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5 अक्टूबर 1922 को जन्मे शंकर रघुवंशी जिनको हम शंकर-जयकिशन की मशहुर जोड़ी के शंकर के नाम से जानते हैं. शंकर को शुरुआत से संगीत का बड़ा शौक रहा था, उन्होंने कई तरह के म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बजाना सिखा था, जैसे तबला, सितार, मैन्डोलिन, पखावज, इसके साथ हीं शंकर ने जयपुर घराने में कृष्णा कुट्टी से कथक भी सीखा था. एक बार जब शंकर हैदराबाद की गलियों से गुज़र रहे थे तब उन्हें एक नाचने वाली की महफ़िल से तबले की गलत धुन सुनाई दी और वो वहां भाग कर गये, और उन्होंने उनको बताया की ये धुन गलत है, और उन्होंने उनको सही तरीके से बजाना भी बताया, जिसको सुन कर सबने उनकी खूब तारीफ की. बाद में उन्होंने मास्टर सत्यनारायण और हेमवती का थिएटर ग्रुप ज्वाइन कर लिया, और जब ये दोनों मुंबई शिफ्ट हो रहे थे तब शंकर भी उनके साथ हीं मुंबई आ गये और उन्होंने उनके साथ हीं पृथ्वी थिएटर ज्वाइन किया. शंकर ने 75 रुपये की तनख्वाह के साथ तबला वादक के रूप थिएटर ज्वाइन किया था, अपने बचे हुए समय में वो कंपोजर एमेरिटस हुस्नलाल भगतराम को असिस्ट करते थे, और थिएटर के कुछ नाटक में छोटे-मोटे किरदार भी निभाया करते थे.
वो पृथ्वी थिएटर हीं था जहाँ वो लेजेंडरी अभिनेता- निर्माता और निर्देशक राज कपूर से मिले थें, और अपने म्यूजिकल पार्टनर जयकिशन से भी यहीं मिले थें. शंकर और जयकिशन की जोड़ी ने कई सालों तक म्यूजिकल इंडस्ट्री और लोगो के दिलों पर राज किया था, और आज भी उनके गाने लोग गुनगुना रहें हैं. पृथ्वी थिएटर में काम करने के अलावा, शंकर अक्सर एक गुजराती निर्देशक, चंद्रवदन भट्ट के कार्यालय भी जाया करते थे, जिन्होंने शंकर को एक संगीतकार के रूप में ब्रेक देने का वादा किया था. उसी ऑफिस में कई बार शंकर ने जयकिशन को देखा था, जयकिशन से बातचीत के दौरान शंकर को पता चला कि जयकिशन एक हारमोनियम वादक हैं और वो भी इनकी तरह हीं काम की तलाश में निर्माताओं के ऑफिस के चक्कर काट रहें हैं. शंकर ने जयकिशन को पृथ्वी थिएटर में नौकरी लगवाने के लिए उन्होंने बिना पृथ्वीराज कपूर (जिनको प्यार से पापाजी भी कहते थे) से पूछे जयकिशन को बुला लिया, पृथ्वीराज कपूर ने शंकर के चयन का सम्मान करते हुए जयकिशन को एक हारमोनियम वादक के रूप में स्वीकार किया. शंकर-जयकिशन की दोस्ती इतनी गहरी हो गयी की लोग उन्हें प्यार से 'राम-लक्ष्मण' बुलाने लगे थे. अपने संगीत के अलावा उन्होंने प्रसिद्ध नाटक 'पठान' में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं.
जब राज कपूर अपनी पहली निर्देशित फिल्म आग (1948) बना रहे थें तब उन्होंने शंकर-जयकिशन को पृथ्वी थिएटर के कंपोजर का अस्सिटेंट बना दिया था. शंकर- जयकिशन ने फिल्म में अपने कुछ धुन भी दिए थे. फिल्म बरसात से इन्हें पहला ब्रेक मिला जब राज कपूर की फिल्म के कंपोजर के साथ थोड़ी मतभेद हो गयी तब इन्हें हीं उस फिल्म के म्यूजिक का काम सौंपा गया. और फिर इन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
SJ का हिंदी फिल्म म्यूजिक में योगदान माप के परे है, उन्होंने अपने मोहक धुन से सिल्वर स्क्रीन पर रोमांस को गीत से दर्शाया है. अपने समय से हमेशा आगे का सोचने वाले शंकर-जयकिशन ने अपने समय में हीं फ्यूज़न म्यूजिक बना दिया था जिसके आज लोग दीवाने हैं. अपने पुरे करियर में भारतीय शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने में शंकर-जयकिशन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. वैसे तो उनकी प्रथा थी अपने फिल्मों में एक भारतीय शास्त्रीय संगीत रखना पर मगर वो उसके साथ साथ पश्चिमी धुनों को भी इस्तेमाल करते थे, पश्चिमी शास्त्रीय आधारित वाल्ट्ज लय का भी अपने कई गानों में इस्तेमाल किया है.
भारत में जैज संगीत और नयी शैली इंडो-जैज के विकास में भी शंकर जयकिशन का बड़ा योगदान रहा है. भारत की सबसे प्रारंभिक इंडो-जैज रिकॉर्डिंग भी शंकर-जयकिशन की एल्बम 'राग-जैज' शैली है. इस एल्बम में कई पश्चिमी म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट का इस्तेमाल हुआ था. इस एल्बम में भारतीय रागों पर आधारित 11 गाने बनाये गये थे.
सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार लगातार जीतने वाले पहले संगीतकार बने थे. भारत सरकार द्वारा 1968 में उन्हें पद्मश्री द्वारा सम्मानित किया गया था. उनके समान में 3 मई 2013 को उनके चेहरे वाला एक डाक टिकट भी जारी किया गया था. शंकर जयकिशन के कुछ मशहूर गाने, 'आ नीले गगन तले प्यार हम करें', 'आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे', 'अजीब दास्ताँ है ये कहा शुरू कहाँ खत्म', 'बरसात में हमसे मिले तुम', 'आवारा हूँ या गर्दिश में भी', 'अये मेरे दिल कहीं और चल'.
आयुषी सिन्हा