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'-शरदराय
पत्रकारिता से लेखन के क्षेत्र में कदम रहने वाले जावेद अहमद ने 2001 में मुनमुन सेन की फ़िल्म ‘अंधेरी रातों में’ की कहानी लिखी, फिर 2003 में अरशद वारसी की फ़िल्म ‘वैसा भी होता है’ की पटकथा लिखा, लेकिन फिल्मों में सक्रिय न हो कर टीवी चैनल के प्रोमो और विज्ञापन फिल्में लिखने में सक्रिय रहे, उसके पश्चात अभिनेता अन्नू कपूर का मशहूर शो ‘गोल्डन एरा विथ अन्नू कपूर’ लिखा और पांच सालों तक ‘सुहाना सफर विथ अन्नू कपूर’ जैसा चर्चित शो लिखा। फिल्मों से लंबे अरसे तक दूर रहने के बाद जावेद तब चर्चे में आये जब उन्हें संजय लीला भंसाली की ड्रीम प्रोजेक्ट ‘हीरा मंडी’ के संवाद और पटकथा लिखने का मौका मिला।
जावेद ने बताया- “2011 में मेरी मुलाकात मोइन बेग से हुई, जिनकी कहानी पर संजय लीला भंसाली ‘हीरा मंडी’ बनाना चाहते थे, लेकिन मोइन को फ़िल्म लेखन की कला का ज्ञान नही था, और उन्हें कोई ऐसा पटकथा और संवाद लिखने वाला नहीं मिल रहा था, जिसकी उन्हें तलाश थी, मैंने तकरीबन बत्तीस सिन लिखा, जो भंसाली को पसंद तो आ गया। परंतु किसी कारण से मैंने फ़िल्म लिखने से मना कर दिया। फिर से ‘हीरा मंडी' के लिए लेखक की तलाश शुरू हुई, लेकिन बात नही बनी और 2018 में एक दिन अचनाक मोईन बेग का फोन आया कि तुम मिलो संजय तुमसे मिलना चाहते है, मुलाकात हुई, साइनिंग अमाउंट मिला और मैंने फ़िल्म के संवाद और डायलॉग का फर्स्ट ड्राफ्ट लिख कर दे दिया, परंतु तभी संजय सलमान खान के साथ ‘इंशाअल्लाह’ बनाने की तैयारी में जुड़ गए, ‘इंशाअल्लाह’ विवाद में फंस गई, और संजय ने तुरंतआलिया भट्ट के साथ ‘गंगूबाई काठियावाड़ ‘ शुरू कर दिया। ‘हीरा मंडी’ फिर एक बार अधर में पढ गयी, और जैसे ही ‘गंगूबाई काठियावाड़ ‘ पूरी हुई, संजय लीला भंसाली ने ‘हीरा मंडी’ पर वेब सीरीज बनाने की घोषणा कर दिया। लेकिन वेब सीरीज के साथ किसी कारणवश मैं नही जुड़ सका”
जावेद ने इन दिनों शौर्य म्यूजिक के लिए ‘अल्पविराम’, मिनिलाइव के लिए वेब सीरीज ‘प्राइमरी पाठशाला’ लिखा है जिसका निर्माण शुरू हो चुका है। और इन दिनों जावेद राजीव रुईया की ‘सामुहिक विवाह’, जुडो पर निर्देशक अमिताभा सिंह के लिए एक बायोपिक फ़िल्म ‘जुडो क्वीन’, निर्देशक श्याम धनोरकर की ‘शाहरुख सिद्दीकी बी.ए. एलएलबी’, निमिश धागत की ‘रश्क-ए-क़मर’ और एक तमिल फिल्म ‘लव यू थलाईवा’ लिख रहे है।
जावेद का कहना है, “सिनेमा का सफर अभी शुरू नही हुआ था कि लॉक डाउन लग गया, सालों पहले जो फिल्में लिखीं, वो दोस्ती खाते में लिख दी थी, सिनेमा को कैरियर नही बनाना चाहता था, पर ‘हीरा मंडी’ लिखने के समय संजय लीला भंसाली ने बहुत प्रोत्साहित किया कि तुम्हें फ़िल्म लिखना चाहिए, अपनी प्रतिभा को सामने लाना चाहिए, कहाँ रेडियो और शो लिख कर वक़्त जाया कर रहे हो? और जब फ़िल्म लिखने की मानसिक रूप से तैयारी शुरू किया, लॉक डाउन ने ब्रेक लगा दिया, फिर भी मैं खुद को भाग्यशाली समझता हूँ कि बहुत कम समय मे मेरे पास कई फिल्में है, और हर फिल्म अपने आप मे एक अलग रंग लिए हुए है जो दर्शकों के दिलों को अपने रंग में रंग लेगी”
फिल्मों में संघर्ष के बारे में जावेद बताते है, “यहां प्रतिभा नही जुगाड़ और चापलूसी की कद्र है, जो सच मे काबिल लोग है, वो गलत हाथों में खेल रहे है,काम करने वाले प्रोड्यूसरों तक पहुँच नही पाते,बिना पैसों के लोग प्रोड्यूसर बने घूम रहे है, हालात ये है कि अब प्रोड्यूसर लेखकों से कहते है कि अपनी स्क्रिप्ट किसी स्टार से हाँ करा कर लाओ, किसी ओटीटी या स्टूडियो से अप्रूव करा कर लाओ, उनको कहानी से कोई मतलब नही, बस एक्टर हाँ कर दे, या कहीं अप्रूवल मिल जाए तो फ़िल्म पर पैसा लगाएंगे। अब लेखक अपना काम करे या स्टार और अप्रूवल का जुगाड़ ढूंढे? ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।”