भारत में 2019 से पहले तक छः ऋतु यानी मौसम हुआ करते थे। लेकिन 2019 में एक कोविड 19 नामक वायरस आया और हर मौसम को Corona मौसम से इन्फेक्टेड कर गया। हिन्दुस्तान हो या पाकिस्तान या एशिया से 20 साल आगे चलने का दावा करने वाले अमेरिका और ब्रिटेन ही क्यों न हों, सबकी होशियारी धरी रह गयी और पूरे ग्लोब की सरकारों ने शुरुआत में लॉकडाउन लगाकर अपने घुटने टेक दिए लेकिन जल्द ही, मात्र छः महीने में ही सबको समझ आ गया कि ऐसे बाज़ार बंद करने और मुफ़्त सुविधाएं बांटने से भट्टा बैठ जायेगा। बस इसी के बाद से सरकारों ने अपने अपने तुर्रे, अपनी अपनी मोटू-पतलू वाली बुद्धि लगानी शुरु कर दी।
शुरुआत में जब लॉकडाउन खुला तो बताया कि भई दिन में सब खुला है, रात में लॉकडाउन है। मतलब कोरोना दिन में आराम करता है, या कोरोना हॉलिवुड फिल्मों का वैम्पायर है जो धूप में निकलता है तो झुलस जाता है।
फिर पता चला कि अगर आप गाड़ी में बैठे हो, भले ही अकेले हो, चारों दरवाज़े और शीशे चढ़े हुए हों तो भी आपको मास्क पहनना होगा! सोचिए, 100 नैनोमीटर यानी चींटी सौवें हिस्से से भी छोटा कोरोना वायरस अपनी खोपड़ी मार-मारकर पहले गाड़ी का शीशा तोड़ेगा, फिर अंदर घुसकर अकेले आदमी के मास्क न पहने होने का फायदा उठा लेगा। ये वायरस है कि रामसे बंधुओं की फिल्मों वाली चुड़ैल जो अकेले आदमी पर ही चिपटती है।
तीसरी नौटंकी देखिए साहब, मेट्रो और बस में अगर आप एक सीट छोड़कर नहीं बैठे हैं तो आपको 200 रुपए फाइन देना पड़ेगा, क्योंकि आप रूल्स तोड़कर कोरोना फैला रहे हैं। लेकिन वहीं जब मेट्रो ‘असुविधा के लिए खेद है’ कहती हुई दस-दस मिनट में आती है और एक-एक मेट्रो बोगी में इतने लोग ठुसे होते हैं कि उनकी नाक आपस में टकरा रही होती है, तब वो फाइन वाले बंधु नज़र नहीं आते। तब कोई नियम कानून छांटने वाला प्रकट नहीं होता। ये अपने नियम तब थोपते हैं जब सही मायने में मेट्रो या बस में ‘भीड़’ नहीं होती, जिस वक़्त सब ‘सुरक्षित’ बैठे होते हैं।
वहीं चुनावी रैली में देखिए, जनाब हर नेता अपनी ताकत दिखाने में लाख, दो लाख, दस लाख तक की भीड़ इकट्ठा करता है और बिना मास्क पहने बेशर्म होकर उंगलियों का V बनाते हुए फोटो भी खिंचवाता है। वहाँ कोई नहीं आता फाइन काटने। आप दिल्ली में बिना मास्क अकेले घूमकर देखिए, आपको 2000 रुपए नगद या यूपीआई से देने पड़ेंगे। लेकिन 10 लाख भीड़ से एक रुपया भी फाइन लगाने की हिम्मत किसी पुलिसिए में नहीं।
क्यों होगी भला, उत्तर पूर्वी भारत में वो कहावत है न, सैयां भए कोतवाल अब डर काहे का, यहाँ तो सैयां मंत्री हैं, नेताजी हैं, इनसे तो कोरोना भी घबराता है। कोरोना खुद मंत्री जी से बचता फिरता है कि कहीं मंत्री जी उसके वायरस साथियों को एमएलए समझकर खरीद न लें।
और नेताजी कोई अकेले तो नहीं, कुम्भ मेले में उमड़े श्रद्धालु मास्क लगाकर तो नहा नहीं सकते, वो भी नंग-धड़ंग डुबकियाँ मार रहे हैं। वो बेखौफ हैं क्योंकि उन्हें भी पता है Corona इन्ट्रोवर्ट है, इतने लोगों के सामने, वो भी नंग-नहाते लोगों के सामने आने से शरमाएगा, कोरोना का सारा फोकस तो गाड़ी में बैठा वो अकेला आदमी है जो कोरोना से बच गया तो पेट्रोल के दाम उसे मार डालेंगे, फिर भी थोड़ी सांस बची तो 2000 का फाइन उसकी जान ले लेगा। इन सबके मुकाबले उस भले से मिडल क्लास आदमी को कोरोना वायरस में अमृत की बूंद नज़र आने लगेगी। सोचेगा, इससे तो कोरोना ही हो जाए, कम से कम घर बैठकर आराम तो कर सकेगा। क्योंकि अगर गाड़ी छोड़ सड़क पर पैदल घूमा तो पुलिस वाले लाठी बजाने लगेंगे।
क्या आपने किसी पुलिस वाले को मास्क न होने की वजह से किसी आम गरीब साधारण से आदमी को पीटते हुए देखा है? यकीनन आपको देखकर लगेगा मानों वो लाठी मार-मार Corona भगाने की कोशिश कर रहे हैं। एक पुलिस वाले ने तो भावनाओं में बहकर ऐसे लाठी चलाई कि उसका खुद का मास्क गिर गया। पर, राह चलते आम आदमी को सरकार सब्सिडी भले ही दे दे, डंडा नहीं देती। डंडा वो पुलिस वालों को ही देती है। इसीलिए कोरोना पुलिस वालों के पास जाने से भी डरता है।
लेकिन वहीं गले में हाथ डालकर आईपीएल मैच में खेलते खिलाड़ी और उनके स्टाफ से Corona की बिल्कुल नहीं बनती। न पुलिस वालों की लाठियाँ वहाँ तक पहुँचती हैं। कानून के हाथ भले ही लंबे हों, पर लाठियाँ छोटी होती हैं, ये सिर्फ और सिर्फ निचले तबके के लोगों तक ही पहुँच पाती हैं। तो जाने अनजाने सरकार हमारी आने वाली पीढ़ी को समझा रही है कि आप कोरोना से बचना चाहते हैं तो झुंड में नंग-धड़ंग स्नान कीजिए, चुनावी रैली में नारे लगाइए, अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलिए, क्योंकि अगर आप गाड़ी में अकेले बैठे तो आपको कोरोना हो जायेगा, मेट्रो में घुसे तो फाइन लग जायेगा और सड़क पर रात में अकेले चले तो डंडे आपकी हड्डियाँ तोड़ देंगे।
हाँ, झुंड में आप सेफ हैं। नेताजी हैं न, सबको बचा लेंगे। अब मुस्कुराइए और उंगलियों का V बनाते हुए Corona के साथ सेल्फ़ी लीजिए।
'>सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’