साहित्यक कृतियों पर बनी बहुत सी अच्छी फिल्में सफल रही हैं

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By Mayapuri Desk
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 साहित्यक कृतियों पर बनी बहुत सी अच्छी फिल्में सफल रही हैं

फिर भी अब भारतीय साहित्य पर फिल्में नहीं बन रही हैं

नयी दिल्ली। ‘’जब-जब भारतीय साहित्यिक कृतियों पर अच्छी फिल्में बनी हैं। दर्शकों ने उन्हें पसंद किया है,व्यावसायिक रूप से भी वे फिल्में सफल रही हैं। लेकिन इसके बावजूद अब भारतीय साहित्य पर फिल्में नहीं बन रही हैं। यह बात दुख देने के साथ चिंतित भी करती है। यदि ऐसे ही चलता रहा तो भारतीय साहित्य पुस्तकों मेँ सिमट कर रह जाएगा।‘’ उपरोक्त विचार प्रख्यात फिल्म समीक्षक प्रदीप सरदाना ने साहित्य अकादमी के देश के सबसे बड़े वार्षिक ‘साहित्योत्सव’ के दौरान ‘सिनेमा और साहित्य’ विषय पर बोलते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने श्री सरदाना को अंगवस्त्र पहनाकर स्वागत भी किया। 

पिछले 45 से अधिक बरसों से लेखक, पत्रकार, कवि एवं कला और फिल्म समीक्षक के रूप मेँ अनेक उपलब्धियां प्राप्त कर चुके प्रदीप सरदाना ने कहा, ‘’सिनेमा और साहित्य को लेकर बरसों से चर्चा-परिचर्चा होती रही हैं। लेकिन उन चर्चाओं मेँ दो बात ज्यादा होती हैं। एक यह कि साहित्यकार अपनी कृतियों पर बनी फिल्मों से संतुष नहीं होते। दूसरा यह भी अक्सर कहा जाता है कि साहित्य कृतियों पर बनी फिल्में सफल नहीं होतीं। इसलिए फ़िल्मकार साहित्यिक कृतियों पर फिल्में बनाने से बचते हैं। लेकिन मैं स्वयं इन दोनों बातों से सहमत नहीं हूँ। हमारे यहाँ मूक सिनेमा के दौर से अभी तक कितनी ही भाषाओं मेँ हजारों फिल्में साहित्य पर बनती रही हैं। हमारा बांग्ला साहित्य तो इस मामले मेँ सर्वोपरि रहा और सर्वाधिक सफल भी।‘’
‘’यूं हिन्दी,मराठी, गुजराती,उर्दू और संस्कृत साहित्य पर बनी बहुत सी फिल्में काफी सफल रही हैं। लेकिन शरत चंद्र की कृतियों पर बनी  देवदास, बिराजबहू, परिणीता,मँझली दीदी खुशबू जैसी फिल्में हों या टैगोर की कृतियों पर बनी काबुलीवाला,मिलन,उपहार और गीत गाता चल सभी सफल रही हैं। 

हिन्दी मेँ भी प्रेम चंद, भगवती चरण वर्मा, मन्नू भण्डारी और कमलेश्वर की कृतियों पर बनी फिल्में- शतरंज के खिलाड़ी, चित्रलेखा, रजनीगंधा, आँधी और मौसम सहित कितनी ही फिल्में सफल होने के साथ कालजयी फिल्में बन चुकी हैं। फिर हमारे प्राचीन महाकाव्य ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ पर तो सैंकड़ों सफल फिल्में आरंभ से बनती रही हैं।‘’ 
श्री सरदाना यह भी कहते हैं-‘’आज भी दुनिया भर मेँ साहित्यिक कृतियों पर अनेक सफल फिल्में बन रही हैं। ऑस्कर अवार्ड मेँ नामांकित और पुरस्कृत फिल्मों मेँ से बहुत सी साहित्यिक कृतियों पर ही हैं। लेकिन भारतीय फ़िल्मकार अब भारतीय साहित्य पर फिल्में न बनाकर विदेशी साहित्यकारों की कहानियों पर ज्यादा फिल्म बना रहे हैं। वे विदेशी कृतियों पर भी फिल्में बनाएँ लेकिन भारत जो कहानियों का देश है। यहाँ पुरानी साहित्यिक कृतियों के साथ हजारों ऐसी नयी कृतियाँ भी हैं जिनपर अच्छी और सफल फिल्में बन सकती हैं। यदि ऐसा न हुआ तो हमारा साहित्य विश्व पटल पर आने के जगह पुस्तकों मेँ ही सिमट कर रह जाएगा।‘’

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जानी मानी वरिष्ठ कला-फिल्म समीक्षक रत्नोत्मा सेनगुप्ता ने की। उन्होंने कहा कि देश में अभी फिल्म लिटरेसी की आवश्यकता है। इसके बेहतर होने पर ही साहित्य और सिनेमा के रिश्तों में उल्लेखनीय सुधार और बदलाव आएगा। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक और उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा भी इस दौरान समारोह मेँ मौजूद रहे।        

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