‘थोड़ी जिन्नी पीती है’,‘मारी गली’ जैसे मषहूर गीतों के पंजाबी गायक,लेखक व अभिनेता दिलबाग सिंह ने बड़ी तेजी से अपनी पहचान बनायी है. उनके कई प्रायवेट अलबम बाजार में आ चुके हैं. उन्होने ‘षूटआउट एट लोखंडवाला’,‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’ और ‘षादी तेरी बजाएंगे बैंड हम’’ सहित कई फिल्मों के लिए गीत गा चुके हैं. तो वहीं वह अब तक देष विदेष में 1500 म्यूजिकल कंसर्ट कर चुके हैं.
प्रस्तुत है दिलबाग सिंह से हुई बातचीत के अंष...
संगीत के क्षेत्र में ही कैरियर बनाने की धुन कैसे सवार हुई?
मेरे परिवार में संगीत को लेकर कोई बहुत बड़ा माहौल नहीं रहा. मेरे पापा को गाने गुनगुनाने का षौक है. मेरे पापा का जन्म तो लाहौर में हुआ था. देष का बंटवारा होने पर वह वहां से भारत आ गए थे. मेरा जन्म व परवरिष दिल्ली में ही हुई. वैसे हर पंजाबी संगीत का षौक रखता है. हर पंजाबी कुछ न कुछ गुनगुनाता रहता ंहै. हमारी पीढ़ी में मेरी बहन जरुर संगीत की तालीम लेने के बाद संगीत जगत में ंकाम कर रही हैं. मेरी बहन को एक तबला वादक चाहिए था, जिससे वह संगीत का रियाज हर दिन कर सकें. इसके लिए मेरी बहन ने मुझे तबला बजाना सिखवाया. तो मैने अपनी बहन के साथ बैठकर तबला बजाना षुरू किया. यहीं से संगीत की तरफ मेरा झुकाव हुआ. उसके बाद मैं स्कूल में भी संगीत व गायन प्रतियोगिताओं मंे हिस्सा लेने लगा. पढ़ाई में मैं ठीक ठाक था. बहुत तेज नही था. फिर पढ़ाई से बचने के लिए मैं स्कूल में अक्सर संगीत की कक्षा में चला जाता था. वह हमसे कहते थे कि संगीत की कक्षा में बैठकर तबला बजाओ. संगीत सीखो और संगीत के समारोहों में हिस्सा लो. जब मैं दसवीं कक्षा में था, तब मैने एक संगीत प्रतियोगिता मंे हिस्सा लिया. और मैं तीसरे नंबर पर आया था. स्कूल में प्रेअर मीटिंग के समय प्रिंसिपल ने मुझे दोबारा सभी विद्यार्थियों के सामने वह ट्ाफी पकड़ाई. और मैं अचानक पूरे स्कूल में गायक के रूप में मषहूर हो गया. तो मुझे लगा कि यह तो बहुत अच्छा काम है. बड़ी जल्दी षोहरत मिल जाती है. जिंदगी में षोहरत चाहिए, यह बात मेरे दिमाग में बैठ गयी. इसलिए मैंने संगीत सीखना षुरू कर दिया. पर तब भी इसे प्रोफेषन बनाने की बात मेरे दिमाग में नहीं थी. फिर मैने अपने माता पिता को बताया कि मैं गायक बनना चाहता हॅॅंू. तो मेरे पापा को अच्छा नही लगा. उनका सवाल था कि हम अपने रिष्तेदारों को क्या बताएंगे. यदि आप पंद्रह बीस वर्ष पीछे जाएं, तो उस वक्त गाने गाना अच्छा काम नहीं माना जाता था. बामुष्किल मैं अपने पापा को मना सका. मेरे पिता जी ने मुझे तीन वर्ष का समय देते हुए कहा कि साथ मंे बीए की पढ़ाई भी करो. मेरी मां को पता था कि मैं पढ़ाई में ज्यादा अच्छा नही हॅूं. तो उन्होने मुझसे कहा कि संगीत को सौ प्रतिषत देना.
इसके बाद आपने सगीत की तालीम ली या..?
जी हाॅ! फिर मैने संगीत की तालीम ली. षुरूआती तालीम तो मेरी बहन से मुझे मिल ही रही थी. तो वहीं स्कूल में अमृत कौर मैडम ने मुझे संगीत की ट्ेनिंग दी. बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैने अजमेर सिंह चंदन जी से संगीत की विधिवत षिक्षा ली. अजमेर जी मेरे गुरू मिका सिंह के पिता जी हैं. फिर गुरू राजेंद्र सिंह जी से मंैने सेमी क्लासिकल सीखा. देखिए,मैने बहुत ज्यादा संगीत की तालीम नहीं ली. संगीत की तालीम लेने की मेरी जो उम्र थी, वह निकल चुकी थी. छोटे समय मंे मैने संगीत का क्रैष कोर्स किया. मगर मेरा प्रैक्टिकल बहुत हुआ. मैने मिका सिंह जी के साथ बैकअप आर्टिस्ट के रूप में पांच वर्ष काम किया. मैं उनका षागिर्द था. तो कुछ समय बाद उन्होने मुझे गाना गाने का मौका भी दिया. यह जो कुछ सीखा, वही मेरे काम आ रहा है.
आपने तीन अलग अलग गुरूओं से संगीत सीखा. जिनकी अलग अलग स्टाइल रही है.
आप खुद किनकी स्टाइल मंे गाना पसंद करते हैं?
मेरी सोच यह है कि मेरा गाना सुनने वालों या मेरे गाने पर थिरकने वालांे को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैंने संगीत कितना और कहां से सीखा है. मूल मुद्दा यह है कि मेरे गाने से उन्हे मनोरंजन मिलता है या नहीं. मेरा सारा ध्यान मनोरंजन के पक्ष में ही रहता है. आप जब संगीत के माध्यम से उसका स्तर बदलकर, वह जहां पर हैं, उससे कहीं अन्य जगह पर ले जाकर खड़ा करते हो, जहां वह नाचते गाते हुए इंज्वाॅय करता है, तो यह जोन कमाल की होती है. मुझे यही पसंद है. मुझे पता है कि मुझसे कई गुना बेहतर संगीत की समझ रखने वाले व गाने वाले गायक हैं. पर कई गायक इस बात की समझ नहीं रखते कि वह किस तरह अपने गायन से दर्षकों /श्रोताओं को खुष कर सकें.
संगीत के लाइव षो के दौरान सामने वाले श्रोताओ को समझकर किस तरह खुद को बदलते हैं?
मैं अपने ग्यारह वर्ष के कैरियर में 1500 से ज्यादा संगीत के षो कर चुका हॅूं. कार्यक्रम षुरू करने के दस मिनट के अंदर ही मेरी समझ में आ जाता है कि लोग कितना और किस तरह के गानो पर नाचेंगें. मुझे यह भी समझ मंे आ जाता है कि इन्हे मजा क्यांे नहीं आ रहा है. फिर उन्हे अपनी जोन में लेकर आता हॅूं. यही मेरी सबसे बड़ी यूएसपी है.
स्वतंत्र रूप से आपने पहला गाना कौन सा गाया था?
कुछ समय पहले मैंने अपना बैंड ‘दलबीर सिंह’ के नाम से षुरू किया है. इस बैंड के तहत मुझे पहला म्यूजिकल षो एक बेकरी के उद्घाटन का मिला था. यह दिल्ली के ग्रेटर कैलाष की एम ब्लाक की मार्केट में एक बेकरी षो की ओपनिंग हुई थी. उस वक्त लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए मेरे संगीत कार्यक्रम का आयोजन हुआ था. इसमें मैने लगभग ढाई घ्ंाटे गाया था. इससे मेरी एक पहचान बनी थी. उसके बाद तो षो मिलते चले गए. अब तो देष के अलावा विदेषों में भी कई षो कर चुका हॅूं.
बाजार में आपका पहला गाना कौन सा आया था?
स्वतंत्र रूप से मेरे द्वारा स्वरबद्ध मेरा पहला गाना ‘ओ टीना..’ था. जिसका निर्माण मेरे दोस्त, मेेरे फैन व उद्योगपति रमन जी ने किया था, अब तो उनका इंतकाल हो चुका है. उन्हे मेरे गाने की स्टाइल पसंद थी. मैं इसे भेड़चाल वाला गाना नही बनाना चाहता था. इस गाने मे पांच अलग अलग लड़कियांे का जिक्र था, जो कि मेरी जिंदगी का हिस्सा रह चुकी थीं. यानी कि वह सभी मेरी पूर्व प्रेमिकाएं थीं. इन सभी से मेरा ब्रेकअप महज इसलिए हुआ था कि मुझे गायक बनना था. मैने‘ ओ टीना..’गाने में इन सभी की खूबियां बतायी थीं. यह संगीत इंडस्ट्ी का टर्निंग प्वाइंट था. यह हिपपाॅप गाना था. उससे पहले पंजाबी गानों में लोग ढोल का उपयोग करते थे. उस जमाने में दलेर मेंहदी साहब के सभी गाने हिट हुआ करते थे. इस गाने से मुझे एक अलग पहचान मिली.
च पहली बार किस फिल्म के लिए गाना गाया था?
मुझे सबसे पहले फिल्म ‘‘षूटआउट एट लोखंडवाला’’ में ‘चल गणपत दारू ला..’गाने का अवसर मिला था. इसमें छह अलग अलग स्टाइल में मैने गाना गाया था. लेकिन इसमेें मेरा नाम नहीं था. क्योंकि मैंने जो गाया था, वह कोरस का हिस्सा था. इसके बाद मुझे फिल्म ‘चलो ड्ायवर’ में गाने का अवसर मिला. लेकिन इसे भी बाद में संगीत कंपनी के इषारे पर किसी अन्य गायक से गवा लिया गया था. उसके बाद आरडीबी के साथ मैने फिल्म ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’ के लिए गुजराती वर्जन गाया था. यह प्रमोषनल सांग था. इस गाने से मुझे जबरदस्त षोहरत मिली.
आपको षोहरत मिली. गाने हिट हुए. पर जिस तरह से फिल्मों में गाने का अवसर मिलना चाहिए था, वह नही मिल पाया?
इसके बाद मुझे एक बहुत बड़ी फिल्म ‘‘षादी तेरी बजाएंगे हम बैंड ’’ हास्य फिल्म मिली थी. इसमें मुझे दो गीत गाने के साथ ही अभिनय करने का अवसर भी मिला था. इसमें मुझे एक गाना दलेर मेंहदी साहब के साथ गाने का अवसर मिला था. एक गाना आकाषा सिंह के साथ गाया. इसके बाद कुछ दूसरी फिल्मों के गीत गानें के लिए मंुबई बुलाया गया. मगर तभी कोविड के चलते लाॅक डाउन लग गया. फिर 2020 और 2021 में कुछ नही हो पाया. उसके बाद हर किसी को अपनी जिंदगी नए तरीके से षुरू करनी पड़ी है. मैं भी षून्य से नई षुरूआत कर रहा हॅूं. उम्मीद है कि सब कुछ अच्छा ही होगा. कुछ फिल्मों के लिए गाने रिकार्ड कर दिए हैं, पर अभी उनका जिक्र करना उचित नही होगा.
बीच में मैने कई फिल्मों के लिए गीत गाए भी थे, जो काफी सफल हुए. पर बाद में वह गाने किसी अन्य गायक से गवा लिए गए थे. पर कोई बात नहीं. अभी जिंदगी खत्म नही हुई है. अभी बहुत कुछ करना है. मैं लगातार चलते जा रहा हॅूं.
किसी फिल्म के गीत को गाने से पहले सिर्फ सिच्युएषन समझते हैं या उसकी पूरी कहानी को भी जानने का प्रयास करते हैं?
सच यही है कि हम जब भी किसी फिल्म के लिए गाना गाते हैं, तब हमें कहानी नहीं बतायी जाती. जहां तक मेरी जानकारी है किसी को नहीं बताया जाता. हाॅ! आप बहुत बड़े गायक या अभिनेता हांे, तब भले बताया जाए अब कोई गायक सलमान खान का दोस्त है, तो उसे सलमान खान से कहानी पता चल सकती है. लेकिन हम अभी उस मुकाम तक नही पहुॅचे हैं, इसलिए हमें कहानी नही बतायी जाती. हमें तो फिल्म का नाम, कलाकारों के नाम व निर्माता का नाम तक नही पता होता. हमें सिर्फ गाना बताया जाता है. हम गाने को 15-20 बार सुनते हैं. उस वक्त हमारा गला सेट है, तो उसी वक्त गाना रिकार्ड कर लेते हैं अन्यथा एक दिन का समय ले लेते हैं. मेरी स्टाइल यह है कि मैं गाना सुनने के बाद उसकी डमी गा देता हॅॅंू. फिर एक दिन अपने द्वारा गाए गए डमी को ही सुनते हुए इम्प्रूवाइज करता रहता हॅूं. फिर गाना रिकाॅर्ड कर देता हॅूॅं.
आप जब भारत में संगीत का लाइव षो करते हैं और जब आप विदेष में संगीत के लाइव षो करते हैं, तो क्या फर्क पाते हैं?
जब हम विदेष में संगीत के लाइव षो करते हैं, तो हम पाते हंै कि वहां के अप्रवासी भारतीय हमारे साथ जल्दी जुड़ जाते हैं. क्योंकि वह वहां रहते हुए भारतीय कल्चर व संगीत को ‘मिस’ कर रहे होते हैं. इसलिए वह हमारे गाने सुनकर अपनापन का अहसास करते हैं. पर जब हम भारत में अपने लोगों के बीच गाते हैं,तो समय लगता है.
इन दिनों हिंदी फिल्मों में पंजाबी गीतों को षामिल किया जा रहा है. इसे आप किस तरह से देखते हैं?
अब भारतीय सिनेमा यानी कि हिंदी सिनेमा ‘पैन वल्र्ड’ होता जा रहा है. पंजाबी तो पंजाबी ही होते हैं. जरुरी नहीं है कि वह ‘सरदार’ ही हों. वह हिंदू पंजाबी भी होते हैं. उत्तर भारत में तो हर किसी को पंजाबी समझ में आती है. पंजाबी तो पूरे विष्व में फैले हुए हैं. पंजाब में तो हर पंजाबी यही सोचता है कि परिवार का एक लड़का तो विदेष जाना चाहिए. हिंदी फिल्मों में पंजाबी गाने रखने से दर्षक बढ़ जाते हैं. अब हिंदी फिल्मों में एक बदलाव यह नजर आ रहा है कि पहले हिंदी फिल्मों में जो पंजाबी किरदार हुआ करते थे, वह महज कैरी केचर या मजाकिया ही होते थे. पंजाबियो को ट्क ड्ायवर दिखाकर अजीब तरीके से पेष किया जाता था. अब जो पंजाबी किरदार आते हैं, वह दिल्ली व पंजाब को ध्यान में रखकर रखे जाते हैं. पंजाबी गानों की सफलता की मूल वजह उनके लफ्ज,बीट,ढोल बहुत कैची हैं और लोगों को थिरकने के लिए उकसाते हैं.