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इस दिन, हम भारतीय संगीत के उस दिग्गज को याद करते हैं, एक ऐसे व्यक्ति जिसकी धुनों ने हजारों सपनों को चित्रित किया और लाखों दिलों को झकझोर दिया: रामचन्द्र नरहर चितलकर, जिन्हें सी. रामचन्द्र या अन्ना साहब के नाम से जाना जाता है. उनकी पुण्य तिथि सिर्फ कैलेंडर पर एक तारीख नहीं है; यह उस संगीतकार की विरासत को फिर से देखने का क्षण है जिसने भारतीय सिनेमा की संगीतमय टेपेस्ट्री का ताना-बाना बुना.
रामचन्द्र की जर्नी की शुरुआत साधारण तौर पर हुई, लेकिन उनकी प्रतिभा पर काबू नहीं पाया जा सकता था . थिएटर और मूक फिल्मों में उनके शुरुआती दिनों ने उनकी भविष्य की प्रतिभा की नींव रखी. फिर टॉकीज़ का युग आया और इसके साथ ही, रामचन्द्र की प्रतिभा सचमुच निखर उठी. उन्होंने कहानी कहने को उन्नत करने, सिनेमाई अनुभव का एक अविभाज्य हिस्सा बनने के लिए संगीत की शक्ति को समझा.
परंपरा और नवीनता को सहजता से मिश्रित करने की उनकी क्षमता अद्भुत थी . उन्होंने कर्नाटक और हिंदुस्तानी जैसे भारतीय शास्त्रीय रूपों को अपनाया, फिर भी उनमें पश्चिमी प्रभाव डाला, जिससे एक ऐसी ध्वनि तैयार हुई जो विशिष्ट रूप से उनकी अपनी थी. "मेरा नाम है भगवान" की चंचल लय से लेकर "ऐ मेरे वतन के लोगों" की दिल को छू लेने वाली धुन तक, उनकी रचनाएँ भावनाओं का बहुरूपदर्शक थीं, प्रत्येक स्वर एक अलग भावना पैदा करता था. बॉलीवुड के लिए गाने लिखने के अलावा उन्होंने कुछ मराठी गाने 'मालामाली तरुण्य मेज' भी लिखे, जिसे आशा भोसले जी ने गाया था.
लेकिन रामचन्द्र सिर्फ संगीतकार नहीं थे; वह एक कहानीकार भी थे. उन्होंने पात्रों और दृश्यों की बारीकियों को समझा, और ऐसे स्कोर तैयार किए जो उनके सार को प्रतिबिंबित करते थे. चाहे वह "शोला जो भड़के" की चंचल शरारत हो या "सुहानी रात ढल चुकी" की मार्मिक लालसा, उनका संगीत कथा का विस्तार बन गया, जिसने दर्शकों को फिल्म की दुनिया में गहराई से खींच लिया.
रामचन्द्र की विरासत व्यक्तिगत गीतों से कहीं आगे तक फैली हुई है. उन्होंने एक पूरे युग के ध्वनि परिदृश्य को आकार दिया और आने वाली पीढ़ियों के संगीतकारों को प्रभावित किया. लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी जैसे दिग्गजों के साथ उनके सहयोग ने ऐसा जादू पैदा किया जो आज भी कायम है. रामचन्द्र ने लता मंगेशकर के साथ कुछ प्रसिद्ध और अविस्मरणीय युगल गीत गाए जैसे कि फिल्म आज़ाद (1955) में "कितना हसीन है मौसम" और अलबेला (1951) में "शोला जो भड़के".
इस दिन, जब हम रामचन्द्र को याद करते हैं, तो आइए हम न केवल उनके संगीत का, बल्कि उसमें निहित भावना को भी याद करें. यह समावेशिता की भावना थी, कुछ सुंदर और कालातीत बनाने के लिए विविध प्रभावों का सम्मिश्रण. यह एक ऐसी भावना थी जो सीमाओं को पार करने और दिलों को छूने की संगीत की शक्ति को समझती थी. तो, आज, रामचन्द्र की धुनों को अपनी तरंगों में भरने दें, उन्हें अपने मन को जीवंत रंगों से रंगने दें, और उन्हें उस जादू की याद दिलाने दें जो संगीत बुन सकता है. अपनी रचनाओं में रामचन्द्र ने केवल संगीत ही नहीं रचा; उन्होंने हमें एक ऐसी विरासत उपहार में दी जो आने वाली पीढ़ियों तक हमें प्रेरित और मंत्रमुग्ध करती रहेगी.
आयुषी सिन्हा