दहशतगर्दो के खिलाफ करीम मौहम्मद

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By Mayapuri Desk
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दहशतगर्दो के खिलाफ  करीम मौहम्मद

कश्मीर के आतंकवाद पर लगातार फिल्में बनती रही हैं। लेकिन निर्देशक पवन कुमार शर्मा की फिल्म ‘ करीम मौहम्मद’ आतंकवाद की सताई एक ऐसी कौम से परिचय करवाती है जो कश्मीर में बकरवाल के नाम से जानी जाती है। बकरवाल एक ऐसी कौम है जिनका कोई घर बार नहीं होता। उनका मुख्य काम है भेड़ बकरीयां पालना। ये मुख्यता इसी कौम के बाप बेटे की कहानी है।

फिल्म की कहानी

हामिद यानि यशपाल शर्मा एक ऐसा बकरवाल है जो अपने बेटे हर्षित राजवत और पत्नि जूही सिंह के साथ अपनी भेड़ बकरीयों में खुश है। उसका बेटा अक्सर उससे ऐसे सवाल करता रहता है जो इन्सान, इन्सानियत तथा आतकंवाद से जुड़े होते हैं। ये परिवार पहाड़ से उतरकर मैदानों की तरफ सफर कर रहा है। इस बीच उन्हें आतंकवादी भी टकराते हैं, जो जबरदस्ती उनका पैसा और भेड़ तक उठा कर ले जाते हैं। नीचे हामिद अपनी बहन अल्का अमीन की बेटी की शादी में सपरिवार आता है उसकी बहन ऐसी बकरवाल है जो बजांरो वाली जिन्दगी छोड़ एक गांव में अपना घरबार बनाकर अपने पति और बच्चों के साथ रह रही है। वहां हामिद को पता चलता है कि वो गांव आतंकवादीयों को शरण देता है। उस वक्त भी उसके जीजा के यहां कुछ आतंकवादी ठहरे हुये हैं। हामिद अपने जीजा और पूरे गांव के सामने इस बात का विरोध करता है। तो उसका जीजा कहता हें कि यहां वे मजबूर हैं क्योंकि अगर वे आतकंवाददियों का विरोध करते है आतंकवादियों से उनकी जान को खतरा हें और अगर वे उन्हें अपने यहां उनके डर से उन्हें शरण देते हें तो पुलिस उनकी रक्षा नहीं बल्कि उन पर ही जुल्म ढाहती है। यहां हामिद का कहना है की वे मिलकर दहशतगर्दो का मुकाबला करेगें तभी उनसे निजात पा सकते हैं। इस बीच आतंकवादियों को हामिद के बारे में पता चलता है तो हामिद और उसकी बीवी को मार देते हैं। इसके बाद हामिद का बेटा उन आतंकवादियों से लड़ने लिये ऐसा माहौल बनाता है कि पूरा गांव उसका साथ देते हुये दहशतगदों को मार गिराते हैं। इस प्रकार दहशतगर्दो के खिलाफ हामिद मरने के बाद पूरे गांव को जाग्रत कर जाता है।

फिल्म का कन्टेंट बहुत यूनिक है लेकिन उसे निर्देशक, कमजोर पटकथा के चलते सही तरह से दर्शा नहीं पाये। लिहाजा फिल्म अपनी बात सही ढंग से नहीं कह पाती। हालांकि हिमाचल की लोकेशन और बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा रहा।

यशपाल शर्मा ने अपनी भूमिका को सशक्त अभिव्यक्ति दी है। उसके बेटे के रोल में हर्शित राजवत भी ठीक रहा। तथा अल्का अमीन, राजेश जैस,रवि जंगू, कवि सुनील जोगी तथा जुही सिंह आदि कलाकारों का अच्छा सहयोग रहा।

कुछ कमियों के बाद भी फिल्म आंतकवादियों के जुल्म की शिकार एक कश्मीरी कौम से जरूर परिचय करवाती है।

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