बर्थडे स्पेशल: फिल्मों में आने से पहले ट्रक ड्राइवर थे जैकी श्रॉफ, जाने कैसे बदली किस्मत By Sulena Majumdar Arora 31 Jan 2018 | एडिट 31 Jan 2018 23:00 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर 80 के दशक में जब ज्यादातर नीरस फिल्मों ने हिंदी सिनेमा के दर्शकों को बोर कर डाला था, तब एक फिल्म ने अपनी ताज़गीपूर्ण कहानी और फ्रेश कलाकारों के रंगीन तेवर से बॉलीवुड में जान फूंक दी थी, वो फिल्म थी 'हीरो', जिसके हीरो थे जैकी श्रॉफ। उस फिल्म की जबरदस्त सफलता से, युवा डैशिंग जैकी श्रॉफ ने उस दौर के जवान दिलों में जो हंगामा, हलचल मचाया था वह लोग आज भी नहीं भूले होंगे। फिल्म हीरो के सुपर डुपर हिट होने के पश्चात उन्होंने पीछे मुड़कलर नहीं देखा। जैकी की सफलता के पीछे उनकी लगन, मेहनत, अच्छी सूरत अच्छी बॉडी, बेहतरीन परफॉर्मेंस तो है ही, इसके अलावा जैकी का बेहतरीन नेचर, खुशमिजाजी, दरियादिली और इंसानियत से भरपूर जज्बा भी शामिल है। उनके जन्मदिन (फर्स्ट फरवरी 1957) पर मायापुरी परिवार उन्हें ढेर सारी बधाई देने के साथ-साथ उनके जीवन और करियर की बातें अपने पाठकों को पेश करती है। सबसे पहले जैकी श्रॉफ के साथ मेरी पहली मुलाकात के बारे में बताती हूँ। मैं उन दिनों फर्स्ट ईयर जूनियर कॉलेज मे थी (11वीं कक्षा)। एक बार मायापुरी के वरिष्ठ पत्रकार पन्नालाल व्यास, (जो मेरे गुरु और अंकल थे) जैकी से इंटरव्यू के लिए निकले तो मैं भी उनके साथ चली गई। इंटरव्यू के दौरान पन्नालाल अंकल उनसे बातें करते रहे, मैं सिर्फ शुरुआती हेलो के बाद चुपचाप उन्हें देखती रही। इस मुलाकात की चर्चा मैंने अपनी कॉलेज की सहेलियों से चटखारे लेकर की और उन्हें बताया कि मेरा जैकी श्रॉफ से अच्छा परिचय है। मेरी सहेलियों ने जिद पकड़ ली की मैं उन्हें भी जैकी श्रॉफ से मिलवा दूं। अब मैं घबराई कि कहीं जैकी श्रौफ ने मुझे पहचाना ही नहीं तो? मन में तमाम आशंकाएँ लेकर मैं कुछ दिनों बाद अपनी सहेलियों के साथ 'सेठ स्टूडियो ' पहुंची जहां जैकी श्रॉफ शूटिंग कर रहे थे। मैं अपनी सहेलियों को थोड़ी दूरी पर खड़ा रखकर खुद जैकी से मिलने पहुंची और उन्हें याद दिलाया कि कुछ दिन पहले मैं पन्नालाल व्यास जी के साथ उनसे मिलने आई थी। यह सुनकर उनकी आंखों में पहचान की झलक उभरी तो मैंने धीरे से उन्हें अपनी समस्या बताते हुए कहा कि मेरी सहेलियों को मैंने कहा था कि आप से मेरी बहुत अच्छी पहचान है। अब मामला आपके हाथ में है।' यह सुनते ही वे जोर से हंस पड़े थे और एकदम उछल कर चिल्लाते हुए बोले, 'हेलो, सुलेना, कैसी हो? बहुत दिनों से दिखी नहीं? किधर थी ? अरे कोई चाय वाय तो लाओ, बैठो बैठो, तुम्हारे साथ कौन है? उन्हें भी बुलाओ।' मन ही मन मुस्कुराती हुई मैंने अपनी सहेलियों को करीब बुलाया और जैकी से परिचय कराया तो मेरी सहेलियां खुशी से बाग बाग हो गई। तो ऐसे हैं जैकी श्रॉफ। आइए उनके जीवन को करीब से देखें:--- गुंडे भी खाते थे खौफ जैकी श्रॉफ का जन्म फर्स्ट फरवरी 1957 को महाराष्ट्र के उदगीर जिले में एक गुजराती परिवार में हुआ। उनके पिता, काकू लाल (काकू भाई) हरिलाल श्रॉफ एक गुजराती हिंदू थे और माता, अमृता काकूलाल (काकू भाई) उर्फ रीता, उर्फ हरुनिस्सा, मुरातोवना माशुरोवा) उज्बेकिस्तान से आई थी। जैकी श्रॉफ ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि कैसे सन 1900 की शुरुआत में उनके नाना, नानी उज्बेकिस्तान से एक दंगे के दौरान जान बचाकर अपनी सात बेटियों के साथ रिफ्यूजी बनकर लद्दाख के शरण में आए थे। पेट पालने के लिए वे राईस पर्ल्स (यारकांडी) बेचते थे और हमेशा एक जगह से दूसरी जगह उन्हें शिफ्ट होते रहना पड़ता था। इस तरह से वे लोग लद्दाख से लाहौर, लाहौर से दिल्ली और दिल्ली से महाराष्ट्र में मुंबई आ गए। जैकी के पिता काकूभाई एक गुजराती मर्चेंट परिवार के थे जहाँ उनके घर वाले ट्रेडिंग करते थे लेकिन स्टॉक मार्केट में उनके परिवार को बहुत नुकसान होने के कारण 17 वर्ष की उम्र में रोजी रोटी कमाने के चक्कर में उन्हें गुजरात से मुंबई आना पड़ा। इस तरह जैकी के पिताजी काकू भाई की मुलाकात रीता से किशोरावस्था में ही महाराष्ट्र में हो गई, फिर दोनों में प्रेम हुआ और दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद दोनों मालाबार हिल के एक चाल में 30 बाई 30 फुट के कमरे में रहने लगे, उस चाली बिल्डिंग में 30 परिवार रहते थे और वहां सिर्फ तीन टॉयलेट बाथरूम थे जिसे यह 30 परिवार मिलकर शेयर करते थे। इसी घर में जैकी का बड़ा भाई और जैकी अपने मां बाप के साथ रहकर बड़े होने लगे। हालात और माहौल के चलते जैकी के बड़े भाई हेमंत रफ टफ तरीके से जीने लगे। वे गरीबों के मसीहा और दादागिरी करने वाले अमीर लोगों की धुलाई करते हुए उस इलाके के दादा बन गए थे। छोटा भाई जैकी ने भी उनका अनुसरण करना शुरू किया था। दोनों भाइयों से वहां के गुंडे भी डरते थे। दोनों अपने इलाके की मां बहनों और सीधे साधे लोगों को, वहां के गुंडों से बचाते हुए, गुंडों से ही उलझ पड़ते थे। वहां के रहने वाले सभी लोग इन दोनों भाइयों का खूब सम्मान करते थे, लेकिन एक दिन बड़े भाई हेमंत की पानी में डूबकर संदिग्ध हालत में मौत हो जाने से जैकी सदमा ग्रस्त हो गए और सब कुछ छोड़कर वे अपने आप में सिमट गए, उस दर्द के दौर में मां ने जैकी को बहुत सपोर्ट किया और हर तनाव से बचा के रखा। देवानंद ने किया स्वामी दादा के लिए साइन जैकी ने 11वीं कक्षा में कॉलेज छोड़ दिया क्योंकी खर्चे की समस्या आ गई थी। उसके बाद जैकी ट्रक ड्राइविंग करने लगे। कुछ समय बाद उन्होंने ट्रैवल एजेंट के तौर पर जहांगीर आर्ट गैलरी के पास स्थित एक कंपनी में काम शुरू कर दिया। वहाँ आते जाते एक बस स्टॉप पर एक एडवरटाइजिंग एजेंसी अकाउंटेंट की नजर, अच्छे कद काठी और सुदर्शन नौजवान जैकी पर पड़ी तो उन्होंने उन्हें मॉडलिंग करने की सलाह दी और अगले दिन फ्लोरा फाउंटेन स्थित एक एडवरटाइजिंग एजेंसी में जाकर फोटो खिंचवाने को कहा । अगले दिन जैकी ने ऐसा ही किया। उस सूटिंग-शर्टिंग विज्ञापन की मॉडलिंग ने उन्हें मॉडलिंग की राह पर कदम रखवाया। अब जैकी को मॉडलिंग के ढेर सारे ऑफर्स आने लगे। फिर एक दिन देवानंद की नजर उनकी मॉडलिंग तस्वीर पर पड़ी तो उन्होंने जैकी को अपनी नई फिल्म 'स्वामी दादा' में साइन करने के लिए बुला भेजा। जैकी श्रॉफ की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हीरो के बाद पीछे मुड़कर नही देखा देवानंद की फिल्म में काम करते ही शोमैन सुभाष घई की नजर इस खूबसूरत बाँके नौजवान पर पड़ी, तो उन्होंने भी अपनी नई फिल्म 'हीरो' (1983) के लिए नवोदित नायिका मीनाक्षी शेषाद्री के साथ जैकी को बतौर हीरो चुन लिया। फिल्म हीरो सुपर डुपर हिट हो गई। 'हीरो' के पश्चात जैकी श्रॉफ ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और कई फिल्मों में लगातार काम करते गए। उन्होंने लगभग दो सौ फिल्मों में काम किया। 1987 में जैकी श्रॉफ ने अपनी लंबे समय की गर्लफ्रेंड, टॉप की मॉडल आयशा दत्त से 5 जून 1987 में शादी कर ली, इसी दिन आएशा का जन्मदिन भी है। कालांतर में उनके दो बच्चे हुए, बेटा टाइगर श्रॉफ (टाइगर का एक और नाम जय हेमंत भी है जो उनके स्व. ताऊ के नाम पर रखा गया था) बेटी कृष्णा श्रॉफ। मीडिया कंपनी भी है जैकी की मुख्य फिल्में इस प्रकार है, परिंदा, गर्दिश, खलनायक, मै तेरा दुश्मन, पाले खान, मेरा धर्म, सड़क छाप, कुदरत का कानून, उत्तर दक्षिण रामलखन, कर्मा, अल्लाह रखा हाथों की लकीरें काला बाजार, त्रिदेव, बाप नंबरी बेटा दस नंबरी, हंड्रेड डेज, अकेला, किंग अंकल, रंगीला, बंदिश, अग्निपथ, बॉर्डर, रिफ्यूजी, बंधन, मिशन कश्मीर, फर्ज, यादें, लज्जा, देवदास, ऑन मेन एट वर्क, हलचल, क्योंकि, आईना, रूप की रानी चोरों का राजा, रिटर्न ऑफ ज्वेल थीफ, 1942 ए लव स्टोरी, अपने सपने मनी मनी, तीन पत्ती, हाउज़फुल 3, भूत अंकल, भागम भाग, किसान, वीर, शूटआउट एट वडाला, अग्नि साक्षी, धूम 3, हैप्पी न्यू ईयर, चॉक एंड डस्टर, डर्टी पॉलिटिक्स वगैरह। भले ही उनकी कई फिल्में ना भी चली हो लेकिन प्रतिभा, मेहनत, अच्छी सूरत, और सबसे बड़ी बात, उनके अच्छे नेचर के चलते उन्हें काम की कमी कभी नहीं रही। वे लगातार पैंतीस वर्षों से फिल्में कर रहे हैं और आज भी लोकप्रिय हैं। 1990 के बाद उन्होंने लीड रोल कम ही किए और सहनायक की भूमिकाएं ज्यादा की। जैकी श्रॉफ और उनकी पत्नी आएशा द्वारा संचालित उनकी एक मीडिया कंपनी, 'जैकी श्रॉफ एंटरटेनमेंट लिमिटेड' भी है। सोनी टीवी में उनका 10% शेयर भी था लेकिन 2012 में उन्होंने अपना शेयर बेचने का निर्णय किया। लोग जग्गू दादा भी बुलाते थे जैकी का असली नाम जयकिशन था लेकिन स्कूल कॉलेज में उनके दोस्त उन्हें जैकी कह कर पुकारते थे। बाद में सुभाष घई को भी जैकी नाम पसंद आया और उन्होंने जैकी का स्कीन नाम भी जैकी ही रहने दिया। तीन बत्ती इलाके में रहने के दौरान लोग उन्हें जग्गू दाद भी पुकारते थे। जैकी को फिल्म 'परिंदा' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवॉर्ड प्राप्त हुआ। 'खलनायक' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के तौर पर फिल्म फेयर अवार्ड घोषित किया गया। 2007 में जैकी को भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए विशेष ज्यूरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने स्टार वन पर प्रसारित मैजिक शो, इंडियन मैजिक स्टार में जज की भूमिका भी की। वे इंटरनेशनल फिल्म एंड टेलीविजन क्लब ऑफ एशियन एकेडमी ऑफ फिल्म एंड टेलीविज़न के लाइफ मेंबर है। सिनेमा जगत में अपने अमूल्य योगदान के लिए उन्हें इन्वर्टिस यूनिवर्सिटी की तरफ से डॉक्टर ऑफ आर्ट्स की उपाधि से भी नवाजा गया। उनका एक ऑर्गेनिक फॉर्म है जहां वे ऑर्गेनिक प्लांट, वेजिटेबल, वृक्ष उगाते हैं। वे एनवायरनमेंट जलधारा फाउंडेशन की ओपनिंग में भी उपस्थित थे। उन्होंने श्रीलंका में आयोजित 'हीरो गोल्डन फिल्म अवॉर्ड्स' में स्पेशल गेस्ट के तौर पर शिरकत की थी। उन्हें 'जी क्यू' बेस्ट ड्रेस्ड अवार्ड से भी नवाजा गया। 1995 में उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर अवार्ड, फिल्म-1942 लव स्टोरी के लिए दिया गया, 1996 में उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर, फिल्म रंगीला के लिए दिया गया। उन्हें ओरिजिनल रॉकस्टार तथा मोस्ट स्टाइलिश लिविंग लीजेंड के अवार्ड भी प्राप्त हुए, वर्ष 2017 में उन्हें राज कपूर अवार्ड से नवाजा गया, 2017 में उन्हें, 'एनिवर्सरी ऑफ जे पी दत्ता-'बॉर्डर' मूवी' अवार्ड पेश किया गया , 2017 में ही जैकी को नेशनल अवार्ड, हिंदी सिनेमा गौरव सम्मान प्रदान हुआ। 2018 में उन्हें, 'फिल्मफेयर शॉर्ट फिल्म बेस्ट एक्टर अवार्ड' फिल्म खुजली के लिए दिया गया। इन दिनों वे कई फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त हैं जैसे, 'शून्यता', 'फिरकी', 'साहो' 'पलटन' वगैरह। हैपी बर्थडे टू यू जग्गू दादा। ➡ मायापुरी की लेटेस्ट ख़बरों को इंग्लिश में पढ़ने के लिए www.bollyy.com पर क्लिक करें. ➡ अगर आप विडियो देखना ज्यादा पसंद करते हैं तो आप 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