आपको अपनी मौत के बारे में पता है बावजूद इसके आप अपनी बाकी बची जिन्दगी को बिन्दास अंदाज से जीते हैं ये बहुत बड़ी बात है। निर्देशक हावर्ड रोजमेयर की फिल्म ‘जिया और ये बात बहुत खबसूरती से बताती है।
रिचा चड्ढा और कल्कि कोचलिन ट्रिप फ्रेंड्स हैं। स्वीडन जाकर वे एक ही होटल में रूम पार्टनर हैं। रिचा जंहा एक गुमसुम और सीरियस रहने वाली लड़की है वहीं कल्कि एक बिन्दास और अपनी मनमर्जी की जिन्दगी जीने में विश्वास करती है। कल्की की जिन्दगी में एक लड़का अर्सलान गोनी आता है। रिचा और कल्कि की के स्वभाव के पीछे एक वजह है। रिचा बिजनिस में नाकाम हो अपने पिता की मौत का कारण अपने आपको मानती है, इसीलिये वो बार बार आत्महत्या करना चाहती है, वहीं कल्कि को लीवर कैंसर है। उसकी जिन्दगी हफ्ते दो हफ्ते की है लेकिन फिर भी वो उसे पूरे खुशनुमा अंदाज में वो सब कुछ करना चाहती है जिसके लिये एक पूरी जिन्दगी चाहिये। जब ये बात रिचा और अर्सलान को पता चलती है तो अर्सलान उससे शादी कर लेता है और रिचा उसे अपना लीवर दान कर देना चाहती है। लेकिन कल्कि ऐसा नहीं होने देती बल्कि मरने के बाद रिचा को एक नये सिरे से अपनी जिन्दगी जीने का एहसास करवा जाती है।
आज एक से एक बढ़िया कहानीयों को लेकर युवा निर्देशक अपनी फिल्मों से प्रभावित कर रहे है हावर्ड भी उन्हीं में से एक है। उसने दो किरदारों के माध्यम से ये बताने की कोशिश की है कि जिन्दगी से ज्यादा वे पल अनमोल है, जो आपके पास बचे। इसलिये उन्हें मौज मजे के साथ जीया। कल्कि की भूमिका देख कर बरसों पहले आई फिल्म आनंद की याद आ जाती है। रिचा और कल्कि की कास्टिंग परफेक्ट है। फिल्म का बहाव ऐसा है कि दर्शक उसके साथ ही बहता रहता है। स्विटजरलैंड और स्वीडन की लोकेशंस लुभावनी हैं तथा एक दो गीत कहानी का सार बताते चलते हैं।
फिल्म में जंहा रिचा चड़डा ने एक कुशल अभिनेत्री की तरह अपने किरदार को पूरी शिद्दत से निभाया है उसी प्रकार कल्की एक कैंसर पेशेंट को जिस अंदाज से निभाती है, दर्शक उसकी अदायगी के कायल हो कर रह जाते हैं। अर्सलान गोनी, जरीना वहाव तथा सुधांशु पांडे छोटे छोटे किरदारों में हैं लेकिन वे कहानी का हिस्सा हैं।
जिया और जिया जैसी फिल्में आपको जीने का अदांज सिखाती है लिहाजा इस तरह की फिल्में एक बार जरूर देखनी चाहियें।