/mayapuri/media/post_banners/8fa7e7d2070185c013fee6224d8670ff2b087f4b6f90184194e5d81f8b489a24.jpg)
हिंदी फिल्मों को 'दिल आज शायर है...' जैसे मशहूर और बेहतरीन गाने देने वाले मशहूर गीतकार और पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित कवि गोपालदास सक्सेना 'नीरज' का आज जन्मदिन हैं. उन्होंने 93 वर्ष की उम्र में 19 July 2018 में इस दुनिया को अलविदा कहा था.
नीरज ने एक बार किसी इंटरव्यू में कहा था,"अगर दुनिया से रुखसती के वक्त आपके गीत और कविताएं लोगों की जबान और दिल में हों तो यही आपकी सबसे बड़ी पहचान होगी. इसकी ख्वाहिश हर फनकार को होती है."
उनकी बेहद लोकप्रिय रचनाओं में "कारवां गुजर गया..." रही झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से, और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे. कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे! नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई, पांव जब तलक उठें कि ज़िन्दगी फिसल गई...
कविता को नई बुलंदियों तक पहुंचाया
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरवाली गांव में 4 जनवरी 1925 को जन्मे गोपालदास नीरज को हिंदी के उन कवियों में शुमार किया जाता है जिन्होंने मंच पर कविता को नयी बुलंदियों तक पहुंचाया. वे पहले शख्स हैं जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया. कवि गोपालदास को 1991 में पद्मश्री और 2007 में पद्मभूषण पुरस्कार प्रदान किया गया. 1994 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने 'यश भारती पुरस्कार' प्रदान किया. गोपाल दास नीरज को विश्व उर्दू पुरस्कार से भी नवाजा गया था.
आरोप लगने पर छोड़ दी नौकरी
शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की. लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की. वहां से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डीएवी कॉलेज में क्लर्की की. नीरज ने कुछ समय के लिए मेरठ कॉलेज, मेरठ में हिंदी प्रवक्ता के पद पर भी काम किया. कॉलेज प्रशासन द्वारा उन पर कक्षाएं न लेने और रोमांस करने के आरोप लगाये गये जिससे गुस्सा होकर नीरज ने स्वयं ही नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिंदी विभाग के प्रोफेसर नियुक्त हुए. इस दौरान ही उन्होंने अलीगढ़ को अपना ठिकाना बनाया और मैरिस रोड जनकपुरी में आवास बनाकर रहने लगे.
उनके गीतों की वजह से कामयाब हुईं फिल्में
कवि सम्मेलनों में बढ़ती नीरज की लोकप्रियता ने फिल्म जगत का ध्यान खींचा. उन्हें फिल्मी गीत लिखने के निमंत्रण मिले जिन्हें उन्होंने खुशी से स्वीकार किया. फिल्मों में लिखे उनके गीत बेहद लोकप्रिय हुए. इनमें "देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा" शामिल है. इसके बाद उन्होंने मुंबई को अपना ठिकाना बनाया और यहीं रहकर फिल्मों के लिए गीत लिखने लगे. उनके गीतों की वजह से बॉलीवुड की कई फिल्में सुपरहिट साबित हुईं. कुछ सालों बाद उनका जी मुंबई से कुछ सालों में ही उचट गया. इसके बाद वो सपनों की मायानगरी को अलविदा कह वापस अलीगढ़ आ गए.
उनके लिखे गाने ऐसे अमर हुए कि आज भी लोग उनके गाने को गुनगुनाते हुए दिख जाएंगे. उनके लिखे हुए 'लिखे जो खत तुझे...', 'आज मदहोश हुआ जाए...', 'ए भाई जरा देखके चलो...', 'दिल आज शायर है, ग़म आज नगमा है...', 'शोखियों में घोला जाये, फूलों का शबाब..' जैसे तमाम गानों को लिखकर अमर हो गये.
उनकी प्रमुख कृतियां हैं
'दर्द दिया है' (1956), 'आसावरी' (1963), 'मुक्तकी' (1958), 'कारवां गुजर गया' (1964), 'लिख-लिख भेजत पाती' (पत्र संकलन), पंत-कला, काव्य और दर्शन (आलोचना) शामिल हैं. साहित्य की दुनिया ही नहीं बल्कि हिन्दी फिल्मों में भी उनके गीतों ने खूब धूम मचाई. 1970 के दशक में लगातार तीन वर्षों तक उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.