भारतीय सिनेमा की ‘प्रथम महिला’ देविका रानी के बारे में जानने में भले ही आज के युवा में उत्सुक न हो, पर फिल्म शौकीनों के लिए थिएटर अभिनेत्री कर्मी लिलेट दुबे एक नाटक लेकर आ रही हैं- ‘देविका रानी’। यह नाटक देविका रानी के फिल्मी जीवन और वास्तविक जीवन की झलक है। देविका रानी और हिमांशु राय पहले भारतीय सिनेमायी थे- जिन्होंने 1930 के दशक में फिल्म मेकिंग की ट्रेनिंग बर्लिन में लिया था और भारत आकर ‘बॉम्बे टॉकीज’ फिल्म कंपनी की शुरूआत की थी। देविका हिमांशु राय की पहली फिल्म 1933 में पर्दे पर आयी थी- ‘कर्मा’, जिसके बाद ये दोनों पति-पत्नी बन गये थे। अशोक कुमार और देविका रानी की फिल्में उन दिनों खूब पसंद की जाती थी, जिनमें एक थी ‘अछूत कन्या’। कर्नल एम.एन. चौधरी की बेटी देविका रानी चौधरी नोबल पुरस्कार से सम्मानित रविन्द्रनाथ टैगोर के भाई की पोती थी। हिमांशु राय के निधन के बाद देविका ने रूस के पेंटर-चित्रकार शेरिक से विवाह कर मुंबई छोड़ दिया था। फिर बंगलौर में एक बड़ा जमीन का प्लॉट लेकर अपना रिटायरमेंट जीवन जीने लगी थी। जब भारत सरकार ने फाल्के अवॉर्ड सिनेमावालों को देने की योजना बनायी थी, तब पहला पुरस्कार फाल्के के नाम का देविका रानी (1970) को ही गया था। उनको पदमश्री सम्मान भी मिला था। देविका रानी की पुरानी फिल्में अब भले ही भारत सरकार के फिल्म संग्रहालय की शोभा बन कर रह गयी हों, उन पर एक नाटक की शुरूआत करके लिलेट दुबे ने एक उल्लेखनीय कदम बढ़ाया है। काश! शोहराब मोदी, जयराज और भारत भूषण पर भी काम करने के लिए कुछ लोग आगे आते!
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