क्या टॉक्सिक मसक्यूलिनीटी का बाहुबली है ये फ़िल्म ? By Mayapuri Desk 01 Jul 2019 | एडिट 01 Jul 2019 22:00 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर जिस धूम से शाहिद कपूर की फिल्म 'कबीर सिंह' (तेलुगू फिल्म 'अर्जुन रेड्डी' का रीमेक), बॉक्स ऑफिस पर शानदार कलेक्शन कर रही है, उससे जहां सदियों से स्त्री को पैर की जूती समझ कर मसलने कुचलने की मानसिकता रखने वाले मर्दों को जैसे मुंह मांगी मुराद, यानी मुंह मांगी फिल्म मिल गई वहीं समाज का वह जागरूक वर्ग अवाक और ठगा सा महसूस करने लगा है जिन्हें मर्दो की इस मिसोजिनी, टॉक्सिक मसक्यूलिनीटी वाली सोच को बदलने में सदियां लग गई थी और आज जब लगने लगा था कि नवयुग के नवनिर्माण में प्रधानमंत्री मोदी जी की सचेष्टाओं से देश की बहू बेटियों को सम्मान और न्याय मिलना शुरू हो गया है तभी, 'कबीर सिंह' जैसी फिल्म का बेखौफ बनना तथा बिना सेंसरशिप वाले रोड़ा,अड़चनों के रिलीज हो जाना, और तो और, रिलीज के प्रथम दिन ही फ़िल्म 'पद्मावत' की सफलता का रिकॉर्ड तोड़ देना, सही मायने में स्त्रियों के मान सम्मान को धता बताकर, बैक टू स्क्वायर वन परिस्थिति मे ला खड़े करने वाली बात हो गई। भद्र समाज को यह एक चिलिंग, डरावनी एहसास सा लगने लगा है क्योंकि 'कबीर सिंह' जैसी फिल्म को , दर्शकों द्वारा इस कदर सर माथे पर उठाने से बॉलीवुड के फिल्म मेकर्स को मनी मेकिंग का एक नया नब्ज मिलता हुआ जान पड़ता है, जहां व्यापार को विवेक और मोरैलिटी से ज्यादा प्राथमिकता दिए जाने का खतरा हमेशा रहता है। एक वह जमाना था, जब लगभग साठ वर्ष पहले की फिल्मों में मर्दों की प्रभुता और औरत को सिर्फ भोग, विलास तथा मसलने, कुचलने और सजावट की वस्तु की तरह प्रस्तुत किया जाता था, लेकिन समय के बदलते प्रारूप और जागरूक एक्टिविस्ट तथा समाज की आधी आबादी की निर्भयाओं द्वारा की गई अथक मेहनत ने भारतीय स्त्रियों को सिनेमा जगत के माध्यम से अपने हक, सम्मान, मर्यादा के साथ जीना सिखाया। फिल्म 'मदर इंडिया', मिर्च मसाला, अस्तित्व, लज्जा, इंग्लिश विंगलिश, मरदानी, गुलाब गैंग, क्या कहने, चमेली, ज़ुबैदा, ब्लैक, कहानी, जैसी न जाने कितनी नारी प्रधान फिल्मों ने नारी शक्ति का आह्वान किया। दीपा मेहता, अपर्णा सेन, मेघना गुलज़ार, ज़ोया अख्तर, गौरी शिंदे, गुरिन्दर चड्ढा, मीरा नायर जैसी स्त्री फ़िल्म मेकर्स के जोखन पूर्ण प्रयासों ने समाज के आईने में स्त्री का अस्तित्व उज्जवल और गौरवान्वित किया, लेकिन, आज जब अबला से सबला बनने की राह में 'मी टू' मुहिम के साथ स्त्री अपने सम्मान के लिए हर युद्ध लड़ने के लिए तैयार है तब मिसोजिनी, एफर्टलेस सेक्सीज़म, वीमेन वॉयलेंस, ओवर पोससेसिव और ऑब्सेसिव कल्चर्ड मिजाज को पोषित करने वाली ये फिल्म 'कबीर खान' समाज को दोबारा उसी निचले पायदान पर ला खड़ी करती है जहां से वर्षों लग गए दबी कुचली नारियों को उबारने में। माना कि यह फिल्म एक खास काल्पनिक किरदार की अपनी सोच, अपनी विकृति और अपनी टॉक्सिक मस्कुलीनिटी वाली कहानी है लेकिन जागरूक समाज का मानना है कि यह कोई एक्सक्यूज नहीं है विवादों से बचने के लिए। इस फ़िल्म के मुख्य किरदार को प्रोटागोनिस्ट के रूप में दिखाया गया है या एंटागोनिस्ट के रूप में? यह स्पष्ट क्यों नहीं किया गया ? फिल्म के मुख्य किरदार के परिजन यह बयान देकर इस किरदार को दोषमुक्त करने पर तुले हैं कि इस तरह के डरावने चरित्र वाले फिल्में पहले भी बन चुकी है, जैसे फिल्म- लव, अंजाम, तेरे नाम, अमर, रेड, रोज, रांझणा। लेकिन 'कबीर सिंह' के साथ इन फिल्मों को एकाकार नहीं किया जा सकता क्योंकि जहां उन फिल्मों में, उन ग्रे सैडिस्ट चरित्र वाले नायकों का अंत बुरा दिखाया गया है वही फ़िल्म 'कबीर सिंह' में इस एंटागनिस्ट मिजाज वाले नायक को सिर्फ इस बिना पर महिमामंडित किया गया है कि वह बेहद इंटेलीजेंट, जीनियस है और बेहतरीन सर्जन है, भले ही उनकी यह निपुणता नशा लेने के बाद ही सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट में उतरती हो। क्या सिर्फ जीनियस होने की वजह से इस नशा खोर, मीसोजीनिस्टिक, ऑब्सेसिव, दिमाग वाले सनकी चरित्र पर समाज का कोई नार्मल रूल लागू नहीं होना चाहिए? कबीर का अपनी मर्जी से एक खामोश शर्मीली लड़की पर अपना कब्जा जमाते हुए, अपने दोस्तों से कहना कि 'वह मेरी बंदी है, इसे छोड़कर बाकी सब लड़कियां तुम लोगों की है' या फिर सहमी, अंतर्मुखी लड़की को सबके सामने चूम कर उस पर अपना प्रभुत्व दर्शाना, प्यार तो नहीं हो सकता, अॉबसेशन जरूर हो सकता है। इस तरह के ऑब्सेसिव मर्दों को इस फ़िल्म से और भी बल मिल जाए तो इसमें शक नहीं। इस फिल्म में नायिका को ज्यादा बोलने का अधिकार नहीं दिया गया है, कबीर सिंह अपनी तथाकथित प्रेमिका से उसकी राय नहीं पूछता है बल्कि हुक्म सुनाता है। 'यहां ना बैठो, यहां चलो, ऐसा करो, वैसा करो, दुप्पट्टा ठीक करो'। जब ऐसे पागल प्रेमी के चक्कर में पड़कर आखिर लड़की पूछती है कि तुम्हें मुझ में क्या अच्छा लगता है , तो नायक का यह कहना, 'तुम्हारे सांस लेने का अंदाज', उसके प्रेम की गहराई नहीं बल्कि उसके मन में मांसल खूबसूरती के प्रति दीवानगी झलकाती है। जागरूक दर्शकों का मानना है यह उस तरह की फिल्म है जिसे लीनचियन मिसोजिनी कहा जाए तो गलत नहीं। लीनचियन शब्द अमेरिकन फिल्म मेकर 'डेविड लिंच' के नाम पर रखा गया है जो इस तरह की सरियल थ्रिलर बनाने के लिए मशहूर है। लेकिन क्या यह हमारी भारतीय कल्चर के अनुरूप सही है? इस फिल्म को लेकर महिला वर्ग इस कदर भड़के हुए हैं कि अब उन मर्दों की खैर नहीं जो कबीर का अनुसरण करने को लालायित हो रहे हैं। महिलाओं के अनुसार ये उस तरह की फिल्म है जिसमें नफरत और घृणा के इतने नीच स्तर की अभिव्यक्ति हुई है जिसे देखने और पसंद करने के लिए एक अलग नीच जॉनर की दरकार हो सकती है। इस फिल्म का रिलीज होकर सफल हो जाना क्या यह डरावना कन्क्लूज़न तैयार नहीं करता कि मर्द आखिर मर्द ही रहेंगे। इस कन्क्लूजन को क्यों हवा दी जा रही है? मर्दो की ज्यादती को निरस्त परास्त करने के लिए हर वक्त तत्काल खड़ी हो जाने वाली वूमेन एक्टिविस्ट और वीमेन सपोर्ट करने वाली एनजीओ को अब इस तरह की फिल्मों के प्रति भी अपनी आंखें खोलना होगा, ताकि ऐसी फिल्मों की शह पाकर दुष्टता को महिमामंडित करने वाले मर्द, हम स्त्रियों को वापस अपने पैर की जूती बनाने का साहस ना करने लगे। दर्शकों के अनुसार यह फिल्म सिर्फ नारी असम्मान को ही नहीं दर्शाता बल्कि धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर, चिकित्सकों को भी अपमानित करती है। क्या कोई डाक्टर तब ही अच्छा सर्जरी करने के काबिल होता है जब वह नशे की हद पार कर चुका होता है? खबरों के अनुसार एक डॉक्टर ने तो इस फिल्म पर केस भी दर्ज कर दिया है। जिस तरह से भारतीय स्क्रीन पर धूम्रपान, शराबपान करने के दृश्यों से पहले वार्निंग दी जाती है, वैसे ही इस फिल्म के रेन्फोरसिंग, परपेकचुएटिंग सेक्सीज़म, टॉक्सिक मस्कुलीनिटी और नशे से भरपूर दृश्यों से पहले वार्निंग भी बार बार वार्निंग दी जानी चाहिए। अंत में सबसे बड़ा प्रश्न यह आता है कि इस तरह की फिल्म, बिना किसी अड़चन के सेंसरशिप में पास कैसे हो गई? जोशी साहब, यह क्या हो रहा है? जब जरा जरा सी बात पर फिल्मों को (खासकर छोटी फिल्मों को) महीनों महीनों तक अटकाया जाता है तब यह फिल्म कैसे बिना रुकावट रिलीज हो गयी? यह प्रश्न है उन फिल्म मेकर्स के हैं जो कहने लगे हैं कि यहां पर पार्शियलिटी चलती है। #kiara advani #Shahid Kapoor #bollywood #Kabir Singh हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article