प्रतिष्ठित 69 वें नेशनल अवार्ड में मुख्य अतिथि वहीदा रहमान को कैसे असहज महसूस कराया गया?

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By Sharad Rai
प्रतिष्ठित 69 वें नेशनल अवार्ड में मुख्य अतिथि वहीदा रहमान को कैसे असहज महसूस कराया गया?
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गत दिनों दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित भारत सरकार का बहु प्रतिष्ठित फिल्म सम्मान समारोह सम्पन्न हुआ. बाहर से देखने पर सबकुछ व्यवस्थित, ऑर्गेनाइज्ड अवार्ड शो था. किंतु , काश ये अंदर से भी उतना ही ऑर्गेनाइज रहा होता ! जो नहीं था. व्यवस्था संचालक शो की भव्यता के साथ साथ अपने कर्मियों को भी दुरुस्त रख पाए होते तो शायद वयो वृद्ध मेहमान, भारत की रजतपट की चर्चित कलाकार वहीदा रहमान अंदर से घुटी और व्यथित महसूस नहीं कर पाई होती. पर हुआ ऐसा. जो प्रेक्षागृह में ना कोई समझ पाया और न ही धीर गम्भीर एक्ट्रेस ने अपनी परेशानी को लेकर कोई रिमार्क दिया.

वहीदा रहमान अपने बेटे सोहेल रेखी के साथ समारोह स्थल पर पहुची थी. विज्ञान भवन पर निर्धारित मेहमानों के लिए बने गेट से अंदर हाल तक जाने के लिए जो रास्ता था, वहीदा जी को वहां गेट पर रुकना पड़ा. वजह साथ आए उनके बेटे सुहेल को उनके साथ अंदर जाने से रोक दिया गया. जबकि उनके ही आगे पीछे अंदर गए आलिया भट्ट और रणबीर कपूर को साथ साथ जाने दिया गया. अवार्ड सिर्फ आलिया को मिल रहा था, वहां रणबीर कपूर सिर्फ एस्कोर्ट की तरह थे. वहीदा रहमान के बेटे सुहेल को दूसरे पब्लिक दरवाजे से जाने के लिए कहा गया और उनको वहां अपनी मां को अकेला छोड़कर हटना पड़ा. वाहिदा जी को अकेले यह सफर तय करना पड़ा. उनके साथ चलने के लिए कोई प्रोटोकाल अफ़सर को भी नयुक्त नहीं किया गया था. बेटे को भी उनके साथ जाने की अनुमति नहीं मिली.   

वाहिदा जी कोई मामूली कलाकार नही थी. चार दशक से वह सिनेमा पर्दे की बेहतरीन अदाकाराओं में से एक रही हैं और इस साल 2023 के आयोजन की वह मुख्य अवार्डी थी जिनको वहां सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित दादा साहब फालके अवार्ड से सम्मानित किया  जाना था. अतिथि गेट से वहीदा जी के साथ जाने के लिए कोई एस्कोर्ट नहीं था. बेटे को साथ जाने नहीं दिया गया और उनको सम्भाल करके अंदर तक ले जाने वाला कोई नहीं था. वहीदा जी को चलने में  दिक्कत हो रही थी फिर भी उन्होंने बिझिल कदमों से इतना लंबा रास्ता तय किया. उनके चेहरे की थकान और उखड़ती सांस हॉल में देखी जा सकती थी. क्या इतने बड़े तामझाम और लाखों के एक्सपेंस से होने वाले कार्यक्रम में कुछ एस्कोर्ट नहीं रखे जा सकते थे? और अगर रखे गए थे, तो वे थे कहां उस पल?

अब आइए, शो समापन की भी खबर ले लेते हैं. वहीदा रहमान को दिया जाने वाला उसदिन का आखिरी सम्मान था. घंटे भर की बैठक और 400 से अधिक फिल्मी सम्मनार्थियों का सम्मान कोई मामूली काम नही था. वाहिद जी धैर्य से बैठी रहीं. कार्यक्रम समाप्त हुआ तो इसीके साथ  'रेडी टू लिव' का  मैसेज चला दिया गया. जिसका मतलब होता है विशिष्ट अतिथि को 5 मिनट में हाल खाली करके निकल देना है. तबतक बाहर ट्रैफिक को रोक कर रखा जाता है. राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू इस कार्यक्रम में अपनी बेटी के साथ आई हुई थी. महामहिम ने 45 मिनट तक अपनी बेटी के साथ फिल्म वालों से बतियाने में और मेल मिलाप में समय लगा दिया. इस वजह से बाहर करीब 45 मिनट तक ट्रॉफिक रोके रखा गया.

सचमुच सारे मेहमान जो सम्मानित होने पहुचे थे, प्रशासकीय अव्यवस्था की बात कहें भी तो कैसे कहें. बस, अंतर कर्मियों की अव्यवहारिकता और अपूर्ण प्रोटोकाल व्यवहारिक रूप ले सके तो इससे बड़ा भारत का कोई और सम्मान नही है जहां एक मंच पर सैकड़ों सेलिब्रिटीज जोश से भरे हुए पहुचे होते हैं. खासकर वर्तमान सूचना प्रसारण मंत्री श्री अनुराग सिंह ठाकुर के नेतृत्व की टीम में वहीदा रहमान जैसी वरिष्ठ अभिनेत्री को असहजता महसूस हो, ऐसा होना नहीं चाहिए.

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