होली जैसी रंगीन त्यौहार को लेकर बॉलीवुड के प्रत्येक स्टार के पास पुरानी यादों का जखीरा भरा हुआ होता है, उनकी यादों में वो दिन हिलौरे लेते रहते है जब उनके पास समय ही समय होता था शरारतें करने के लिए, होली को फुल ऑन इंजॉय करने के लिए। ऐसे ही वेटरन कलाकारों में जॉनी लीवर भी है जो अपनी कॉमेडी और भरपूर मजाकिये स्वभाव तथा नटखट हरकतों के लिए देश-विदेश में बेहद लोकप्रिय हैं। होली को लेकर उन्हें अपने जीवन की ढेर सारी यादें हैं, जिसमें मस्ती है, शरारत है। बात उन दिनों की है जब वे फिल्मों में नहीं आए थे। उनके पास वक्त ही वक्त था। वे अपनी बस्ती में शरारत मास्टर के नाम से जाने जाते थे। होली के दिन सुबह से ही वे ढोल पिटारा, रंग रोगन लेकर तैयार हो जाते थे और दोस्तों के साथ रोड पर ऐसे ऐसे हुड़दंग मचाते कि लोग दूर से ही उन्हें देखते ही भाग जाते थे। होली के पहले होलिका दहन के लिए लकड़ियां इकट्ठा करने की जिम्मेदारी भी जॉनी की थी। वे पहले तो सीधे साधे बड़े प्यारे प्यारे अंदाज से लोगों से चंदा मांगते थे, एक रूपये, दो रूपये, चाहे जो भी दे दो। लेकिन जब होली के नाम पर लोग कंजूसी करते तो जॉनी अपनी शरारत पर उतर आते और बस्ती के 'बैठीे चाली' (ऐसे घर जिसके छत एस्बेस्टस के बने थे) में रहने वालों के दरवाजे के बाहर सालों से पड़े पुराने लकड़ी की मेज कुर्सी या खटिया या कोई भी भंगार उठा लाते। अगर चंदा देकर वापस ले जाना हो तो ले जाओ वरना, गई भैंस पानी में, होलिका के ज्वाला में वो लकड़ी का सामान स्वाहा हो जाता था। उसी बस्ती में एक झगड़ालू बुड्ढा चाचा रहता था जो बच्चों को वहां खेलने कूदने नहीं देता था और अपनी एक टूटी खटिया जान बूझकर ऐसे अड़ा के सामने रास्ता रोकता था ताकि कोई खेल ना पाये। होली के लिये जब बुड्ढे चाचा ने चन्दा देने के बदले बच्चों को गाली देकर भगा दिया तो जॉनी ने होलिका दहन की रात चुपके से उसकी वो खटिया उठाई और होलिका की अग्नि में डाल दिया। बस फिर क्या था, उस तरफ से गालियों की बौछार और इस तरफ से जॉनी और उनकी पलटन की 'बुरा ना मानो होली है ' के नारों से वातावरण गूंज उठा। बच्चों की मस्ती के आगे आखिर उस चाचाजी को भी हथियार डाल देना पड़ा।
होली की वो मस्ती, वो धूम,वो गालियां, जॉनी लीवर को आज भी याद है
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