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"सैम बहादुर" फिल्म के रियल हीरो फिल्ड मार्शल जनरल माणेकशॉ के जीवन में बड़े रोचक प्रसंग रहे हैं!

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By Sharad Rai
"सैम बहादुर" फिल्म के रियल हीरो फिल्ड मार्शल जनरल माणेकशॉ के जीवन में बड़े रोचक प्रसंग रहे हैं!
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भारतीय सेना के पहले व एक मात्र  'फिल्ड मार्शल' जनरल माणेकशॉ के जीवन पर  मेघना गुलजार ने एक फिल्म बनाया है। दिवाली के मौके पर फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ है, फिल्म का  नाम है 'सैम बहादुर'। फिल्म के पर्दे पर असली जिंदगी के हीरो सैम का किरदार निभाया है अभिनेता  विक्की कौशल ने। फिल्म के निर्माता हैं रोनी स्क्रूवाला। यह  फिल्म पूरे भारत मे 1 दिसंबर 2023 को रिलीज हो रही है।

जनरल माणेकशॉ देश की आज़ादी के पहले  ब्रिटिश सेना में थे। उनके साथ याहिया खान भी थे। याहिया खान माणेकशॉ से नीचे थे।यह वही याहिया खान थे जो बंगलादेश की आज़ादी के समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे। माणेकशॉ के पास एक मोटर साइकिल थी जो याहिया खान को बहुत पसंद थी। शॉ साहब ने कहा 1400 में खरीदा है, पैसा दे दो ले जाओ। याहिया खान ने कहा उनके पास एक हज़ार ही हैं। याहिया खान ने  मोटर साइकिल  ले लिया पर पैसे नही दिया। हज़ार रुपए भी नहीं दिया। जब बंगलादेश आज़ाद हुआ सैम बहादुर ने मजाक लेते हुए कहा था-  मोटर साइकिल   के हज़ार रुपए नहीं दिया, आधा पाकिस्तान दे दिया!

1971 मे पूर्वी पाकिस्तान (अब बंगलादेश) की हालत बहुत खराब थी। वहां मुक्तिवाहिनी सेना का आंदोलन चल रहा था। वहां के लोग त्रस्त होकर पाकिस्तान से आज़ाद होना चाहते थे। वहां पाकिस्तानी सरकार का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। लोग वहां से  भागकर भारत मे शरण ले रहे थे। लाखों शरणार्थी भारत मे भाग भागकर आ चुके थे। उस समय देश की प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी थी, जिन्होंने मार्च 1971 में एक कैविनेट मीटिंग बुलाया। इस मीटिंग में सेना प्रमुख जनरल मानेकशॉ भी थे। इंदिरा जी ने कहा भारत को पूर्वी पाकिस्तान में हस्तक्षेप करना पड़ेगा। इंदिरा जी अप्रैल महीने में ही पूर्वी पाकिस्तान में सैनिक कार्यवाही करना चाहती थी। उन्होंने मानेकशॉ को पूछा कि युद्ध  करना है। सेना प्रमुख ने बिना संकोच मना कर दिया कि वे ऐसा नहीं कर सकते। सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं है। इंदिरा जी नाराज हो गयी। वह बड़ी शख़्त प्रधान मंत्री थी, उन्हें कोई ऐसे कैसे बोल सकता था। मीटिंग बर्खास्त हो गयी और वापस शाम को चार बजे फिर मीटिंग बुलायी गयी। इसबीच इंदिरा जी ने मानेकशॉ से अकेले में मुलाकात किया। मानेकशॉ ने उनको दोटूक जवाब दिया। बोले- मैडम प्राइम मिनिस्टर, मेरा इस्तीफा मानसिक, शारीरिक या हेल्थ इशू किस रूप में चाहती हैं? सेना तैयार नही है हम हर जाएंगे। मेरा जवाब वही रहेगा। उन्होंने इंदिरा जी से कहा कि सन 1962 की लड़ाईमें उनके पिताजी (पंडित जवाहरलाल नेहरू) के समय वह  कमांडिंग इन चीफ होते तो भी यही कहते। उनके समय कोई उनसे साफ कहने की हिम्मत किया होता तो देश की इतनी बड़ी हार नहीं होती। इतने स्पष्टवादी थे माणेक शॉ। यह सब लेखक श्रीनाथ राघवन की किताब "1971:ए ग्लोबल हिस्ट्री आफ क्रिएशन आफ बंगलादेश'' में लिखा है।

माणेकशॉ ने इंदिरा जी को इनकार कर दिया पर चुप नहीं बैठे।वह  सेना के विश्वासपात्र अधिकारियों- मेजर जनरल जैकब, लेफ्टिनेंट जनरल शरद सिंह, मेजर जनरल गिल आदि से सम्पर्क किये और प्लान किया जुलाई में आक्रमण करने की। उन्हें तैयारी के लिए तीन महीने चाहिए था। प्लान बना कि  पहले पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान को आनेवाली सेना को रोका जाए, उनके सैनिक अड्डे चटगांव, खुलन जैसों पर कब्जा किया जाए और पाकिस्तान तथा पूर्वी पाकिस्तान के रास्ते मे, बीच मे पड़ने वाले ढाका  से 83 किलोमीटर दूर टाँगेल जानेवाले पूल को उड़ा दिया जाए।लेकिन पूल उड़ाने के बाद दिक्कत यह थी कि भारत के सैनिकों को भी उसी रास्ते से जाना था। उधर पाकिस्तानी सेना को भारत की गतिविधि की भनक लग गयी थी और वे बड़ी तेजी से पूर्वी पाकिस्तान पर मुस्तैदी कस दिए थे। योजना बनी 5 दिसंबर को आक्रमण करने की। उस समय भारत के पूर्वी कमान के कमांडर थे जगजीत सिंह अरोड़ा। माणेकशॉ ने  संबंधित सभी सैन्य अधिकारियों से संपर्क कर योजना को एक दिन पहले 4 दिसंबर को अटैक की प्लानिंग किया, किंतु उससे एक दिन पहले 3 दिसंबर को ही पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। पाकिस्तान ने भारत के पठानकोट, अम्बाला, अमृतसर, श्रीनगर सैन्य ठिकानों पर हमला किया। पूर्वी कमान के सेनाप्रमुख जगजीत सिंह अरोड़ा से सैम बहादुर ने विमर्श करके रातों रात 52 लड़ाई के जहाजो से पैराशूट में अपने सैनिकों को वहां उतारा। यह सबसे बड़ा पैराड्राप ऑपरेशन था। चारो तरफ पैराशूट ही दिखाई पड़ रहे थे।  3 दिसंबर से 16 दिसंबर तक लड़ाई चली। पूर्वी पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल नियाजी थे, उनको लगा कि भारतीय सेना उनके छक्के छुड़ा रही है। पाकिस्तान और अमेरिका में उनदिनों खूब जमती थी। पाकिस्तान के प्रधान मंत्री भुट्टो अमेरिका भागे। वह संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा कौंसिल में मामला उठाए। वहां चार दिन तक मीटिंग चली। भुट्टो गुस्से में वहां पेपर फाड़ कर निकल दिए यह कहते हुए कि यहां आने का फायदा क्या है? इसबीच पूर्वी पाकिस्तान पूरी तरह भारतीय सैनिकों की जकड़ में आचुका था। 16 दिसंबर को मेजर जनरल जैकब, जगजीत सिंह अरोड़ा जैसे वरिष्ठ भारतीय सेना अधिकारी ढाका पहुचे। पूर्वी पाकिस्तान के जनरल नियाजी को जैकब ने तलवार देकर आत्म समर्पण करने के लिए कहा। नियाजी ने अपनी पिस्तौल रखकर 90 हज़ार सैनिकों के साथ भारत को आत्म समर्पण किया था। जनरल मानेकशॉ ने उनसे आत्म समर्पण के दस्तावेज पर साइन करवाने का आदेश दिया...और, पूर्वी पाकिस्तान हमेशा के लिए आजाद बंगलादेश बन गया।

भारत सरकार ने सैम माणेकशॉ (जवानों के लिए वह 'सैम बहादुर' थे) को उनकी सूझबूझ, रण कौशल और राष्ट्र का सम्मान बढ़ाने के लिए फिल्डमार्शल के सम्मान से अलंकृत किया। वह भारत के पहले फिल्ड मार्शल हैं। उनकी ख्याति इतनी रही कि उनसे प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी तक डरती थी। एक बार इंदिरा गांधी को परेशान देखकर उनसे मानेकशॉ ने पूछा था कि क्या परेशानी है?  इंदिरा जी ने कहा- आपसे डरती हूं तब उन्होंने कहा भी था कि राजनीति में उन्हें कोई रुचि नहीं है, अगर उनकी सेना में कोई अवरोध नहीं डाला जाता है तो। ऐसे थे भारत के फिल्ड मार्शल सैम बहादुर। पर्दे की कहानी में क्या क्या है दर्शक 1 दिसंबर को देख सकेंगे।फिल्म में इंदिरा गांधी का रोल किया है फातिमा सना शेख ने, सैम बहादुर की पत्नी(सिलू) की भूमिका में हैं सान्या मल्होत्रा और सैम बहादुर बने हैं विक्की कौशल। 

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