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सत्तर से नब्बे के दषक तक महिला उद्यमी षब्द का इजाद ही नही हुआ था. उस काल खंड में एक महिला तरला दलाल ने रसोई के व्यंजनों /रेसिपी को लेकर जिस तरह से अपने कैरियर को अंजाम दिया कि हर कोई अचंभित रह गया. उन्होने अपने काम से पितृसत्तात्मक सोच को भी धराषाही कर दिया. यहां तक कि उनके पति नलिन दलाल भी उनकी मदद किया करते थे. तरला दलाल इंडियन फूड राइटर, शेफ, कुकबुक राइटर और कुकिंग शो की होस्ट रह चुकी हैं. वह पहली भारतीय थीं, जिन्हें 2007 में खाना पकाने की कला में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. उनके 'देसी नुस्खे' आज भी हर भारतीय के घर में चर्चा का विषय होते हैं. तरला दलाल ऐसी शेफ थीं, जिन्हें आज भी शाकाहारी खाने को नया रूप व स्वाद देने के लिए क्रेडिट दिया जाता है. 2013 में 77 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था.वह 17 हजार से अधिक रेसिपी देकर गयी हैं. आज जब वह इस संसार में नही है, तब उनका बेटा संजय उनके यूट्यूब चैनल व वेब साइट को संचालित कर रहा है. ऐसी ही षख्सियत की बायोपिक फिल्म "तरला" लेकर लेखक व निर्देषक पियूष गुप्ता आ रहे हैं,जो कि सात जुलाई से ओटीटी प्लेटफार्म "जी 5" पर स्ट्रीम होगी. इस फिल्म में तरला दलाल के किरदार में हुमा कुरेषी और उनके पति नलिन दलाल के किरदार में षारिब हाषमी नजर आएंगे.
हाल ही में स्वीगी फूड फेस्टिवल, डबलिन स्क्वायर,फोनेक्स मार्केटसिटी माल, कुर्ला, मुंबई में इस फिल्म का ट्रेलर लांच किया गया. ऐसे मौके पर हुमा कुरेषी और षारिब हाषमी के साथ ही लेखक व निर्देषक पियूष गुप्ता,फिल्म के निर्माता नितेष तिवारी व अष्विनी अय्यर तिवारी भी मौजूद थीं.
फिल्म के ट्रेलर से यह बात उभरकर आती है कि यह फिल्म तरला दलाल के जीवन का नाटकीय रूपांतरण है. इसमें तरला के निजी व्यक्तित्व के साथ ही उनके संघर्ष का भी चित्रण है. ट्रेलर में हमें एक युवा महत्वाकांक्षी तरला नजर आती है, जो कि ज्यादा पढ़ी लिखी नही है,मगर वह अपने जीवन में 'कुछ' करना चाहती है. लेकिन उसे ख्ुाद अपना लक्ष्य नहीं पता है. उसे 'कुछ' पता ही नही है. पर समय के साथ तरला को खाना पकाने के प्रति अपने प्यार का एहसास होता है और वह एक शौकिया रसोइया से एक पेशेवर रसोइया बन जाती है. आखिरकार, वह अपने घर पर खाना पकाने की कक्षाएं खोलती है और फिर अपना टेलीविजन शो चलाने लगती है. ट्रेलर भोजन से परे तरला के जीवन की एक झलक भी देता है क्योंकि इसमें उनके सहायक पति और बच्चे शामिल हैं.
यह फिल्म एक महत्वाकांक्षी नौसिखिया शेफ की एक मार्मिक कहानी है, जो एक पाक विशेषज्ञ और एक टेलीविजन सेलिब्रिटी बन जाती है. फिल्म उनकी कई उपलब्धियों को दर्शाती है. क्योंकि वह कुकिंग शो, कुकबुक रखने वाली पहली महिला थीं और पाक कला में उनके योगदान के लिए पद्म श्री जीतने वाली एकमात्र भारतीय हैं. फिल्म इस असाधारण महिला को श्रद्धांजलि देती है और अपने उद्देश्य को खोजने के लिए उनके अटूट जुनून, भोजन के प्रति उनके अटूट प्रेम और 'कुछ करना है' के प्रति उनके अटूट उत्साह का जश्न मनाती है.
मीडिया के समक्ष ट्रेलर लांच करने के बाद फिल्म में तरला का किरदार निभाने वाली अदाकारा हुमा कुरेशी ने कहा, "तरला एक मार्मिक और एक अच्छी फिल्म है,जिसमें भावनाओं का पुट, प्रेरणा का छींटा और स्वादिष्ट मनोरंजन का तड़का है. तरला दलाल की महत्वाकांक्षी प्रकृति और उद्देश्य के प्रति उनकी निरंतर खोज निश्चित रूप से उन दर्शकों को प्रेरित करेगी जो जीवन में कुछ उल्लेखनीय और पथप्रदर्शक करना चाहते हैं. मैं अपनी मां के साथ तरला दलाल के कुकरी शो को देखकर बड़ी हुई हूं. मैने खुद उनकी कुकबुक से कई व्यंजन दोबारा बनाए हैं. इसलिए उनकी प्रेरक यात्रा को जीवन में लाना मेरे लिए सम्मान की बात है. मैंने उनके उत्साह और उनकी भावना को पूरी ईमानदारी के साथ मूर्त रूप देने की कोशिश की है. मुझे उम्मीद है कि मैं तरला फिल्म में उनके जादुई ऑनस्क्रीन व्यक्तित्व को फिर से बनाने में सफल रही हूं."
फिल्म में तरला के पति नलिन का किरदार निभाने वाले अभिनेता शारिब हाशमी ने कहा, "उन दिनों जब उद्यमी शब्द चलन में भी नहीं था,तब तरला दलाल ने कई बाधाओं को तोड़ा और एक ताकत बन गईं. हालांकि हर कोई उनकी यात्रा को जानता है लेकिन बहुत से लोग तरला के संघर्षों को नहीं जानते हैं, जिसके बाद वह उस मुकाम तक पहुंचीं. लोग यह भी नहीं जानते होंगे कि तरला का एक सहायक पति नलिन था,जो उसके पंखों के नीचे की हवा था. तरला को उसके लक्ष्य हासिल करने में मदद करने के लिए उसने अपने सपनों को त्याग दिया. दोनों ने मिलकर तरला के सपनों को साकार किया. मुझे उम्मीद है कि तरला और नलिन की कहानी हर उस परिवार को प्रेरित करेगी जो अन्यथा अभी भी पितृसत्तात्मक तरीके से काम कर सकते हैं."
फिल्म "तरला" के लेखक व निर्देषक पीयूष गुप्ता ने कहा, "मुझे एक ऐसी फिल्म का निर्देशन करने का सौभाग्य मिला है, जो सबसे उल्लेखनीय महिला की यात्रा का वर्णन करती है, जो एक गृहिणी से भारत में लगभग हर गृहिणी के लिए रसोई मार्गदर्शक बनने तक चली गई. तरला दलाल कई मायनों में अग्रणी थीं - वह कुकिंग शो, कुकबुक रखने वाली पहली महिला थीं और पाक कला में उनके योगदान के लिए पद्म श्री जीतने वाली एकमात्र भारतीय हैं. इसलिए, मैं उनके असाधारण जीवन पर आधारित बायोपिक का निर्देशन करके सम्मानित महसूस कर रहा हूं. मैं इससे बेहतर निर्देशन की उम्मीद नहीं कर सकता था और मैं हर किसी को उनकी यात्रा से प्रेरित होने और तरला दलाल के गौरवशाली समय को फिर से जीने का इंतजार नहीं कर सकता."
फिल्म की भाषा आम हिंदी नही है. क्योंकि तरला दलाल गुजराती हैं और अरावली पहाड़ी के पास की रहने वाली थीं. इस पर हुमा कुरेषी ने कहा,"उत्तरी लहजे में बात करना मेरे लिए आसान हैं, लेकिन अरावली के नीचे कुछ करना थोड़ा कठिन है. इसलिए इसमें काफी मेहनत और लगभग एक महीने की तैयारी करनी पड़ी. लेकिन मैंने वास्तव में इसका आनंद लिया. इस किरदार को निभाते हुए मुझे अहसास हुआ कि यह फिल्म महिला सशक्तिकरण की बातचीत में योगदान दे रही है. मैं महिला सशक्तिकरण के पक्ष में हूँ! मेरा पूरा जीवन इसका प्रमाण है. इतना ही नही तरला की की तरह मैं भी बहुत परिवार-उन्मुख हूं. मैं अपने माता-पिता और अपने भाई के बहुत करीब हूं. उन्होंने हमेशा मुझे सवाल करने, जिज्ञासु होने के लिए प्रोत्साहित किया है."