फिल्म रिव्यु 'सजनी शिंदे का वायरल वीडियो: कमजोर पटकथा के चलते अति बेहतरीन फिल्म बनते बनते रह गई

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By Shanti Swaroop Tripathi
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फिल्म रिव्यु 'सजनी शिंदे का वायरल वीडियो: कमजोर पटकथा के चलते अति बेहतरीन फिल्म बनते बनते रह गई

रेटिंग -  3 स्टार
निर्माता: माॅडाक फिल्म
लेखक: निखिल मुसले, परिंदा जोशी, अनु सिंह चैधरी, क्षितिज पटवर्धन
निर्देशक: निखिल मुसले
कलाकार: निमरत कौर, राधिका मदान, सुबोध भावे, भाग्यश्री,चिंमय मडलेकर, श्रुति व्यास, सुमित व्यास, आशुतोष गायकवाड़, रश्मी अगड़ेकर व अन्य.
अवधि: एक घंटा 54 मिनट

गुजराती फिल्म 'रॉंग साइड राजू" के लिए सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म इन गुजराती' का आवार्डजीत चुके निखिल मुसले ने 2019 में जब हिंदी फिल्म ''मेड इन चाइना" का निर्देशन किया,तो इस फिल्म ने बाॅक्स ऑफिस पर पानी नही मांगा था और अब वह बतौर सह लेखक व निर्देशक फिल्म ''सजनी शिंदे का वायरल वीडियो" लेकर आए हैं, जिसकी कहानी का आधार ही नकली है. मगर यह फिल्म सोशल मीडिया की त्रासदी की चर्चा करते हुए कुछ अहम सवाल भी उठाती है.

कहानी:

फिल्म की कहानी पुणे के एक स्कूल की शिक्षक सजनी शिंदे (राधिका मदान) के इर्द-गिर्द घूमती है. वह एक पैशिनेट फिजिक्स की टीचर,प्यारी मंगेतर और परफेक्ट बेटी बनना चाहती है. कुछ हद तक उसमें यह सब है. मगर एक रात स्कूल की सिंगापुर ट्रिप में वह अपना जन्मदिन मनाते हुए पार्टी करती है. उसकी एक सहेली उसका शराब पीने व नृत्य करने का अश्लील विडियो बनाती है,जो कि वायरल हो जाता है. जिसके चलते उसकी सर्वश्रेष्ठ शिक्षक,अच्छी बेटी और प्यारी मंगेतर की इमेज पर धब्बा लग जाता है. स्कूल की सख्त और अनुशासन प्रिय प्रिंसिपल कल्याणी (भाग्यश्री) पैंरेंट्स के दबाव में आकर सजनी को स्कूल से निकाल देती है. उसका मंगेतर सिद्धांत (सोहम मजूमदार) उससे आंखें फेर लेता है. सजनी के पिता व प्रख्यात नाटककार सूर्य कांत शिंदे (सुबोध भावे) और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए वह कलंक बन जाती है. मगर उसके भाई आकाश के लिए वह आज भी अच्छी दीदी है.

वायरल हुए वीडियो की शर्मिंदगी से त्रस्त होकर सजनी फेसबुक पर एक जज्बाती पोस्ट लिखकर गायब हो जाती है. उस पोस्ट में वह अपने पिता और मंगेतर पर इल्जाम लगाती है. गायब हुई सजनी के केस की तहकीकात करने के लिए बेला बारूद (निमरत कौर) व इंस्पेक्टर राम (चिन्मय मंडलेकर ) को नियुक्त किया जाता है. बेला जैसे -जैसे केस की गहराई में जाती है. शक की सुई परिवार से लेकर मंगेतर तक कई लोगों पर घूमती है. कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, सजनी के परिवार के कई राज सामने आते हैं. मंगेतर सिद्धांत का भी एक अलग चेहरा सामने आता है. पर अहम सवाल है कि क्या सजनी ने आत्महत्या कर लिया है अथवा किसी ने साजिश रचकर उसकी हत्या की? इसके लिए फिल्म देखना पड़ेगा.

समीक्षा:

फिल्मकार निखिल मुसले ने सोशल मीडिया और इंटरनेट के जमाने में तेजी से वायरल होते वीडियो का अच्छा विषय उठाया है. इस तरह के विषय पर ज्यादा से ज्यादा अच्छी फिल्में बननी चाहिए,लेकिन अफसोस निखिल मुसले यहां पर चूक गए हंै. वह कहीं न कहीं अति दकियानूसी सोच को बढ़ावा देते हुए नजर आते हैं. इंटरनेट व आधुनिकता के जमाने में लोग काफी आगे बढ़ गए है. वर्तमान समय में फिल्म में सजनी का जिस तरह का वीडियो वायरल हुआ है,उसकी वजह से किसी को भी आत्महत्या करने जैसा कदम उठाने की जरुरत नही रह गयी है. जिसकी बेटी गायब हो गयी है,पता नही कि वह जिंदा है या मर गयी,उस पिता की जीवन शैली पर कोई असर नजर नही आता. वह तो अपने रंगमंच पर नाटक करने में व्यस्त है. वह तो अपने होने वाले दामाद के खिलाफ और सजनी का प्रेमी अपने होने वाले ससुराल के खिलाफ आरोप मढ़ने में व्यस्त है. यह बात जरुर खटकती है. मानवीय भावनाओं व संवेदनाओ का भी अभाव है. सजनी शिंदे के किरदार को विस्तार देते हुए उसके मानवीय प़क्षांे को उभारने की जरुरत थी,जिसे फिल्मकार नही कर पाए.  इस तरह की कुछ मूल त्रुटियों के बावजूद वह क्लायमेक्स तक तनाव व रहस्य को बरकरार रखने में कामयाब रहते हैं. सोशल मीडिया के मकड़जाल, पारिवारिक विषमताओं, सोशल प्रेशर, महिलाओं के प्रति मिसोजनिस्ट सोच, जैसे पहलुओं से इसे परतदार बनाया है. फिल्म से यह बात उभर कर आती है कि इंसान की छोटी सी गलती भी किस कदर परेशानियां पैदा कर सकती है. इतना ही नही फिल्मकार इस माध्यम से यह संदेश देने में भी विफल रहे हैं कि आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है,जिंदगी बहुत ही खूबसूरत है. गलतियां इंसान से ही होती है, इसका मतलब यह नहीं कि समाज के तानों के डर से अपनी खूबसूरत जिंदगी को खत्म कर दिया जाए. पटकथा में काफी गड़बड़ियां हैं. फिल्म का क्लामेक्स बहुत कमजोर है और लगता है कि फिल्मकार खुद उब गए हैं और सोचते हंै कि जल्दी से इसे खत्म किया जाए.

फिल्म में निमरत कौर के कुछ चुटीले संवाद जरुर अच्छे बन पड़े है. मसलन-'वुमन कार्ड कोई आधार कार्ड नहीं, जो हर जगह चल जाए', औरत को अपने हक को हर बार जस्टिफाय क्यों करना पड़ता है. फिल्म के कुछ संवाद मराठी में हैं,पर सब टाइटल्स अंग्रेजी में दिए गए हैं. अहम सवाल यह है कि ऐसी फिल्म देखने सिनेमाघरों तक क्या लोग आएंगे ? क्योकि इसका ठीक से प्रचार नही किया गया. फिल्म के कलाकारों ने फिल्म की पीआर टीम की सलाह पर  पत्रकारों से दूरी बनाए रखी,पर प्रेस शो खत्म होने पर पत्रकारों से हेलो हाय कर निमरत कौर व राधिका मदान ने अपने कर्तब्य की इतिश्री कर ली.

अभिनय:

"लाॅंच बाक्स" जैसी फिल्म में अपने अभिनय का उत्कृष्ट प्रदर्शन  कर चुकी निमरत कौर इस फिल्म में बेला बारूद के किरदार में उस तरह का जलवा नही दिखा पायी. माना कि सख्त मिजाज और साफगोई पुलिस अफसर की भूमिका में उनकी बॉडी लैंग्वेज और डायलॉग डिलिवरी मजेदार है. राधिका मदान अपने किरदार सजनी के दर्द, संघर्ष और विडंबना को खूबसूरती से पेश करने में सफल रही हैं. सजनी शिंदे के मंगेतर सिद्धांत के किरदार में सोहम मजूमदार कलाबाजी कर गए है. उनके किरदार में कई शेड्स हैं. स्कूल प्रिंसिपल कल्याणी के किरदार में भाग्यश्री के अभिनय का नया आयाम उभर कर आता है. सजनी के पिता व रंगकर्मी सूर्यकांत के किरदार में  सुबोध भावे अपना प्रभाव छोड़ते हैं. वकील के छोटे किरदार को निभाने की जरुरत सुमित व्यास को क्यो पड़ी,यह तो वही जाने. लगता है उनका अहम उनके कैरियर करे नुकसान पहुॅचा रहा है.

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