फिल्म निर्माता डॉ. जगदीश वाघेला: मैंने अपनी फिल्म में और सामाजिक सोच के लिए भी हमेशा ही LGBTQIA+ का विरोध किया है By Sharad Rai 27 Apr 2023 | एडिट 27 Apr 2023 12:44 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर इनदिनों एकबार फिर न्यायालयों में LGBT (द्वि लिंगी सेक्स-कर्मी ) समुदाय के लोगों के मुकदमें और सेम- सेक्स विवाह की चर्चा चल पड़ी है। दुनिया भर में कुछ लोग इस टॉपिक को उत्सव की तरह मनाने लगे हैं। भारत मे भी इसको बहुत प्रमुखता से कवरेज मिल रही है। बॉलीवुड के लोगों में भी यह शौक बढ़ता जा रहा है। LGBTQIA+ का विस्तृत अर्थ है- लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांस, क्वेर, इंटरसेक्स ऐंड एसेक्सुअल+ यानी और भी जुड़ सकते हैं। इस वर्ग के लोग एक झंडे के नीचे आकर अपनी मांग को लेकर एक बड़ा आंदोलन अदालतों में चला रहे हैं। भारत मे इसकी मान्यता और विरोध को लेकर (कानून की धारा 377) पर खूब बहस चली है। एक हदतक मान्यता भी मिल चुकी है- सेक्स की इस 'परवर्टेड' व्यवस्था को। मुम्बई के मशहूर गुप्त रोग विशेषज्ञ डॉ. जगदीश वाघेला इस सेक्सुअल- कर्म ( जो कुछ लोगों के लिए आनंद है) को एक बीमारी मानते हैं। वह 'lgbtqia' के सवालों से जुड़ी विस्तृत चर्चा वाली एक फीचर फिल्म का निर्माण भी कर चुके हैं और जनहित याचिका के तहत सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश तक जाकर अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं। उनसे मुलाकात होती है उनके भायंदर (पश्चिम) स्थित उनके क्लिनिक पर। पेश है डॉ. वाघेला से हुई बातचीत का अंश- " मैं सेक्स के इस रूप को जिसके लिए इसके शौकीन अदालतों से मान्यता प्राप्त कराने की लड़ाई लड़ रहे हैं, का विरोध करता हूँ।" कहते हैं डॉ.जगदीश वाघेला। "मैं इसको एक ऐसी बीमारी मानता हूं जिसको इलाज से ठीक किया जा सकता है। 40 सालों से मैं यौन- रोगियों का इलाज कर रहा हूँ और बहुतों को ठीक कर चुका हूं। होमो सेक्सुअलिटी हो या लेस्बियन सेक्सुअलिटी हो, यह बचपन से बुरी आदतों का शिकार बना दिए जाने से विकृत रूप ले लेती है। तब व्यक्ति पुरुष हो या स्त्री, उसीमे आनंद का अनुभव करने लगता है।" डॉ. वाघेला ने करीब 3 साल पहले एक फिल्म बनाया था- "द इंटरनेशनल प्रॉब्लम"। " मैंने अपनी इस फीचर फिल्म में सेक्स से जुड़ी इन तमाम समस्याओं को उठाया है।कैसे यह बीमारी पनपती है, कैसे छिपाई जाती है और क्यों यह आदत का रूप बन जाती है कि इन आदतों का शिकार अपना पार्टनर सौचालयों तक मे ढूढने लगता है। " बताते हैं वह। फिल्म 'द इंटरनेशनल प्रॉब्लम' में मुम्बई के कई मशहूर सेक्सोलोजिस्ट- डॉक्टरों ने काम किया था। फिल्म मेडिकल छात्रों द्वारा पूछे जाने वाले सवालों और डॉक्टर्स के बीच के कथानक पर बनी है। "हमने इस फिल्म में इन सभी सवालों को उठाया है।'' वह कहते हैं-"सोचिए कलको दो आदमी: पुरुष- पुरुष या महिला-महिला शादी करके हमारे पड़ोस में रहने आजाएँगे तो क्या होगा हमारे समाज का, कल्चर का? अभी तो हम लव-जिहाद से डरे हैं, तब क्या करेंगे जब यह कौम भारी पड़ जाएगी।समस्या का हल कानून बनाना नहीं, इस बीमारी के मूल को समझना है।" "खबर थी कि आप इस समस्या और धारा 377 के सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका भी दर्ज कराए थे ?' "जी हां, सामाजिक दायित्व के नाते मैंने ऐसा किया था। मेरे अलावा 11 और लोग हैं जो इसको मान्यता दिए जाने या संवैधानिक स्वीकृति दिए जाने के खिलाफ अपनी शिकायत लेकर कोर्ट में गए थे। हमें बुलाकर सुप्रीम कोर्ट के जज माननीय श्री दीपक मिश्रा ने हमें सुना भी है। मेरा कहना यही था कि किसी भी समस्या के मूल में जाकर विचार करना ज़रूरी है। मैं एक डॉक्टर के नाते इसे बीमारी मानता हूं। इसको इलाज किया जा सकता है तो फिर क्यों समाज की व्यवस्था को बदला जाए? माननीय जज ने हमको तथा दूसरों को ध्यान से सुना। मुझे इसबात की प्रसन्नता है कि मैंने LGBTQIA+ को लेकर अपनी फिल्म के द्वारा और याचिका लगाकर अपने दायित्व को निभाने की कोशिश किया है।" '' क्या भविष्य में फिर ऐसी कोई फिल्म बनाने की प्लानिंग रखते हैं?" "एक नए सब्जेक्ट पर काम चल रहा है...एक अलग ही सामाजिक समस्या है जो LGPT से कम घातक नहीं है।अभी इस टॉपिक पर चर्चा नहीं करेंगे।' #LGBTQIA हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article