हिंदी फिल्मों के गीतों, नज़्मों, कहानियों, पटकथाओं, संवादों को, अपनी जादुई अंदाज से कलमबद्ध करने वाले जावेद अख्तर को दुनिया के हर साहित्यकार, कवि और सिनेमा प्रेमी जानते हैं। उन्होंने उर्दू के कई मुश्किल गज़लो, शेरों को आसान तरीके से सहेजकर प्रस्तुत किया। जावेद अख्तर ने सलीम खान के साथ मिलकर कई सुपर डुपर हिट फिल्में लिखी। इस जोड़ी की पहली सुपरहिट फिल्म थी अंदाज 1971, उसके बाद दोनों ने मिलकर कई और सुपरहिट फिल्मों में साथ काम किया जैसे अधिकार 1971, हाथी मेरे साथी 1972, सीता और गीता 1972, यादों की बारात 1973, जंज़ीर 1973, हाथ की सफाई 1974, दीवार 1975, शोले 1975, चाचा-भतीजा 1977, डॉन 1978, त्रिशूल 1978, दोस्ताना 1980, क्रांति 1981, जमाना 1985, मिस्टर इंडिया 1987 वगैरह। सलीम जावेद की इस जोड़ी ने एक साथ 24 फिल्मों में काम किया जिनमें चार फिल्में हिट नहीं हुई जैसे काला पत्थर, शान, ईमान धर्म, आखिरी दाव। जावेद अख्तर को 1999 में पद्मश्री तथा 2007 में पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया। इस महान हस्ती के जन्मदिन पर आइए उनके बारे में कुछ और जानते हैं।
जावेद अख्तर का जन्म 17 जनवरी 1945 में ग्वालियर ( सेंट्रल इंडिया एजेंसी ब्रिटिश इंडिया) में हुआ था। उनके पिता जानिसार अख्तर, सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कवि, फिल्म गीत लेखक और शायर थे, उनकी माता जी साफिया अख्तर सुप्रसिद्ध लेखिका शिक्षिका तथा गायिका थी। जावेद अख्तर ऐसे परिवार के सदस्य हैं जिसके ज़िक्र के बिना उर्दू साहित्य इतिहास अधूरा रह जाता है। पिताजी सुप्रसिद्ध शायर और फिल्म गीतकार जानिसार अख्तर थे। जावेद के दादाजी उस दौर के सुप्रसिद्ध शायर मुज़्तर खैराबादी थे, उनके पर-दादाजी फज़्ल ए हक खैराबादी, सुप्रसिद्ध इस्लामिक स्कॉलर थे। जावेद अख्तर प्रगतिशील आंदोलन के एक और सितारे, शायर, कवि मज़ाज के भांजे भी है। उनके पिता ने अपने एक शेर 'लम्हा-लम्हा किसी जादू का फसाना होगा' में से जादू शब्द लेकर जावेद अख्तर का नाम 'जादू' रख दिया था। बाद में जादू से उनका नाम जावेद रख दिया गया। जावेद अख्तर जब बहुत छोटे थे तो दुर्भाग्यवश उनकी माता जी का निधन हो गया, पिता ने दोबारा शादी की तो जावेद के जीवन और जहन में काफी जबरदस्त बदलाव आया, वे घर से ज्यादा अपने दोस्तों के बीच रहने लगे। कुछ समय बाद वे नाना नानी के पास लखनऊ रहने चले आए वहां उन्होंने जाने माने और कीमती तालुकेदार स्कूल में शुरुआती पढ़ाई शुरु कर दी। लेकिन वृद्ध नाना-नानी कब तक उन्हें संभालने, सो वे अपनी खाला के पास अलीगढ़ चले आए और वहीं पढ़ाई करने लगे। जब कुछ बड़े और समझदार हुए तो वापस अपने घर भोपाल लौट आए और वही अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की।
बचपन से ही उन्हें लिखने में बहुत दिलचस्पी थी और वे काफी अच्छा लिखते भी थे, अपनी जिंदगी को एक सही पटरी देने के ख्याल से जावेद अख्तर 4 अक्टूबर 1964 को मुंबई शहर आ गए, जहां उनका कोई आसरा नहीं था, उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा। पैसों की तंगी के कारण खाने, रहने की समस्या थी। बताया जाता है कि कई बार उन्हें खुले आसमान के नीचे बिना कुछ खाए पीए सोना पड़ा। बाद में आखिर उन्हें कमाल अमरोही के स्टूडियो में रहने की जगह मिल गई। जावेद अख्तर फिल्मों में छोटे मोटे काम करने लगे। एक दिन उनकी मुलाकात फिल्म 'सरहदी लुटेरे' के सेट पर सलीम खान के साथ हुई, सलीम उस फिल्म में एक्टिंग का काम कर रहे थे और जावेद प्रोडक्शन का काम संभाल रहे थे। दोनों की दोस्ती हुई, दोनों ही लेखन में माहिर थे लेकिन लिखने का काम उन्हें कौन देता? आखिर एक दिन निर्देशक एस एम सागर को एक राइटर की जरूरत पड़ी तो उन्होंने इन दोनों युवा लेखकों को मौका दिया। जावेद अख्तर अपनी स्क्रिप्ट उर्दू में लिखते थे जिसे बाद में हिंदी में ट्रांसलेट किया जाता था।
70 के दशक में स्क्रिप्ट राइटर का नाम फिल्म के पोस्टर और टाइटल में नहीं लिखा जाता था, लेकिन सलीम जावेद की जोड़ी बॉलीवुड क्षेत्र में धीरे-धीरे जमने लगी थी। उनकी लोकप्रियता को देखकर राजेश खन्ना ने अपनी फिल्म 'हाथी मेरे साथी' में पहली बार उन्हें पोस्टर और टाइटल में क्रेडिट दिया और तब से फिल्मी लेखकों तथा स्क्रिप्ट राइटर्स को फिल्मों में क्रेडिट देने का चलन शुरू हुआ। सलीम जावेद की जोड़ी 1971 से 1982 तक जमी रही लेकिन उसके बाद किन्हीं वैचारिक मतभेद के कारण टूट गई। उसके बाद जावेद स्वतंत्र रूप से लिखने लगे, उन्हें उनके गीतों, पटकथा लेखन, के लिए 14 बार फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया। जावेद अख्तर को 5 बार नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया। उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड इन उर्दू (भारत का सर्वोत्तम साहित्य सम्मान) उनकी पोएट्री कलेक्शन 'लावा' के लिए नवाजा गया।
जावेद की पहली पत्नी थी अभिनेत्री हनी ईरानी जिनसे उन्हें दो बच्चे हैं, फरहान अख्तर और जोया अख्तर। हनी ईरानी से अलग होने के बाद उन्होंने अभिनेत्री शबाना आजमी के साथ विवाह किया। जावेद अख्तर ने अपनी बेटे फरहान अख्तर के साथ 'फिल्म दिल चाहता है', 'लक्ष्य' तथा 'रॉक ऑन' में साथ काम किया और अपनी बेटी जोया के साथ उन्होंने फिल्म 'जिंदगी ना मिलेगी दोबारा' में काम किया। जावेद अख्तर सिर्फ ह्यूमैनिटी धर्म पर विश्वास करते हैं और किसी धर्म पर नहीं। वे विश्व प्रसिद्ध शायर, स्क्रिप्ट राइटर होने के साथ-साथ जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में प्रसिद्ध है। उन्हें 16 नवंबर 2009 को पार्लियामेंट अप्पर हाउस राज्यसभा के लिए नॉमिनेट भी किया गया।