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मैं हॅू फिल्म ‘लकड़बग्घा’ की फाइटर... Iksha Kerung

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By Shanti Swaroop Tripathi
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Iksha Kerung

 पिछले कुछ दिनों से सिक्किम पुलिस अफसर का ‘‘मेरा दिल ये पुकारे..’ गीत का वीडियो सोषल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है.  यह अफसर कोई और नही बल्कि ‘एंटी राॅयट फोर्स आफ सिक्किम पुलिस’ की अफसर इक्षा केरूंग हैं.  इक्षा केरूंग सिर्फ पुलिस अफसर ही नही बल्कि वह ‘मिस सिक्किम’,‘बाक्सर’,‘बाइकर’,‘सुपर माडल और अभिनेत्र.ी हैं.  इक्षा केरूंग ऐसी बाइकर हैं,जिन्हे उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने ‘जावा बाइक’ उपहार मंे दी है.  फिलहाल इक्षा केरुंग की चर्चा फिल्म ‘‘लकड़बग्घा’’ में अभिनय करने को लेकर हो रही है.  तेरह जनवरी को प्रदर्षित हो रही विक्टर मुखर्जी निर्देषित फिल्म ‘लकड़बग्घा’ में उनके साथ अंषुमन झा,रिद्धि डोगरा,मिलिंद सोमण व परेष पाहुजा भी हैं. 
पेष है बहुमुखी प्रतिभा की धनी इक्षा केरुंग संग हुई बातचीत के अंष...
 अपनी अब तक की यात्रा को किस तरह से देखती हैं?
 मैं उत्तरपूर्वी राज्य सिक्किम के ेएक गांव की रहने वाली हॅूं.  मेेरे पिता  किसान हैं, मगर उन्होने मुझे हमेषा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया.  बचपन में मैं स्कूल जाने के साथ ही रनिंग/ दौड़ किया करती थी.  एक दिन मेरे पिता ने षारीरिक रूप से हमेषा फिट रहने की बात कह कर मुझे बाक्सिंग की क्लासेस में डाल दिया.  बहुत कम समय में मैं एक बेहतरीन बाक्सर/मुक्केबाज बन गयी.  मैने मुक्केबाजी में राष्ट्ीय बाक्सिंग टुर्नामेंट में तीन चार बार अपने राज्य सिक्किम का प्रतिनिधित्व किया.  पर मैने ओलंपिक में जाने के बारे में कभी नही सोचा.  क्यांेकि हमारे राज्य में मिजोरम या मणिपुरी राज्यों की भांति सुविधाएं नही है.  मगर मैं आज भी बाक्सिंग करती हॅूं.  स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद जब मैं गंगटोक में काॅलेज की पढ़ाई करने गयी, तो वहां पर अपने दोस्तो के कहने पर ‘मिस सिक्किम’ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया.  तब पहली बार मुझे अहसास हुआ कि मुझे माॅडलिंग मंे ही कैरियर बनाना है.  मगर ‘मिस सिक्कम’ के लिए ग्रूमिंग के ही दौरान मुझे ‘सिक्किम पुलिस’ मे नौकरी मिलने का संदेष मिला.  मुझे खुषी और दुःख दोनों हुआ.  खुषी इस बात की कि मेरे माता पिता के सपनों के अनुसार मुझे सरकारी नौकरी मिल रही थी और दुःख इस बात का कि अब माॅडल बनने का मेरा सपना अधूरा रह जाएगा.  मैने अपने पिता के लिए ‘सिक्किम पुलिस’ से जुड़ने का फैसला लिया.  चैदह माह की कठिन ट्ेनिंग के बाद 2019 में महज 19 वर्ष की उम्र में मेरी नियुक्ति ‘‘एंटी राॅयट फोर्स आफ सिक्किम पुलिस’ में मेरी नियुक्ति हुई.  अब मुझे इस नौकरी को करते हुए गर्व होता है.  मुझे गर्व है कि मैं अपने देष की सेवा कर रही हॅूं.पर हकीकत यही है कि मैं माॅडल बनना चाहती थी.   

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आपको माॅडलिंग से कितनी संतुष्टि मिलती है?
 मुझे माॅडलिंग बहुत पसंद है.  माॅडलिंग से मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है.  जब मैं माॅडलिंग करती हॅंू,तो मुझे अंदर से आनंद की अनुभूति होती है.  यही मेरी सफलता है.यही मेरी ख्ुाषी है. 
 पुलिस की नौकरी करते हुए एमटीवी के रियालिटी षो ‘सुपर माॅडल’ से जुड़ना कैसे हुआ?
 मैं स्कूल दिनों में टीवी पर इस रियालिटी षो को देखा करती थी.  तो मेरे दिमाग में कहीं न कहीं यह था कि मुझे इसमें जाना है.  पर कैसे जाना है,यह तो नहीं पता था.  जब मैं काॅलेज की पढ़ाई के लिए गंगटोक आयी, तब मैं विजय दादा जैसे लोगो के संपर्क में आयी.  उन्ही की वजह से में इसके लिए आॅडीषन दे पायी.  एक दिन मैं अपनी ड्यूटी पर थी, तब विजय दादा ने बताया कि अभी आॅडीषन राउंड चल रहा है.  तब मैने ड्यूटी पर रहते हुए मेरा आॅडीषन का वीडियो बनाया था.  मेरे दोस्त ने ही मोबाइल पर रिकाॅर्ड किया था.  इस वीडियो को भेजने के दो तीन दिन बाद ही वहां से जवाब आया कि मेरा चयन हो गया है.  मुझे ख्ुाषी हुई.  2021 के जून जुलाई माह में षूटिंग हुई थी, तब पहली बार मैं मंुबई आयी थी.  मैं पहली बार फ्लाइट/हवाई जहाज में बैठी थी, तो अंदर से डरी हुई थी.  इस षो में मैं बहुत नर्वस थी.  जज के सवालों के जवाब भी ठीक से दे नही पा रही थी.  लोगो ने कहा कि पुलिस की नौकरी के दौरान तो तुम भीड़ का सामना करती हो.  तो फिर जवाब देने में नर्वस नहीं होना चाहिए.  पर ऐसा नही होता.  वहां पर सिच्युएषन अलग होती है.  पुलिस की नौकरी के वक्त की भीड़ और रियालिटी षो के सेट पर इकट्ठा भीड़ में अंतर होता है.  वहां पर मैं आंसू गैस,पानी के फव्वारे सहित कुछ भी छोड़कर भीड़ पर काबू पा सकती हूं.  उस वक्त मैं वर्दी में होती है, जिसका असर भीड़ पर पड़ता है.  इसके अलावा मेरे सीनियर भी हमारे साथ होते हैं.  वहां पर मैं अपने राज्य व अपनी सिक्किम पुलिस की प्रतिनिधि होती हॅूं.  जबकि रियालिटी षो में मुझे ख्ुाद का प्रतिनिधित्व करना है.  मुझे अपने आपको अच्छे अंदाज में पेष करना है.  देखिए,पुलिस की नौकरी ऐसी है कि हम चाहे जितना अच्छा काम करंे, कुछ न कुछ तो कमी रह ही जाती है.  लोग कभी नहीं कहते कि हमने अच्छा किया.  
 रियालिटी षो ‘‘सुपर माॅडल’’ ने आपकी जिंदगी को कितना बदला?
 बहुत बदला.  अब तो कई बार मेरे लिए ड्यूटी करना भी बहुत मुष्किल होता है.  जबकि मैं अपनी ड्यूटी को लेकर हमेषा गंभीर रहती हॅूं.  पुलिस युनीफार्म में हमें हर किसी से बात करने की इजाजत नहीं होती.  हम इंटरव्यू भी नही दे सकते.  उस युनीफार्म की अपनी कुछ मर्यादाएं हैं.  मीडिया हमारे पास आती है,तो हमें उन्हे भी दूर करना पड़ता है.  इससे मुझे तकलीफ होती है.  कई बार ऐसा भी होता है कि जब मैं ड्यूटी पर होती हॅूं, तो कई लोग आकर कहते है कि ,‘आप तो सुपर माॅडल’ में थीं.  ’ तब उनसे हामी भी भरनी पड़ती है.  लोग मेरे साथ सेल्फी लेना चाहते हैं, पर हम युनीफार्म में उन्हे सेल्फी नही दे सकते और वह हमारे फैन होेते हैं, तो उन्हें मना करना भी अच्छा नहीं लगता.  तब कुछ बहाने खोजने पड़ते हैं, जो कि अंदर से बुरा लगता है.  क्योंकि उनके प्यार की ही वजह से हम यहां पर हैं.  इससे ड्यूटी करने मंे भी दिक्कत आती है. 
 ‘सुपर माॅडल’ बनने के बाद बाॅलीवुड से जुड़ना कैसे हुआ?
 मेरा मानना है कि इंसान जो चाहे वह कर सकता है.  मैने अभिनय के क्षेत्र में उतरने के बारे में कभी नहीं सोचा था.  मेरा सपना सिर्फ माॅडलिंग करना ही रहा है.  मगर फिल्म ‘लकड़बग्घा’ के निर्माता व निर्देषक को अपनी इस फिल्म के लिए नार्थ इस्ट की ऐसी लड़की की तलाष थी, जो अभिनय व एक्षन कर सके.  उन्ही दिनों मेरा ‘सुपर माॅडल’ वाला  वीडियो वायरल हुआ था.  तो अंषुमन झा ने मुझे इस फिल्म का आफर दिया, जिसे मैने स्वीकार कर लिया.मुझे ख्ुाषी है कि यह फिल्म रिलीज हो रही है.  यह एक एक्षन प्रधान फिल्म है, जिसमंे इजरायली मार्षल आर्ट क्राव मागा नजर आएगा. 
 इस फिल्म की कहानी कोलकाता में एक सजग पषु प्रेमी युवक के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने लापता भारतीय नस्ल का कुत्ता ‘शोंकू‘ की तलाश कर रहा है.  इस प्रक्रिया में कोलकाता बंदरगाह पर अवैध पशु व्यापार उद्योग का पता चलता है.  पशु व्यापार सरगना और पशु प्रेमी युवक के बीच युद्ध छिड़ जाता है.  
 इस फिल्म में अंतरराष्ट्रीय तकनीषियनों के साथ काम करने का अवसर मिला.  इसके कैमरामैन  फ्रांसीसी जीन मार्क सेल्वा,संगीतकार बेल्जियम के संगीतकार साइमन फ्रैंक्केट और एक्षन केचा खाम्फकडी की ओंग-बक टीम द्वारा किया गया है.    

 फिल्म ‘‘लकड़बग्घा’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहना चाहेंगी?
 इसमें मेरे किरदार का कोई नाम नही है.  वह विलेन के साथ है और फाइटिंग करती है.  यह एक स्ट्ांग लड़की है, जिसे फाइटिंग करना अच्छा लगता है.  जिसको नियम तोड़ना अच्छा लगता है.  उसे इंसान की हड्डियंा तोड़ना पसंद है.  तो यह एक स्ट्ांग ओमन का किरदार है, जिसे निभना मेरे लिए काफी सहज रहा.  मैने विक्की अरोड़ा से मार्षल आर्ट के नए फार्म ‘क्राव मागा’ को भी सीखा.  मार्षल आर्ट में षुरू से मेरी रूचि रही है.  मुझे लगता है कि हर लड़की को मार्षल आर्ट सीखना चाहिए. 
 फिल्म के ट्रेलर का क्या रिस्पांस मिल रहा है?
 फिल्म का ट्ेलर आने के बाद से मुझे सकारात्मक फीड बैक मिल रहा है. 
 पुलिस फोर्स में आपको अपने सीनियर के आदेष का पालन करना होता है.  जबकि फिल्म में निर्देषक के आदेष का पालन करना होता है.  दोेनों में आपने क्या फर्क महसूस किया?
 जमीन आसमान का अंतर है.  फिल्म के सेट पर एक मिनट देर से पहुॅचने पर कोई असर नही होता.  मगर पुलिस फोर्स में एक मिनट क्या दस सेकंड भी देर हो जाए, तो पूरी फोर्स के सामने जमकर गाली सुननी पड़ती है.  मैं इसे अपमान नही समझती.  क्योंकि  हमें समय के साथ चलना है.  अगर हम समय के साथ नही चलेंगंे, तो कौन चलेगा? फिर भी कई बार लगता है कि एक मिनट देर होने पर इतनी गालियां नही पड़नी चाहिए.  
 फिल्म के सेट पर निर्देषक के इषारे पर काम करना अलग अनुभव रहा.  निर्देषक को मेरे सीन पसंद आ रहे थे.  मैं सब कुछ स्वाभाविक कर रही थी. 
 अंषुमन झा के साथ काम करने के क्या अनुभव रहे?
 बहुत विनम्र इंसान हैं.  उनके अंदर इंसानियत है.  वह मेरी सुरक्षा को लेकर भी चिंता व्यक्त करते हैं.  मैं देष के दूसरे छोर, नार्थ ईस्ट से आती हॅूं, इसलिए जब पहली बार  मुंबई आ रही थी, तो मैं व मेरे माता पता काफी  चिंतिंत थे.  उन्होेने मुझे अच्छी जगह व अच्छे माहौल में ठहराया.  षूटिंग के दौरान कई बार मैं ख्ुाद पर अंकुष नही रख पाती थी, जिसके चलते एक्षन दृष्यों में अंषुमन झा को चोटें भी लगी.  एक बार मेरा जूता उनके सिर पर लगा था.  क्यांेकि मैं फिल्म के एक्षन दृष्यों के लिए प्रषिक्षित नही हॅूं.   

फिल्म की षूटिंग के लिए आप कोलकाटा गयी थीं.  फिर मंुबई दो बार आ चुकी हैं. दोेनो षहर कैसे लगे?
 सिक्किम मंेे रहते हुए दिल्ली,मंुबई व कोलकाटा के संबंध में जिस तरह की खबरें सुनती थी, उससे मुझे लगता था कि मैं सिक्किम से बाहर जाकर काम नही कर पाउंगी.  मुझे लगता था कि मैं कैसे बड़े बड़े कैमरे के सामने जाकर षूटिंग कर पाउंगी.  पहले तो मुझे इंटरव्यू देना भी नहीं आता था.  लेकिन ‘लकड़बग्घा’ में अभिनय करने की वजह से सब कुछ मेरे लिए सहज हो गया है.  मेरे मन से हर तरह का डर खत्म हो चुका है.  मुझे मंुबई व कोलकाटा बहुत अच्छे लगे.  मेरा आत्मविष्वास बढ़ चुका है. 
 कलाकार के अंदर संजीदगी, इमोषनल, दयालु व कोमल होता है.  पर पुलिस अफसर बहुत कठोर होता है.  वह दंगाइयों के संग दयालु नही बन सकता? तो पुलिस अफसर के रूप में इन दोनो के बीच कैसे सामंजस्य बैठाती हैं?
 आपने एकदम सही कि पुलिस की वर्दी पहनकर हम कोमल या दयालु नहीं हो सकते.  हम अंदर से कोमल व दायलु होते हैं, मगर हमें अपने कड़क व्यक्तित्व को ही लोगों के सामने पेष करना होता है.  पुलिस के रूप मंे हमें कानून व्यवस्था को बनाए रखना होता है.  फिर हम तो ‘स्पेषल एंटी राॅयट फोर्स’ मंे हैं.  आप लोगों को पता नहीं होगा कि हमें कभी भी अपना बैगबांधकर किसी भी जिले के दंगा ग्रस्त इलके मंे पहुॅचकर उस पर काबू पाने की जिम्मेदारी होती है.  कई बार हमें एक या दो सप्ताह भी ऐसे इलाके में रहना संभव है.  हम अपनी इच्छानुसार किसी के भी सवाल का जवाब नहीं दे सकते.  हमें समय को भांप कर अपने आप मेें बदलाव लाना होता है.  इस तरह मेरी रोजमर्रा की जिंदगी काफी रोचक है.   

आपको आनंद महिंद्रा ने ‘जावा बाइक’ गिफ्ट की है.  इसकी कोई वजह रही..?
 मैं एक टीवी चैनल पर इंटरव्यू देने गयी थी.  इस इंटरव्यू के दौरान मैने जो कुछ कहा, उसमंे से एक लाइन ‘आई एम डाॅटर आफ द नेषन’,  आनंद महेंद्रा और अनुपम जी को बहुत पसंद आयी.  उसके बाद आनंद महेंद्रा ने ट्वीटर पर कमेंट लिखते हुए मुझे जावा बाइक का आफर भी दिया.  इसी वजह से मुझे जावा बाइक मिली.  मैं सही मायनो में ख्ुाद को देष की ही बेटी मानती हॅूं. 
 तो आपको मोटर बाइक की सवारी करना पसंद है?
 जी हाॅ! बहुत ज्यादा..मुझे मोटर बाइक पर ट्ैकिंग करना भी पसंद है.  अभी मेरा अपना किचन बाइक है.  मैं अपनी बाइक पर ही ड्यूटी पर आती जाती हॅंू.  बाइक के हर इवेंट का हिस्सा बनती हॅूं.  मैने जावा बाइक से एडवेंचर राइड्स भी की हैं.  मुझे बाइक की सवारी करना बहुत पसंद है.  इस साल मैं ‘बाइक रेस’ में हिस्सा लेने की योजना बना रही हॅूं.  इसके लिए मैं ट्ेनिंग भी ले रही हॅूं.  आगे देखते हंै कि क्या होता है. 
 आपके षौक क्या हैं?
 बाइक राइडिंग.   

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