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मानव सोहल: मेरी फिल्म राज कपूर साहब की कहानी नहीं है,बल्कि उनकी फिल्मों की छवि है

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By Shanti Swaroop Tripathi
मानव सोहल: मेरी फिल्म राज कपूर साहब की कहानी नहीं है,बल्कि उनकी फिल्मों की छवि है
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मूलतः कोटा निवासी मानव  सोहल ने अपने कैरियर की षुरूआत  रंगमंच से की थी। उसके बाद ‘जीटीवी’ के काफिला से वह टीवी पर नजर आए। फिर ‘एक और जंग’ व ‘एक प्यार ऐसा भी’ जैसी फिल्में की.पर बाद मे ंवह सिर्फ टीवी तक ही सीमित होकर रह गए। पिछले बीस वर्ष के अंदर वह ‘रामायण’, ‘सावधान इंउिया’,‘क्राइम पेट्ोल’,दगी के’,‘जोधा अकबर’, ‘युग’, ‘बालिका वधू’,‘जय मां दुर्गा’,‘आधे अधूरे’, ‘महाराणा प्रताप’, ‘कर्म फलदाता षनि’ व ‘महाकाली’ सहित तकरीबन दो सौ सीरियलों में अभिनय कर चुके हैं। पर फिल्मों में वापसी करने के लिए मानव सोहल ने स्वयं एक फिल्म ‘ दो बेचारे’ का निर्माण करने के साथ उसमंे मुख्य भ्ूामिका निभायी, जो कि एमएक्सप्लेअर पर स्ट्ीम हो रही है। अब मानव सोहल बतौर लेखक, निर्माता,निदे्रषक व अभिनेता फिल्म ‘‘मैं राज कपूर हो गया’’ लेकर आए हैं, जो कि सत्रह फरवरी को सिनेमाघरों में पहुॅच रही है

प्रस्तुत है मानव सोहल से हुई बातचीत के अंष...

आप अपने पिछले बीस वर्ष के कैरियर को किस तरह से देखते हैं?

मैं मूलतः कोटा,राजस्थान का रहने वाला और मूलतः थिएटर कलाकार हॅूं। मेरी षिक्षा दिक्षा भी कोटा में ही हुई। जयपुर में थिएटर किया करता था। स्व.इरफान साहब मेरे सीनियर थे। रघुबीर यादव साहब ‘जी टीवी’ के लिए एक षो ‘काफिला’ बना रहे थे, उसमें उन्होने मुझे भी जोड़ा। इस षो की ही वजह से मेरा मंुबई आना हुआ। मंुबई में मुझे ‘एक और जंग’ व ‘एक प्यार  ऐसा भी ’ जैसी फिल्मों में बतौर हीरो अभिनय करने का अवसर मिला। यह फिल्में कम बजट की थी। मैने एक फिल्म धर्मेंद्र जी के साथ भी की थी। लेकिन छोटे बजट की फिल्में बाॅक्स आॅफिस पर अपना कमाल नहीं दिखा पायीं। मेरी कुछ फिल्में षुरू हुईं, पर वह बन नही पायी। इसलिए इस फिल्म इंडस्ट्ी में मेरे लिए टिके रहना बहुत बड़ी चुनौती बन गयी थी। ऐसे में मैने टीवी की तरफ रूख किया। मैने अधिकारी ब्रदर्स,स्वास्तिक प्रोडक्षन’, ‘सागर फिल्मस’ सहित कई बड़े प्रोडक्षन हाउसों के साथ मैंने कई सीरियलों में अभिनय किया। मैने ‘रामायण’,‘कहानी हमारे महाभारत की’, ‘कसौटी जिंदगी के’,‘जोधा अकबर’, ‘युग’, ‘बालिका वधू’,‘जय मां दुर्गा’,‘आधे अधूरे’, ‘महाराणा प्रताप’, ‘कर्म फलदाता षनि’ व ‘महााकली’ सहित तकरीबन दो सौ सीरियलों में अभिनय कर चुका हॅूं।   

आपके कैरियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे?

मेरा टर्निंग प्वाइंट तो यही रहा कि मैं कलाकार के तौर पर जो भी अपनी प्रतिभा दिखाना चाहता था, वह सब मैने टीवी पर दिखाया। मैने ‘सावधान इंडिया’ और ‘क्राइम पेट्ोल’ के सौ से अधिक एपीसोड किए। बतौर कलाकार मेरे अंदर प्रतिभा तो पिछले बीस वर्ष से थी। मैं हमेषा एक बेहतरीन कलाकार था। इसके बावजूद मैने टीवी पर जितना भी काम किया,उसमें मुझे जो सराहना मिलनी चाहिए थी,वह नही मिली.मेरी पहचान बनी,मगर नाम नही बना। जबकि मैने टीवी पर वर्सेटाइल गेटअप वाले वर्सेटाइल किरदार निभाए। इसके बनिस्बत अगर मैने किसी बड़े बजट की फिल्म में दो बेहतरीन दृष्यों में अच्छी परफार्मेंस दे दी होती, तो लोग मुझे ज्यादा पहचानते, मेरी वाह वाही करते। कुल मिलाकर मेरा काफी संघर्ष रहा।

आपने खुद निर्माता बनने की बात क्यो सोची?

फिर एक दिन मैंने सोचा कि इस तरह से मैं पूरी जिंदगी नहीं जी सकता। तब मैने ख्ुाद को फिल्म में ब्रेक देने के लिए बतौर लेखक, निर्माता, निर्देषक व अभिनेता फिल्म ‘दो बेचारे’ बनायी, जो कि ओटीटी प्लेटफार्म पर स्ट्ीम हो रही है। अब मैने बहुत अच्छी क्लासिकल फिल्म ‘‘मैं राज कपूर हो गया’’ का निर्माण किया है। मैने यह फिल्म ख्ुाद को ध्यान में रखकर ही लिखा। यदि मैने ख्ुाद निर्माण के क्षेत्र में कदम न रखा होता, तो मुझे कोई ब्रेक नही देने वाला था। यदि आप स्टार पुत्र हैं और अच्छे कलाकार नहीं है, तो भी आपको काम मिलता रहता है। उसके बाद आप एक दिन ख्ुाद को अच्छा कलाकार भी साबित कर देते हैं। पर मैं ठहरा गैर फिल्मी परिवार का,तो मेरे साथ हमेषा दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया।

लेखन की शुरुआत कब हुई थी?

मैं आपको बताना चाहॅूंगा कि फिल्म इंडस्ट्ी में जितने भी कलाकार हैं, उनमें से निन्यानबे प्रतिषत कलाकार पहले लेखक हैं, फिर अभिनेता हैं। यहां हर इंसान के पास एक काॅसेप्ट या एक कहानी होती ही है। जहां तक मेरे लेखन का सवाल है, तो इंडस्ट्ी मंे एक निर्माता विवेक कुमार उर्फ विक्की जी हैं। वह पंजाबी फिल्म के अलावा हिंदी में ‘क्रांति’ व ‘लकीर’ जैसी फिल्मों के निर्माता हैं। उनके प्रोडक्षन में एक फिल्म बन रही थी। मैं अपने सेके्रटरी के के बिहारी के साथ उनसे मिलने गया। के के बिहारी जी तो अब इस दुनिया में नहीं है। उसी दौरान विक्की जी ने मेरे सेक्रेटरी से कहा कि उन्हें एक अच्छी कहानी की जरुरत है। मैने अच्छा अवसर देखकर कह दिया कि मेरे पास एक कहानी की रूपरेखा है। उन्होने कहा कि आप तो अभिनेता हैं। मैने कहा कि मैं मूलतः अभिनेता हॅूं, पर आप चाहें तो मैं कहानी सुना सकता हूॅ। मैने उन्हे कहानी सुनायी, जो कि उन्हे काफी पसंद आयी। उसी वक्त उन्होने मुझे पचास हजार रूपए पेषगी दिए और पांच लाख रूपए में लेखक के रूप में मुझे अनुबंधित किया। यह अलग बात है कि बाद में यह फिल्म नहीं बन पायी। पर यहां से मुझे लेखन का चस्का लग गया। मैं लगातार कहानियंा लिखता रहा। यही वजह है कि मैंने ख्ुाद को ध्यान मंे रखते हुए ‘मैं राज कपूर हो गया’ का लेखन किया। मैं स्व.राज कपूर साहब का बहुत बड़ा फैन हॅूं। मैने अपनी इस फिल्म को राज कपूर साहब को ट्ब्यिूट की है। यह राज कपूर की जीवनी या उनकी कहानी नही है। ‘मैं राज कूपर हो गया’ का मतलब उसी तरह से जिस तरह से जब हम किसी को भगवान मान लेते हैं, तो उसी तरह से हो जाते हैं।

फिल्म ‘‘मैं राज कपूर हो गया’’ का बीज कहां से मिला था?

पहली बात यह फिल्म वास्तविक घटनाक्रमों पर आधारित है। यह किसी एक घटनाक्रम पर नहीं, बल्कि कई घटनाक्रमों का मिश्रण है। यह उनसे जुड़े आम लोगों,सड़क,स्लम में रहने वाले लोगों के जीवन से जुड़ी घटनाएं हैं, जो कि इंसान को इंसान की तरह देखते हैं। जब मैं यह कहानी लिख रहा था, तो मैने ख्ुाद से सवाल किया कि आखिर कोई भी दर्षक मेरी फिल्म देखने क्यों आएगा? लोगों के दिमाग में पहली बात तो सही आनी है कि हम इस चेहरे यानी कि मेरा चेहरा टीवी में मुफ्त में देखते हैं, तो अब फिल्म में उसी चेहरे को देखने के लिए पैसे क्यों दें? मैं इस सच से वाकिफ था और आज भी हूॅं कि लोग मुझे कलाकार के तौर पर पहचानते जरुर हैं, मगर मेरे इतने फैन्स नही हैं कि वह टिकट खरीदकर मेरी फिल्म देखने आएंगें। तो मुझे ऐसा ‘औरा’ चाहिए था, जिसकी वजह से लोग मेरी फिल्म देखने थिएटर के अंदर आएं। मैं ख्ुाद राज कपूर साहब का फैन हंूं, तो मुझे उससे बड़ा कोई नाम या यॅंू कहें कि ‘औरा’ कुछ नहीं मिला। सच और इमानदारी से कह रहा हॅूं कि मैने फिल्म का यह नाम जानबूझकर रखा है। मैने सोचा कि अगर मैं ख्ुाद को राजकपूर का फैन बताकर कहानी सुना रहा हॅूं। मैं लोगों के जीवन,उनके रिष्ते दिखाना चाहता हॅूं, तो मैंने कुछ अपने साथ घटी घटनाओं व दूसरे लोगों के जीवन में घटी घटनाआंे को इस कहानी में पिरोया है। आप देखेंगें कि चाल में रहने वाले लोग दूसरे के लिए अपनी खोली/घर तक बेच देते हैं। यह सारे रिष्तों के किस्से मंैने सुने हुए हैं।  मैं राज कपूर साहब का फैन हॅूं, इसलिए इस कहानी को मंैने राज कपूर साहब क्रे फैन के उपर डाला, जो कि ख्ुाद कहता है कि ‘मैं राज कपूर हो गया’। मैं राज कूपर की फिल्मों से प्रेरित हॅूं, इसलिए मेरी फिल्म में आपको राज कपूर साहब की हर फिल्म की छवि नजर आएगी। इसमें लोग ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’ वाली छवि भी देखेंगंे। जोकर का फ्लेवर भी देखेंगें। मैं उनकी फिल्म के गानों का उपयोग करना चाहता था, पर ऐसा संभव नहीं हो पाया। क्यांेकि मुझे संगीत कंपनी ‘सारेगामा’ से इजाजत नहीं मिली। हर इंसान अपने हर काम में अपने भगवान को याद करता है। मेरे भगवान तो राज कपूर साहब हैं, इसलिए मैने उन्हे याद किया।

क्या राज कपूर की किसी फिल्म से कोई हिस्सा या सब प्लाॅट लिया गया है?

जी नही...  मंैने उनकी फिल्मों या उनकी जिंदगी से कुछ नही लिया है। लेकिन जो वास्तविक घटनाक्रम हैं, उन्हे फिल्माने का जो पैटर्न है,वह सब राज कपूर साहब की स्टाइल का है। मसलन- बरसात,छत्री,उनके उठने बैठने का तरीका, टोपी पहनने का अंदाज वगैरह  लिया है। क्यांेकि फिल्म का मेरा किरदार राज कपूर का बहुत बड़ा फैन है। ‘मेरा जूता है जापानी’ सहित कुछ फिल्मों के लुक में वह नजर आता है। एक गरीब आदमी है,स्लम मंे रहता है। बरसात हो रही है। मैने मूलतः राज कपूर की फिल्मों में जो फिलोसफी होती थी, उसका उपयोग किया। मुझे जो भी बात कहनी थी, वह मैने उनकी फिलोसफी से की है। तो मेरी फिल्म राज कपूर साहब की कहानी नहीं है, बल्कि उनकी फिल्मों की छवि है।   

फिल्म ‘‘मैं राज कपूर हो गया हॅूं.’’ की कहानी क्या है?

यह कहानी उस अनाथ इंसान की है, जो कि राज कपूर साहब का फैन है। वह राज कपूर को ही अपना भगवान मानता है। देखिए, इंसान चाहे जितना खुष हो जाए, मगर हर इंसान की जिंदगी में कुछ न कुछ गम जरुर होता है। उसी तरह के गम और जिंदगी के उतार चढ़ाव इस बंदे की जिंदगी में भी हैं। उसकी जिंदगी की एक यात्रा है। वह इंसान क्या होता है और फिर क्या बन जाता है। उसकी जिंदगी में कैसे प्यार आता है। वह हर इंसान को इंसान ही समझता है। इस इंसान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जब वह मंदिर जाता है, तो राज कुमार बन जाता है। गुरुद्वारा जाता है, तो राज कपूर बन जाता है। मस्जिद जाता है,तो राजदुलारे बन जाता है। चर्च जाता है, तो राज सिल्बेस्टियन बन जाता है। लोग उससे पूछते हैं कि भाई तुम हो कौन? वह कहता है कि,‘मुझे पता नही कि मैं कहंा से आया हॅूं। पर इतना पता है कि उपर वाले ने मुझे भगवान बनाकर भेजा है। मैं देख रहा हॅंू कि यहां लोग जाति पांत में विभाजित हैं। यहां लोग हर दिन अपना एक नया धर्म बनाते हैं। हर दिन नया धर्म अपना लेते हैं। उसका दिल, उसका प्यार है कि वह जिसे देखता है, वह उसे नरगिस दिखती है।

फिल्म का गीतकार कौन है?

फिल्म का गीतकार भी मैं ही हूं। इस फिल्म के सभी गीत मैने ही लिखे हंै। पहली बार गीत लिखे हैं। मैंने एक गीतकार की सेवाएं ली थी,  पर वह जो कुछ लिखकर लाता था, वह हमारे गले नहीं उतरता था। मैं फिल्म को दिल से बना रहा था, तो वह गीत मेेरे दिल को छूने चाहिए थे। पर ऐसा नही हो रहा था। वह गीतकार मेरी बात को समझ ही नहीं पा रहा था। तब एक दिन मेरे संगीतकार ने मुझसे कहा कि मानव आप ही लिखो। तब मैंने ही गीत लिखे। मुझे ‘आवारा’ गाना चाहिए था, पर उसके लिए मुझसे एक करोड़ रूपए मांगे गए, तब मैने गाना बनाया -‘एक तारा हॅूं पर टूटा हॅूं..’’ं। फिल्म में कुल चार गाने हैं।

फिल्म ‘‘मैं राज कपूर हो गया’’ के किरदार को लेकर क्या कहना चाहेंगें?

मैने पहले ही कहा कि यह एक अनाथ बच्चा है। स्लम बस्ती में कोई उसे पाल लेता है। एक दिन वह गाड़ी का मैकेनिक बन जाता है। वह बचपन से राज कपूर की फिल्में देखता आया है और अपना नाम राज कपूर ही रख लेता है। वह हर धर्म को मानता है। उसका मानना है कि नाम से क्या होता है, इंसान तो इंसान ही होता है। इसमें मेरे किरदार के दो लुक हैं।

आपकी फिल्म की कहानी स्लम यानी कि झोपड़पट्टी में रहने वालों की जिंदगी पर है.तो क्या इमारतों में रहने वालों के संग कोई तुलना भी है?

कुछ जगह पर यह बात नजर आएगी। देखिए, अमीर लोग किसी से भी रिष्ता बनाते हैं और किसी को भी पैसा देते हैं, पर इसके पीछे उनका अपना एक मकसद होता है। वह हर काम करते हुए, किसी की भी मदद करते हुए सबसे पहले अपना फायदा देखता है। जबकि गरीब बिना किसी मकसद के दूसरों की मदद करता है। झोपड़पट्टी का इंसान पड़ोसी की जिंदगी बचाने के लिए अपना झोपड़ा बेचकर पैसा देता है। यह हवा बाजी नही है। आज भी चाल मंे रहने वाले लोग आपको इसी तरह से दूसरों की मदद करते नजर आ जाएंगे। उनके लिए झोपड़पट्टी में रह रहा हर इंसान परिवार की तरह होता है। पर हमारी फिल्म यह कोई नहीं कहती कि बड़े लोग बेकार व छोटे लोग अच्छे हैं। हमारी फिल्म किसी के खिलाफ नही है। हम किसी पर उंगली नही उठा रहे हैं। पर गरीब लोग आज भी रिष्तों को सबसे अधिक महत्व देते हैं।

आपने गरीबों और झोपड़पट्टी में रहने वालांे की सोच, मानसिकता आदि को समझने के लिए क्या किया?

मैने बहुत कुछ नजदीक से जाकर देखा व समझा। जब मैं कहानी लिख रहा था, उस वक्त कोविड आ गया। कोविड के हर चरण में मैं कई झोपड़पट्टियों में गया। लोगों के बीच बैठा, उनसे बातें की। मेरी फिल्म में एक किरदार षराबी है। तो मुझे झोपड़पट्टी का वास्तविक आदमी चाहिए था। मैं समझना चाहता था कि वह किस तरह से बोलता है, किस तरह से चलता है। उसकी सोच, उसकी दीमागी हालत आदि को बारीकी से समझना था, तो मैंने वह भी किया। यदि मेरे किरदार ने दस वर्ष से जूते नही बदले हैं, तो मंैने दस साल पुराना जूता लाकर किरदार को पहनाया है। मुझे दस साल का पहना हुआ कोट चाहिए था, तो जहां पर इस तरह के सेकंड हैंड कोट मिलते हैं, वहां पर गया और लेकर आया। नए कोट को उपर से फाड़कर पुराना नही दिखाया। मैने फिल्म को यथार्थ रूप में बनाया है।

इस फिल्म को कहां पर फिल्माया है?

हमने इसे भिवंडी की चाल में फिल्माया है। यहां के लोगों के बीच मैं कई दिन रहा हॅूं।

फिल्म के अन्य कलाकारों के बारे में बताएं?

इसमें पिंटो भाई के किरदार में वीरेंद्र सक्सेना हैं। जो कि एक षराब की दुकान चलाते हैं। और वह मेरे किरदार के गाॅड फादर हैं। एक बूढ़ा इंसान किसी के लिए क्या कर सकता है, ऐसे किरदार में अनंत जोग हैं। रघु के किरदार में कंचन पगारे हैं। फिल्म की नायिका यानी कि काम वाली बाई के किरदार में श्रावणी गोस्वामी हैं। श्रावणी गोस्वामी भी लंबे समय से टीवी व फिल्में करती आ रही हैं। श्रावणी गोस्वामी के भी इस फिल्म में दो लुक हैं। नरगिस के किरदार में अक्षित गौड़ा हैं। इसके अलावा इसमें जितेन मुखी,स्मिता डोंगरे,उर्मिला, साहिबा खुराना हैं।

फिल्म में जोकर का क्या उपयोग है?

हमारी फिल्म मंे जोकर,छत्री, कैप, बरसात सब कुछ प्रतीकात्मक हैं।

क्या आपका किरदार इस फिल्म में स्व.राज कपूर की मिमिक्री करता हुआ नजर आएगा?

जी नहीं..मुझे मिमिक्री करने में यकीन ही नही है। मैने राज कपूर का किरदार नही निभाया है। बल्कि मेरा एक अलग किरदार है। वह तो राज कपूर साहब का फैन है।  

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