राकेश ओम प्रकाश मेहरा की फिल्म 'दिल्ली 6' छोटा सा किरदार निभाने के बाद दो फिल्मों में बतौर मुख्य लीड कलाकार अभिनय करने के बावजूद हेमवंत तिवारी की पहचान नही बनी.क्योंकि दोनो फिल्में अब तक प्रदर्शित नहीं हुई.हेमवंत तिवारी सबसे पहले 2013 में चर्चा में आए थे,जब उनके अभिनय से सजी लघु फिल्म 'लाइफ इज ब्यूटीफुल'/ "जिंदगी खूबसूरत है" का प्रदर्शन काॅन्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में हुआ था.इसके बाद 2018 में उन्होने इंटरनेशनल वेब सीरीज "मदीनाह"में एरिक राॅबर्ट्स' के साथ अभिनय किया. पर यह वेब सीरीज अभी तक प्रदर्शित नही हुई.पर इन दिनों वह बतौर लेखक व निर्देशक अपनी नई फिल्म "लोमड़" को लेकर चर्चा में हैं,जिसे अब तक 24 इंटरनेशनल फिल्म समारोहों में पुरस्कृत किया जा चुका है,जबकि यह फिल्म 28 इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा रह चुकी है. हेमवंत तिवारी की फिल्म "लोमड़" विश्व की पहली वन शॉट ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म है, जिसमें हेमवंत तिवारी ने स्वयं औरोशिखा डे,परिमल आलोक,तिरथ मुरबाडकर,शिल्पा सभलोक,मोहित कुलश्रेष्ठ,नवनीत शर्मा व रोशन सजवान के साथ अभिनय किया है.अब फिल्म 'लोमड़' चार अगस्त को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने जा रही है.
प्रस्तुत है हेमवंत तिवारी से "मायापुरी" पत्रिका के लिए हुई बातचीत...
क्या आपकी परवरिश कला के माहौल में हुई,जिसके चलते आप सिनेमा जगत से जुड़े?
बिल्कुल नहीं...मेरे घर के अंदर कला का दूर दूर तक कोई माहौल नहीं रहा.मेरे पिता श्री सुरेंद्र कुमार तिवारी जी आर्मी आफिसर थे, अब अवकाश प्राप्त कर चुके हैं.जबकि मेरी मां श्रीमती सुधा तिवारी शिक्षक रही हैं, वह भी अब अवकाश प्राप्त कर चुकी हैं.दोनो अपनी सुकून की जिंदगी जी रहे हैं.इनका सिनेमा से कोई लेना देना नही है.मैं अपने पूरे खानदान में इकलौता इंसान हॅूं,जो कि सिनेमा जगत में काम कर रहा हॅूं.मैं अपने माता पिता का हमेशा आभारी रहॅूंगा कि उन्होने मुझे एक अच्छी परवरिश व बेहतरीन शिक्षा दी.
तो आपके अंदर सिनेमा के प्रति रूचि कैसे पैदा हुई?
मुझे लगता है कि मेरे अंदर सिनेमा के प्रति रूचि पैदा करने में धौला कुआ, नई दिल्ली स्थित आर्मी स्कूल का आडियो वीज्युअल केंद्र है,जहां हम अक्सर फिल्म देखने जाया करते थे. मैंने चार्ली चैप्लिन सहित कईयों की फिल्में देखीं.शायद वहीं से मेरे दिमाग में सिनेमा अपनी जगह बनाने लगा था. इसके अलावा स्कूल दिनों में मैं आर्ट से जुड़ा हुआ था.विभिन्न प्रतियोगिताआंे में हिस्सा लिया करता था.साहित्यिक व सांस्कृतिक गतिविधियों में मेरी काफी रूचि रही है.हो सकता है कि इसमें कुछ योगदान अपरोक्ष रूप से मेरी मां का हो.क्योंकि वह कलात्मक रूचि की इंसान हैं. वह कुर्सिया करती हैं.बेकार वस्तुओं से घर के लिए कई तरह के सामान बनाती आयी हैं.जब मैं दसवीं कक्षा में पहुॅचा, तब तक यह तय कर चुका था कि मुझे सिनेमा में ंही कुछ करना है.शुरूआत में मेरे पिता जी इसके पक्ष में नहीं थे.फिल्मी दुनिया को लेकर उनकी अपनी अलग सोच रही है.मगर मेरे सिनेमा से जुड़ने का उन्होने ज्यादा विरोध भी नहीं किया.मैने 12 वीं कक्षा तक की पढ़ाई की,उसके बाद मैने दिल्ली में ही काल सेंटर में नौकरी करने लगा था.मैने कारेस्पांेडेंस से इंग्लिश आॅनर्स किया.
आपने अभिनय व निर्देशन की ट्रेनिंग कहां से ली?
मुंबई आने से पहले मैने कोई पढ़ाई या ट्रेनिंग नहीं ली.सच यह है कि मैने 'पुणे फिल्म संस्थान' में जाना चाहा,पर उन दिनों वहां पर एक्टिंग का कोर्स बंद था.एनएसडी के लिए जरुरी था कि पहले नौ नाटको में अभिनय किया हो और स्नातक की डिग्री हो, वह भी मेरे पास नहीं थी. ऐसे में मेरे प्रेरणा स्रोत बने टोंट्वन टोरेंटोनों, जिन्होने फिल्में देखते देखते खुद फिल्में बनानी शुरू कर दी.आज वह मशहूर फिल्मकार हैं.मैं चार्ली चैप्लिन से भी प्रेरित हॅूं.दिल्ली में काल सेंटर में नौकरी करके पैसे कमाए, माॅडलिंग भी की.मैं बेरी जाॅन एक्टिंग स्कूल से अभिनय की ट्ेनिंग लेने के लिए मंुबई आया था.मैंने बेरी जाॅन के यहां से अभिनय का प्रशिक्षण पूरा किया.मुझे राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म 'दिल्ली 6' में भगवान राम का एक छोटा सा किरदार निभाने का भी मौका मिला.मैं वह दिन कभी नहीं भूल सकता जब मैं पहली बार 'दिल्ली 6' के सेट पर पहुॅचा, जहां मेरी मुलाकात अमिताभ बच्चन जी से हॅूं और वह स्वयं सामने से हाथ जोड़कर मुझसे कहा कि 'मैं अमिताभ बच्चन हॅूं. 'अब इतने महान कलाकार के सामने मेरी तो बोलती ही बंद थी.वहीं पर अभिषेक बच्चन से भी मिला था.मंुबई पहुॅचते ही इतने दिग्गज निर्देशक की बड़े बजट फिल्म में छोटा सा किरदार मिलने से मेरा हौसला बढ़ गया.फिर कुछ न कुछ होता रहा.
उसके बाद?
संघर्ष तो करना ही था. सभी को संघर्ष करना पड़ता है.पर मंैने सोच लिया था कि पिता जी से पैसे नही मांगना है. इसलिए मैने योगा क्लासेस शुरू की.लोगों को योगा सिखाते हुए पैसे कमाने लगा,तो दूसरी तरफ आॅडीशन देने का काम जारी रहा.मुझे याद है कि बारिश के ही मौसम में मैने एक ही दिन में तेरह आॅडीशन दिए थे, यह अलग बात है कि मेरा चयन कहीं नहीं हुआ था.
'दिल्ली 6' में छोटा सा किरदार निभाते हुए किस कलाकार से क्या सीखा था?
अमिताभ बच्चन जैसे विनम्र इंसान व महान कलाकार बिरले ही होते हैं.मैंने अमिताभ बच्चन से जमीन पर रहना सीखा.मैने उनसे सीखा कि बड़े होने पर गलती न हो तो भी हाथ जोड़कर आगे निकल जाना ही बड़प्पन है.
इसके बाद करियर कैसे आगे बढ़ा?
उसके बाद मुझे बतौर लीड दो फिल्में मिली.एक की शूटिंग मंुबई में की तो दूसरे की शूटिंग वाराणसी में की.दोनों फिल्में बहुत अच्छी बनी,पर आज तक रिलीज नहीं हुई. 2013 में मैने लघु फिल्म "लाइु इज ब्यूटीफल'/ जिंदगी खूबसूरत है' की थी, जिसका प्रदर्शन काॅंस इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में हुआ.इसके बाद मैने इंटरनेशनल वेब सीरीज "मदीनाह' की और अब मैने बतौर लेखक व निर्देशक फिल्म "लोमड़' बनायी है,जो कि विश्व की पहली वन शॉट ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म है.
लोग काॅस फिल्म फेस्टिवल में रेड कार्पेट पर चलकर हौव्वा खड़ा कर देते हैं. आपकी लघु फिल्म 'लाइफ इज ब्यूटीफुल'/'जिंदगी खूबसूरत है' को तो काॅंन्स फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया.पर आप इसे भुना नही पाए?
वास्तव में इसकी निर्माता कविता पुष्कर्णा मैडम की अपनी कुछ योजनाएं थीं.वह इस फिल्म को काॅंस में लेकर गयीं,जहां इसे काफी सराहा गया. लेकिन वह इस फिल्म के साथ कुछ बड़ा करना चाह रही थीं, इसलिए बाहर नही निकाला.पर समय हम सभी के साथ नही था.इसके निर्देशक बाॅबी सर ने मुझसे काफी अच्छा काम निकलवाया.पर सच यह है कि मुझे किसी बात को भुनाना या मौके का फाादा उठाना आता नही.मैं तो इमानदारी व मेहनत से अपने काम को अंजाम देने में यकीन रखता हॅूं. तेरह किरदार थे.कई देशों के कलाकार जुड़े थे.तेरह में से एक किरदार,जो भारतीय है,उसके लिए मेरा चयन हो गया.मेरे कई सीन एरिक राॅबर्टस के साथ हैं.अफसोस अब तक इसका प्रदर्शन नही हो पाया.जबकि हमने छह माह लगातार शूटिंग कर इसके सभी एपीसोड पूरे कर दिए थे.
तो फिर आपका कैरियर आगे कैसे बढ़ा?
मैने वेब सीरीज 'मदीनाह' में ंअभिनय कर जो कुछ कमाया,उससे अय्याशी करने की बनिस्बत मैंने उस पैसे का सदुपयोग किया.वास्तव में मुझे स्कूल दिनों से ही लेखन का शौक रहा है.तो मैने एक फिल्म की स्क्रिप्ट लिखनी शुरू कर दी.मैंने हिचकाॅक की एक वन टेक फिल्म देखी थी.उस फिल्म से मुझे प्रेरणा मिली थी,पर फिर मैं भूल गया था.पर जब मैने स्क्रिप्ट लिखी,तो वह वन शॉट फिल्म की स्क्रिप्ट तैयार हो गयी.फिर मैने अपनी सारी कमाई इसी फिल्म यानी कि 'लोमड़' के बनाने में लगा दी.मैं अपनी स्क्रिप्ट लेकर कई निर्माताओं के पास गया,पर मेरी बात किसी की भी समझ में नही आयी.हकीकत में भारतीय फिल्मकारांे ने 'वन टेक' फिल्म देखी ही नही है,तो उनकी समझ में मेरी बात कैसे आती.पर मैंने तय कर लिया था कि मुझे ख्ुाद ही इस अनोखी फिल्म को बनाना ही है.मैं कलाकारों से मिला,उन्हे अपनी बात व सोच समझायी.कैमरामैन से बात की,सभी तैयार हो गए.तो फिल्म बन गयी.मुझे गर्व है कि हमारी फिल्म "लोमड़" विश्व की पहली वन शॉट ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म है,जिसे अब तक 24 इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कृत किया जा चुका है.
फिल्म "लोमड़" क्या है?
यह फिल्म दोस्तों की कहानी हैं.फिल्म में दो किरदार दस साल बाद मिल रहे हैं.दोनों की शादी हो चुकी है.उनकी जिंदगी में काफी कुछ बदल चुका है.आज यह दोनों एक दूसरे के लिए पूरी तरह से अजनबी हैं.दोनों को नहीं पता कि किसकी जिंदगी में क्या गुजर चुका है.अब सोशल मीडिया के मार्फत कुछ करने के लिए दोनो मिलते हैं.कार से कहीं जा रहे हैं.अचानक उनकी गाड़ी खराब हो जाती है और कैसे कुछ अनचाहे किरदार उस जगह आ जाते हैं और फिर उनके साथ क्या गुजरता है,वही सब इस फिल्म की कहानी का हिस्सा है.और 'लोमड़पना' बाहर आता है.यानी कि हर इंसान के अंदर छिपा अजनबी इंसान सामने आता है. इस फिल्म के सभी कलाकार पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षित कलाकार हैं.एक कलाकार को गंभीर चोट लगती है,पर आह नहीं भरी और शूटिंग पूरी की.फिल्म में औरोशिखा डे ने रिया का किरदार निभाया है.बहुत मंजी हुई कलाकार हैं.तीर्था मुरबाड़कर ने नैना का किरदार निभाया है. परिमल आलोक है.
फिल्म का नाम 'लोमड़' क्यों?
फिल्म का नाम मैने पीले रंग में लिखा है.पीले रंग का अपना अर्थ है.पीला रंग मतलब जो थोड़ा श्रूड या चालाक लोग होते हैं,उनका प्रतीक है.पीला रंग का मतलब शातिर या धूर्तपना स्वभाव के लोग हैं.इसीलिए मैंने 'लोमड' को पीले रंग में लिखा है.फिल्म में सभी नाम पीले रंग में हैं.'लोमड़' नाम इसलिए क्योकि लोमड़ बहुत चालाक या धूर्तकिस्म का होता है.
क्या कम बजट के चलते आपने 'वन शॉट' फिल्म बनायी?
मैं यह साफ कर दॅूं कि हर फिल्म कम से कम चार माह में फिल्मायी जाती है.उस पर एडिट टेबल पर पैसे खर्च होते हैं.अब लोग मतलब फिल्मकार या दर्शक सोचते होंगे कि 'वन शॉट' फिल्म में एडिट सहित कई खर्च बच गए.पर ऐसा नही है.मैं बता दॅूं कि हमने छह माह रिहर्सल करने के बाद फिल्म की शूटिंग की है.एडिट टेबल वाला बजट हमारी फिल्म में रिहर्सल में गया.'वन शॉट ' फिल्म बनाने मेंं पैसे ज्यादा लगते हैं.मगर हमारी टीम ने हमें सहयोग किया.अन्यथा हमारी फिल्म 'लोमड़' नहीं बन पाती.रिहर्सल के वक्त भी हर कलाकार,कैमरामैन व लोकेशन सहित सब कुछ लगता है.
इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवलों में इस फिल्म को क्यों सराहा गया? क्यों पुरस्कृत किया गया?
लोगों के लिए वन शॉट ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म की बात नहीं सोची थी, इसलिए वह इस फिल्म के प्रति आकर्षित हुए.हमें 24 देशो में पुरस्कार मिले.
फिल्म 2019 में बन गयी थी.पर अब 2023 में रिलीज हो रही है.ऐसा क्यों?
मैं स्वतंत्र फिल्मकार हूँ. मेरे पास धन नही है.मेरे पास जो कुछ था, उसे खर्च कर फिल्म बनायी. यहां तक कि मुझे किराए के मकान में रहने के साथ ही अपनी बाइक भी बेचना पड़ा.बहुत कुछ झेला. इसी बीच कोविड भी आ गया. मैंने ओटीटी प्लेटफार्म के लिए कोशिश की, पर बात नहीं बनी. पैसे जेब में नहीं थे. तब मैंने ड्रायवर के रूप में नौकरी की. सुबह योगा सिखाने लगा. पूरे दो साल यह दो काम करके पैसे इकट्ठे करके 4 अगस्त को अपनी फिल्म को सिनेमाघरो में लाने की हिम्मत जुटा पाया. मैने पीआरओ नही रखा.ख्ुाद चेहरे पर मास्क लगाकर मेट्ो में जाकर व सड़क पर लोगों को फिल्म के बारे में बताया.