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Birthday Special: ये दुनिया बड़ी खुदगर्ज़ है, मैं मरा नहीं कि मुझे भूल जायेगी– आई-एस जौहर

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Birthday Special: ये दुनिया बड़ी खुदगर्ज़ है, मैं मरा नहीं कि मुझे भूल जायेगी– आई-एस जौहर

आई-एस जौहर बड़ी दिलचस्प शख्सियत का नाम था। उन जैसा दूसरा मुमकिन ही नहीं है। भला क्यों? क्योंकि इन्द्र-सेन जौहर, यानी आई-एस जौहर उस फिल्मकार का नाम है जिसके एसिस्टेंट यश चोपड़ा रह चुके थे। है न मज़ेदार बात। - सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’

जौहर परिवार ने सोचा कि आज नहीं तो कुछ दिन बाद सही, घर तो लौट ही जायेंगे

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आई-एस जौहर 16 फरवरी 1920 के रोज़ टोलागंज (अब टालागंग – पाकिस्तान) में हुआ था।  जौहर साहब पढ़ने में बहुत तेज़ थे। उन्होंने ग्रैजवैशन तो की ही, पॉलिटिक्स से मास्टर्स भी की। फिर भी उनका मन पढ़ाई से न हटा तो वकालत करने लगे और जानकार हैरान न होइए कि अपनी एलएलबी भी पूरी कर ली। इसी दौरान सन 42 में उन्होंने रामा बइंस से शादी भी कर ली। यानी कुल 22 साल की उम्र में वो शादीशुदा वकील थे। इतना सब कुछ करने के बाद, आई-एस जौहर पटियाला में एक शादी अटेंड करने आए थे। उनका परिवार भी उनके साथ था। वो साल था 1947, वो महीना था अगस्त का और तब शादियाँ दो दिन में निपटाई नहीं जाती थीं, पंजाबियों में ढेर सारे फंक्शन हुआ करते थे। जौहर साहब उस शादी में ही थे कि खबर आई कि दंगे छिड़ गए हैं। सारे देश में अफरा-तफरी मच गई। जौहर परिवार ने सोचा कि चलो आज नहीं तो कुछ दिन बाद सही, घर तो लौट ही जायेंगे। लेकिन वो कभी न लौट सके। किस्मत को यही मंजूर था।

फिल्म श्रीमती जी (1952) से उन्होंने निर्देशन भी शुरु कर दिया और उनकी बनाई फिल्म नास्तिक (1954) ने चौतरफा तारीफ़ें बटोरीं।

publive-imageलौटने की बजाए जौहर साहब मुंबई चले गए और किस्मत की एक के बाद सीढ़ी बनती उन्हें बॉलीवुड तक ले गई। वो बी टाउन जो उन दिनों बहुत गंदा माना जाता था। पर आई-एस जौहर तो अपने आप में अनोखे थे। अपने अनोखे  अंदाज़ में लिखते थे। सन 49 में आई ‘एक थी लड़की’ से उन्होंने अपने सफ़र की शुरुआत की थी। इस फिल्म में उनका रोल तो था ही, साथ साथ लिखी भी जौहर साहब ने ही थी। इसी फिल्म की हिरोइन मीना शौरी से उनकी ऐसी आशनाई चली थी कि उन्होंने अपनी पहली पत्नी को तलाक दे दिया था। फिर एक के बाद एक फिल्म में उन्होंने कॉमिक रोल कर अपना सिक्का ऐसा जमाया कि उनके बिना सन 50 की फिल्म अधूरी लगने लगी। फिल्म श्रीमती जी (1952) से उन्होंने निर्देशन भी शुरु कर दिया और उनकी बनाई फिल्म नास्तिक (1954) ने चौतरफा तारीफ़ें बटोरीं।

जौहर वो अपनी किस्म की अनोखी फिल्में बनाने के लिए जाने जाते थे। उन्होंने मिस इंडिया (1957) भी बनाई और मिस्टर इंडिया (1961) में भी काम किया। वो जब फिल्मों में घुसे तो उन्होंने अपने साथ-साथ अपने भाई यश जौहर को भी ले आए। वही यश जौहर जिनके सुपुत्र करन जौहर एक से एक भव्य फिल्म बनाते हैं।

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अपने भाई के सिवा अपनी पहली पत्नी ने हुए बच्चों को भी उन्होंने फिल्मों में काम दिया। उनकी बेटी अंबिका जौहर 5 राइफल्स में थीं। ये फिल्म भी अपने किस्म की अनोखी थी। इसमें राजेश खन्ना की जगह उनका डूप्लकैट था जिसको नाम दिया था राकेश खन्ना, ऐसे ही शशि कपूर का डूप्लकैट था, शाही कपूर। आई-एस जौहर खुद थे।

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जौहर ने जिस वक़्त तलाक लिया था, वो भी आज़ाद भारत के पहले कुछ तलाक में से था। उस समय तक आधी जनता तो जानती ही नहीं थी कि तलाक होता क्या है और कैसे लिया जाता है, उस वक़्त वो तलाक ले चुके थे।

जौहर ऐसी ही अनोखी शख्सियत थे जौहर साहब। देव आनंद की बहुचर्चित फिल्मों में से एक जॉनी मेरा नाम में उनका ट्रिपल रोल थे – पहला राम, दूजा राम और तीजा राम। उन्होंने एमर्जेंसी खत्म होने के बाद एक और ऐसी फिल्म बनाई थी जिसपर बहुत विवाद हुआ था, उस फिल्म का नाम था नसबंदी। इस फिल्म में हर बड़े हीरो का डूप्लकैट था और कहानी भी इंदिरागांधी के राज के समय की थी। ये व्यंग्यात्मक फिल्म थी जिसने विवाद के साथ-साथ लोगों को हँसाया भी बहुत था।

ऐसी रंगीन शख्सियत के मालिक आई-एस जौहर सीरियस टोन में एक बात कहते थे “मैं जब तक जिंदा हूँ तब तक तो ठीक, जिस दिन मैं मरा मुझे दुनिया भूल जायेगी”

शायद यही वजह थी कि उन्होंने अपने नाम से फिल्में बनाईं, उन्होंने जो किया वो हटकर किया। ज़िंदगी में बहुत से लोग एक शादी नहीं कर पाते, उन्होंने पाँच-पाँच शादिया कीं पर पहली बीवी से अंबिका और अनिल को छोड़, फिर उनके कोई औलाद नहीं हुई।

आई-एस जौहर की हर बात सही थी पर हम इस बात को पूरी तरह झुठलाते हैं कि दुनिया उन्हें भूल जायेगी, जी नहीं! जौहर साहब आप हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे और आपकी फिल्में आने वाली कई पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनेंगी।

publive-image आई-एस जौहर बड़ी दिलचस्प शख्सियत का नाम था। उन जैसा दूसरा मुमकिन ही नहीं है। भला क्यों? क्योंकि इन्द्र-सेन जौहर, यानी आई-एस जौहर उस फिल्मकार का नाम है जिसके एसिस्टेंट यश चोपड़ा रह चुके थे। है न मज़ेदार बात। - सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’

जौहर परिवार ने सोचा कि आज नहीं तो कुछ दिन बाद सही, घर तो लौट ही जायेंगे

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आई-एस जौहर 16 फरवरी 1920 के रोज़ टोलागंज (अब टालागंग – पाकिस्तान) में हुआ था।  जौहर साहब पढ़ने में बहुत तेज़ थे। उन्होंने ग्रैजवैशन तो की ही, पॉलिटिक्स से मास्टर्स भी की। फिर भी उनका मन पढ़ाई से न हटा तो वकालत करने लगे और जानकार हैरान न होइए कि अपनी एलएलबी भी पूरी कर ली। इसी दौरान सन 42 में उन्होंने रामा बइंस से शादी भी कर ली। यानी कुल 22 साल की उम्र में वो शादीशुदा वकील थे। इतना सब कुछ करने के बाद, आई-एस जौहर पटियाला में एक शादी अटेंड करने आए थे। उनका परिवार भी उनके साथ था। वो साल था 1947, वो महीना था अगस्त का और तब शादियाँ दो दिन में निपटाई नहीं जाती थीं, पंजाबियों में ढेर सारे फंक्शन हुआ करते थे। जौहर साहब उस शादी में ही थे कि खबर आई कि दंगे छिड़ गए हैं। सारे देश में अफरा-तफरी मच गई। जौहर परिवार ने सोचा कि चलो आज नहीं तो कुछ दिन बाद सही, घर तो लौट ही जायेंगे। लेकिन वो कभी न लौट सके। किस्मत को यही मंजूर था।

फिल्म श्रीमती जी (1952) से उन्होंने निर्देशन भी शुरु कर दिया और उनकी बनाई फिल्म नास्तिक (1954) ने चौतरफा तारीफ़ें बटोरीं।

publive-imageलौटने की बजाए जौहर साहब मुंबई चले गए और किस्मत की एक के बाद सीढ़ी बनती उन्हें बॉलीवुड तक ले गई। वो बी टाउन जो उन दिनों बहुत गंदा माना जाता था। पर आई-एस जौहर तो अपने आप में अनोखे थे। अपने अनोखे  अंदाज़ में लिखते थे। सन 49 में आई ‘एक थी लड़की’ से उन्होंने अपने सफ़र की शुरुआत की थी। इस फिल्म में उनका रोल तो था ही, साथ साथ लिखी भी जौहर साहब ने ही थी। इसी फिल्म की हिरोइन मीना शौरी से उनकी ऐसी आशनाई चली थी कि उन्होंने अपनी पहली पत्नी को तलाक दे दिया था। फिर एक के बाद एक फिल्म में उन्होंने कॉमिक रोल कर अपना सिक्का ऐसा जमाया कि उनके बिना सन 50 की फिल्म अधूरी लगने लगी। फिल्म श्रीमती जी (1952) से उन्होंने निर्देशन भी शुरु कर दिया और उनकी बनाई फिल्म नास्तिक (1954) ने चौतरफा तारीफ़ें बटोरीं।

जौहर वो अपनी किस्म की अनोखी फिल्में बनाने के लिए जाने जाते थे। उन्होंने मिस इंडिया (1957) भी बनाई और मिस्टर इंडिया (1961) में भी काम किया। वो जब फिल्मों में घुसे तो उन्होंने अपने साथ-साथ अपने भाई यश जौहर को भी ले आए। वही यश जौहर जिनके सुपुत्र करन जौहर एक से एक भव्य फिल्म बनाते हैं।

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अपने भाई के सिवा अपनी पहली पत्नी ने हुए बच्चों को भी उन्होंने फिल्मों में काम दिया। उनकी बेटी अंबिका जौहर 5 राइफल्स में थीं। ये फिल्म भी अपने किस्म की अनोखी थी। इसमें राजेश खन्ना की जगह उनका डूप्लकैट था जिसको नाम दिया था राकेश खन्ना, ऐसे ही शशि कपूर का डूप्लकैट था, शाही कपूर। आई-एस जौहर खुद थे।

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जौहर ने जिस वक़्त तलाक लिया था, वो भी आज़ाद भारत के पहले कुछ तलाक में से था। उस समय तक आधी जनता तो जानती ही नहीं थी कि तलाक होता क्या है और कैसे लिया जाता है, उस वक़्त वो तलाक ले चुके थे।

जौहर ऐसी ही अनोखी शख्सियत थे जौहर साहब। देव आनंद की बहुचर्चित फिल्मों में से एक जॉनी मेरा नाम में उनका ट्रिपल रोल थे – पहला राम, दूजा राम और तीजा राम। उन्होंने एमर्जेंसी खत्म होने के बाद एक और ऐसी फिल्म बनाई थी जिसपर बहुत विवाद हुआ था, उस फिल्म का नाम था नसबंदी। इस फिल्म में हर बड़े हीरो का डूप्लकैट था और कहानी भी इंदिरागांधी के राज के समय की थी। ये व्यंग्यात्मक फिल्म थी जिसने विवाद के साथ-साथ लोगों को हँसाया भी बहुत था।

ऐसी रंगीन शख्सियत के मालिक आई-एस जौहर सीरियस टोन में एक बात कहते थे “मैं जब तक जिंदा हूँ तब तक तो ठीक, जिस दिन मैं मरा मुझे दुनिया भूल जायेगी”

शायद यही वजह थी कि उन्होंने अपने नाम से फिल्में बनाईं, उन्होंने जो किया वो हटकर किया। ज़िंदगी में बहुत से लोग एक शादी नहीं कर पाते, उन्होंने पाँच-पाँच शादिया कीं पर पहली बीवी से अंबिका और अनिल को छोड़, फिर उनके कोई औलाद नहीं हुई।

आई-एस जौहर की हर बात सही थी पर हम इस बात को पूरी तरह झुठलाते हैं कि दुनिया उन्हें भूल जायेगी, जी नहीं! जौहर साहब आप हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे और आपकी फिल्में आने वाली कई पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनेंगी।

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