छोटी उम्र में संगीत के शौक के कारण मुंबई पहुंचने वाले दुष्यंत प्रताप सिंह की पहचान अब फिल्म निर्देशक के तौर पर होती हैं. बतौर निर्देश क उनकी दो फिल्में ‘‘100 बक्स’’ और ‘‘त्राहिमाम’’ प्रदर्षित हो चुकी हंै. जबकि उनकी नई फिल्म ‘‘जिंदगी श तरंज है’’ बीस जनवरी को प्रदर्षित होने जा रही है. जिसमें हितेन तेजवानी,दलेर मेंहदी,षावर अली, हेमंत पांडे,ब्रूना अब्दुल्ला जैसे कलाकारों ने अभिनय किया है.
प्रस्तुत है दुष्यंत प्रताप सिंह से हुई बातचीत के अंश ...
अब तक की अपनी यात्रा के बारे में बताएं?
मूलतः मैं आगरा का रहने वाला हॅूं और मैं मेडिकल स्टूडेंट था. संगीत का बड़ा षौक रहा है. स्कूल व काॅलेज में मैं संगीत के कार्यक्रमों में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया करता था. जीटीवी पर एक संगीत का कार्यक्रम ‘अंताक्षरी’ आया करता था. हम लोग छोटे से कस्बे से हैं. जहां टीवी पर नजर आना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी. ‘अंताक्षरी’ का हिस्सा बनने पर लगा कि हम स्टार बन गए. तो हम मंुबई आ गए. मंुबई में संगीतज्ञ सुरेश वाड़ेकर से संगीत की षिक्षा हासिल की.उसके बाद गायक व अभिनेता के रूप में मंुबई में काफी काम किया.
आपने आगरा में अपनी संगीत कंपनी के तहत म्यूजिक अलबम बनाने षुरू किए. फिर वहां से मंुबई वापस आकर फिल्म निर्देषित करने की कैसी यात्रा रही?
मैंने आगरा से कल्याणजी आनंद जी के भाई बाबला षाह जी के साथ मिलकर संगीत कंपनी षुरू की थी. उनके बेटे के नाम पर यह कंपनी थी. जिसके अंतर्गत मेरे व उनके कुछ अलबम रिलीज हुए. उन दिनांे कैसेट व सीडी आया करती थीं. यह बहुत अलग बाजार था. मैं रिटेल विके्रता तो था नहीं. संगीत कंपनी की भी फिल्मांे की ही भांति वितरण कंपनियंा हुआ करती थीं, वह सब करते हुए मैंने बहुत कुछ सीखा. वह सब बहुत बड़ा सिंडीकेट था, जिससे मैंने ख्ुाद को असहज महसूस किया. उसके बाद मैने अपनी कंपनी के तहत टीवी प्रोडक्षन का काम षुरू किया. हमने कई रियालिटी षो बनाए. टीवी पर कई टाॅक षो किए. उन्ही दिनों अवार्ड का एक नया दौर षुरू हुआ, तो मुझे ‘आल इंडिया जर्नलिस्ट एसोसिएश न’ के अवाॅर्ड को निर्देषित करने का अवसर मिला. तो मुझे लगा कि यह काम हमें करना चाहिए. मंैने लखनउ में पुलिस के श हीदों के लिए ‘षौर्य अवार्ड’ षुरू किए. जिसे काफी सराहना मिली. फिर मंुबई मे अवार्ड षुरू किए. एक है-‘‘टाॅप 50 आयॅकाॅनिक अवार्ड’, जिसमें हम अपनी इंडस्ट्ी के लोगों का धन्यवाद अदा करते हैं. दूसरा है-‘वल्र्ड आॅयकाॅन अवाॅर्ड’, जिसे हम विदेषों में करते हैं. पहला अवाॅर्ड समारोह दुबई से षुरू किया था. फिर थाईलैंड व श्रीलंका में किया. सिनेमा बनाने का मेरा एक सपना था. 2002 में पहली फिल्म ‘पत्थर’ बनाने का प्रयास किया. उस वक्त बचपना ज्यादा था. .जिसमें उस वक्त की स्टार वसंुधरा दास को षामिल किया था. फिल्म बन गयी, पर मैं कर्ज से डूब गया.दोस्तों की मदद से हम उससे उबरे. फिर मैने आगरा से ही एक और फिल्म षुरू की, मगर उन लोगों ने धोखा देकर अंत में मुझे ही बाहर कर दिया.वहां मेरी कुछ गलती थी, पर मैने दुखद मोड़ पर उस फिल्म से अलग हो गया. और निर्णय लिया कि फिल्म नही बनाना है.
पर आप फिल्म बना रहे हैं?
जी..यह दोस्तों की मेहरबानी है. मैं अवार्ड व संगीत के कामों में व्यस्त था. जयपुर में डाॅ. प्रतिमा तोतला हैं. उन्होने मुझे पैसे देते हुए फिल्म बनाने पर जोर दिया. उस वक्त मेरे दिमाग में एक वेष्या की कहानी थी, जो उन्हे पसंद आयी. और उस पर हमने ‘100 बक्स’ नाम से फिल्म निर्देषित की. इस तरह फिर से मेरी सिनेमा की यात्रा षुरू हुई. यह फिल्म सिनेमाघरों तक पहुॅची. उसके बाद पीछे मुड़कर देखने की जरुरत नही पड़ी. अभी 16 दिसंबर को हमारी फिल्म ‘‘त्राहिमाम’’ प्रदर्षित हुई थी, जिसे काफी पसंद किया गया. और अब बीस जनवरी 2023 को हमारी नई फिल्म‘‘जिंदगी श तरंज है’ प्रदर्षित होने जा रही है. हमारे नौ प्रोजेक्ट तैयार हैं. कुछ वेब सीरीज व लघु फिल्में भी तैयार हैं.
स्वतंत्र निर्देश क के तौर पर पहली ही फिल्म ‘‘हंड्ेड बक्स’’ एक वेष्या की जिंदगी पर बनाते हुए आपको रिस्क नहीं लगा था?
मैं तो खुद को एक्सीडेंटल निर्देश क मानता हॅूं. प्रोडक्षन करते हुए समझ में आ गया था कि फिल्म की सारी बागडोर निर्देश क के हाथ में ही होती है. यह भी समझ में आ गया था कि आप नए हैं, तो स्टार कलाकार आपके साथ काम नही करंेगें. बड़े स्टूडियो भी आपके साथ खड़े नहीं होंगे. छोेटे लोग सिर्फ आपको चीट करेंगें. ऐसे में मुझे समझ में आया कि जब फिल्म बनती है, तो निर्माता, संगीतकार, कलाकार वगैरह कोई नही होता, केवल निर्देश क ही होता है. निर्देश क ही मालिक होता है. यदि आप निर्देश क हैं,तो आप अपने हिसाब से फिल्म बना सकते हैं. इसलिए मैने निर्देश न के क्षेत्र में कदम रखा. टीवी में मैं ख्ुाद निर्देश क होता था, इसलिए वहां पर मुझे कोई दिक्कत नहीं आ रही थी. तो जैसे ही मैने फिल्म निर्देश क की जिम्मेदारी स्वीकार की,सब कुछ सहजता से होने लगा. हर कोई मुझसे ख्ुाश हैं. मैने कलाकारों, संगीतकारांे,तकनीषिनों से काफी कुछ सीखा भी.यहां तक कि मैने अपने सहायक से भी सीखा. मैं सिनेमा से जुड़ने वाले हर किसी को सलाह दॅूंगा कि अगर आप गंभीरता से सिनेमा बनाना चाहते हैं, आपको सिनेमा की समझ है, आप तकनीषियन के रूप मंे स्थापित होना चाहते हैं, तो निर्देश न के क्षेत्र में कदम रखें.
‘100 बक्स’ के बाद ‘त्राहिमाम’ जैसे विश य पर फिल्म क्यों?
इन दिनों हर कोई सत्य घटनाक्रम पर आधारित हार्ड हीटिंग फिल्में देखना चाहता है. यह फिल्म 1984 में कानपुर में घटित सत्य घटनाक्रम से प्रेरित है. 2002 में जिस फिल्म में मेरे साथ धोखा हुआ था, उस फिल्म की कहानी को मैने ही इसी घटनाक्रम पर लिखा था. अब सत्य घटनाक्रम पर किसी का काॅपीराइट नहीं होता. कोई भी अपने तरीके से उस घटना पर फिल्म बना सकता है. इसलिए मैने ‘त्राहिमाम’ का निर्देश न किया. वैसे भी मेरे दिमाग में जो होता है, उसे मैं साकार करके ही रहता हॅूं. इसे मैने धौलपुर,राजस्थान में फिल्माया था.
बीस जनवरी को प्रदर्षित हो रही आपकी नई फिल्म ‘‘जिंदगी श तरंज है’’की योजना कैसे बनी?
हकीकत में यह फिल्म ‘त्राहिमाम’ से पहले बनी थी. यह बड़े बजट की फिल्म है. इसके निर्माता फिल्म इंडस्ट्ी से जुड़े हुए हैं. उन्होने कुछ दूसरी फिल्में भी बनायी हैं. हम इसे एक अच्छी फिल्म के तौर पर बेहतर तरीके से पेश करना चाहता था. मेरा यकीन है कि यह फिल्म लोगों को जरुर पसंद आएगी.
‘जिंदगी श तरंज है’ किस तरह की फिल्म है?
यह वास्तव में रहस्य प्रधान फिल्म है. सस्पेंस थ्रिलर विश य पर काम करना मुझे ज्यादा पसंद है. यह एक लड़की की कहानी है, जिसका पति बदल जाता है. क्लायमेक्स में जब दर्षक को पता चलेगा कि क्या कैसे हुआ, तो दर्षक सन्न रह जाएगा. यह पूरी तरह से हितेन तेजवानी की फिल्म है.
‘जिंदगी श तरंज है’ से बड़े कलाकारों को व दलेर मेहंदी को जोड़ने की कोई खास वजह रही?
विषय के अनुसार ही कलाकार व टीम का चयन किया. मैं सबसे पहले षेरे पंजाब दलेर मेंहदी के पास गया और उनसे अपनी फिल्म के एक गाने को मेरे बजट में गाने का अनुरोध किया. वह बिना किसी श र्त के तैयार हो गए. गाने की डबिंग होने के बाद मैने उनसे पूछा कि क्या वह इस गाने पर परफार्म करना चाहेंगे? यानी कि वीडियो भी कर लें. उन्होने कहा कि कर लेंगंे. जब पैसे की बात हुई, तो उन्होने कहा कि,‘ इस बार मैं अपने हिसाब से पैसे दे दॅूं, मगर अगली बार वह जो मांगेगे,वह देना पड़ेगा. ’ इस तरह हमने दलेर मेंहदी व ब्रूना अब्दुल्ला पर गाना फिल्मा लिया. फिर हमने हितेन तेजवानी से बात की. उन्हे कहानी बहुत पसंद आयी. फिर उन्होने इतने पैसे मंागे कि मैने कहा कि मेरी पूरी फिल्म का बजट ही उतना है. मैने उन्हे एक रकम बतायी कि मैं इतनी रकम ही दे सकता हॅूं. दो दिन बाद वह तैयार हो गए. फिर हेमंत पांडे भी आ गए.षावर अली को भी कहानी पसंद आयी. षूटिंग के दौरान हर कलाकार ने सहयोग किया.
‘जिंदगी शतरंज है’ को कहां फिल्माया है?
हमने अठारह दिन में इसे मुंबई व नोएडा में फिल्माया है.
कोविड के बाद बॉलीवुड की हालत काफी खराब हो गयी है.आपको क्या लगता है?
सबसे अच्छी बात यह हुई कि अब फेक /नकली लोगों की सफाई हो गयी है. लोग घर पर बैठकर सोशल मीडिया व मीडिया की ताकत को समझ चुके हैं. पहले मंुबई में लोग झूठ बोलकर अपनी फिल्म को सफलता दिलाने में सफल हो जाते थे. अब उनका झूठ नही चल रहा है. इससे इंडस्ट्ी को फायदा हुआ है. अब जेन्यून लोग काम कर पा रहे हैं. आर्थिक संकट तो पूरे विष्व मंे हैं. कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा. हमारी इंडस्ट्ी के अच्छे दिन आने वाले हैं.
इसके बाद क्या कर रहे हैं?
इस माह बहुत बड़ी खबर देने वाला हॅूं. जो प्रोजेक्ट तैयार हैं,वह भी लोगों के सामने आएंगे.