में ऐसा कुछ अद्भुत था मानो वो स्वयं भगवान के अवतार हों. हम सब ने अपने माता पिता और दादा दादी से ये तो जरुर सुना होगा कि जब उस समय रामायण का एपिसोड टीवी पर आता था तब कोई भी इंसान रोड पर दिखाई नहीं देता था. हर किसी कि नज़रे बस टीवी पर भगवान के दर्शन के लिए टिके रहते थें.
कई प्रसिद्ध धारावाहिक के थे निर्देशक
80 के दशक से मशहुर इस रामायण जिसको सबसे ज्यादा बार देखे जाने वाले धारावाहिक का रिकॉर्ड प्राप्त है, जिसका नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्डस में शामिल है, क्या आपको ये बात पता है कि उसका निर्देशन किसने किया था? आपको बता दें कि हम सबके पसंदीदा रामायण का निर्देशन रामानंद सागर जी ने किया था. सिर्फ रामायण हीं नहीं रामानंद जी ने कई प्रसिद्ध धारावाहिक का निर्देशन किया था, जो आज भी बेहद लोकप्रिय है, जिनमे, विक्रम और बेताल, दादा-दादी की कहानियाँ, आलिफ लैला, जय गंगा मैया और कृष्णा जैसे धारावाहिक शामिल हैं. इन धारावाहिक के अलावा रामानंद जी ने ‘घुंघट’, ‘आरजू’, और ‘प्रेम बंधन’ जैसे कई सुपरहिट फिल्मों का भी निर्देशन किया था.
कई कहानियों और उपन्यास के लेखक
आपको बता दें कि रामानंद जी को बचपन से हीं किस्से और कहानियाँ लिखने का शौक था. मात्र चौदह साल की उम्र में उनकी एक कविता अखबार में छापीं गयी थी. इसके बाद उन्होंने कई कहानियां और उपन्यास लिखें थें.
क्या था असली नाम
29 दिसम्बर 1917 को जन्में रामानंद जी को उनके नाना ने चंद्रमौली नाम दिया था. रामानंद जी को उनके नाना-नानी ने हीं पाला था. आपको बता दें देश के विभाजन से पहले रामानंद जी लाहौर में एक लेखक और अभिनेता के रूप में भी काम किया करते थें. क्या आपको पता है रामानंद का असली नाम रामानंद सागर नहीं बल्कि रामानंद चोपड़ा था. आपको बता दें कि रामानंद जी ने अपने करियर की शुरुआत पृथ्वीराज थिएटर में एक स्टेज मैनेजेर के रूप में किया था.
बीमारी के कारण हुआ था निधन
आपको बता दें कि रामानंद जी बहुत समय तक टीवी जैसी बीमारी से लड़ रहे थे, उस दौरन जब उनका इलाज चल रहा था तब उन्होंने डायरी लिखनी शुरू की थी. जिसको उन्होंने ‘डायरी पेशेंट की’ नाम दिया था. जब ये डायरी अखबार में छपने के लिए गयी तब अख़बार के संपादक भी उसको पढ़ कर हैरान रह गये थें, उनकी लिखी हुई बातों ने संपादक के दिल को छू लिया था. 12 दिसम्बर 2005 को रामानंद जी ने दुनिया को अलविदा कहा.
परिवार ने किया याद
उनके जाने के बाद उनके परिवार ने उनके नाम पर एक फाउंडेशन बनाया, जिसे रामानंद फाउंडेशन कहते हैं, और उनकी पुण्यतिथि पर उनके परिवार ने उनको श्रद्धांजलि दी. इस मौके पर घर के सभी सदस्य मौजूद थें, परिवार के लोगो ने साथ मिलकर पूजा अर्चना किया. धुप और दीप जलाकर उन्हें याद किया. रामानंद जी को याद करते हुए, परिवार वालों ने उनकी तस्वीर के साथ-साथ उनकी द्वारा लिखी हुई किताब ‘ऐन एपिक लाइफ’ को भी रखा था. तस्वीर के सामने पसंदीदा व्यंजन और मिठाईयां भी रखी गयी थीं. सभी ने एक एक करके पुष्प अर्पित कर आशीर्वाद लिया. इस मौके पर घर के सभी छोटे से बड़े लोग शामिल थें. सभी ने पुष्प और आरती के साथ सच्चे और अच्छे मन से उनको याद किया.
आयुषी सिन्हा