अनुपम खेर जैसे दिग्गज अभिनेता अपनी प्रतिभा से हमेशा चमकते रहते हैं और द एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर, होटल मुंबई और अब वन डे फिल्मों में अभिनय कर के अपने निजी कॅरियर ग्राफ को एक नई दिशा दे रहे हैं। अनुपम खेर ने कई सालों पहले बनी फिल्म वेडनस डे में मुंबई पुलिस कमिशनर के रोल में तारीफ पाई थी. अब वह नई फिल्म 'वन डे' में जज के रूप में सामने आ रहे हैं।अशोक नंदा के निर्देशन में बनी ये फिल्म एक ऐसे बूढ़े व्यक्ति की कहानी पर है, जो न्याय की तलाश में दर दर भटकता है, लेकिन उसे निराशा हाथ लगती है और फिर एक दिन उसके साथ ऐसा कुछ होता है, जिससे उसकी जिंदगी की दशा और दिशा, दोनों बदल जाती हैं। जज के रूप में अनुपम खेर का चरित्र इस बात को लेकर उलझन में हैं कि सही लोगों को कानूनी मजबूरियों के चलते न्याय नहीं मिल पा रहा है।
निर्देशक अशोक नंदा का दावा है कि महेश भट्ट की सारांश के बाद अनुपम खेर एक बार फिर ऐसे किरदार में है, जो उनके अभिनय प्रतिभा को परदे पर निखार देगा। अनुपम खेर कहते हैं कि कानून हाथ में लेना सही नहीं लेकिन जानना जरूरी है। इसमें अपने रोल की तैयारी के लिए मैंने कई केस ऑब्जर्व किए। मैंने महसूस किया कि देश की अदालतों में हजारों केस लंबित पड़े हैं। लोग जेलों में सड़ रहे हैं जिनके केस पर कोई सुनवाई नहीं हो रही। कहीं पर जजों की कमी है तो कहीं पर जज हैं लेकिन वकीलों की कमी है। कुल मिलाकर न्याय व्यवस्था में कहीं न कहीं कमी है और इसका हल तलाशने की कोशिश की गई है। आपकी अपकमिंग मूवी 'वन डे' वेडनस डे से कितनी मिलती जुलती है। इस सवाल पर अनुपम कहते हैं कि समानता यही है कि दोनों थ्रिलर फिल्में हैं और दोनों में ही मुख्य पात्र कानून को अपने हाथ में लेकर फैसले करता है।
इस मौके पर अनुपम ने अपनी आटोबायोग्राफी के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि इसमें जीवन के कई किस्से हैं। बॉडी शेमिंग और बुलिंग के सवाल पर उन्होंने कहा कि स्कूल में तो मुर्गा बना दिया जाता था, बाल नहीं थे तो लोग पूछते थे एक्टर कैसे बन गया। बुली और बॉडी शेमिंग करने वालों के लिए अनुपम ने कहा कि इन्हें इग्नोर करना सबसे बेहतर है। अनुपम ने किताब में लिखा है कि 35 साल में 515 फिल्में कैसे कर पाए। वह कहते हैं कि मेरी किताब पढ़कर लोगों को प्रेरणा मिल सकती है। वेडनस डे में अपने किरदार के लिए मैंने खुद भी कमिश्नर राकेश मारिया से प्रेरणा ली थी।