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गांव से शहर की तरफ भागती युवा पीढ़ी सहित कई मानवीय पहलुओं पर बात‘‘सेजल दीपक पेंटर के प्रोडक्शन हाउस ‘स्वर्ण पट कथा’ के बैनर तले बनी लघु फिल्म ‘डोब्या’ का टीजर लॉन्च कर दिया गया है. फिल्म को 2023 काॅंन्स फिल्म फेस्टिवल - मार्चे डू फिल्म में प्रीमियर के लिए भी चुना गया है। यह कहानी एक बुजुर्ग सीताराम उर्फ तात्या, उनके बूढ़े बैल राजा और एक ऐसे गांव की है,जो निरंतर बूढ़े होते जा रहे है। राजा, तात्या की एक गाय का बछड़ा था। अतः तात्या को उससे गहरा प्रेम है। बैल के प्रति प्रेम ही कारण था कि तात्या ने राजा की बुढ़ापे में भी देखभाल की। महाराष्ट् का यह गांव देश के अन्य गाँव की ही तरह है. सदियों से उनके ग्रामीण आकर्षण को संरक्षित करते हुए, मानवता को पकड़े हुए और पीढ़ी-दर-पीढ़ी उम्र बढ़ने की विरासत को सावधानीपूर्वक संरक्षित करते हुए लगभग एक बेजान पेड़ से गिरे हुए पत्तों की तरह। बहरहाल, तात्या आज भी अपने बैल व अपने खेत से जुड़े हुए हैं। जबकि उनका एकमात्र बेटा दाद्या शादी के बाद सपनों की नगरी मुंबई मैं नौकरी करते हुए वहीं बस गया है। जबकि तात्या ने अपने राजा बैल के सहयोग से कृषि को जारी रखा। मजेदार बात यह है कि इसी कृषि की कमाई से ही दाद्या ने शिक्षा प्राप्त की। तात्या की दिनचर्या सुबह जल्दी उठना, स्नान करना, चाय की चुस्की लेना और हनुमान भगवान (बंदर भगवान) के गाँव के मंदिर में दर्शन करना था। उसके बाद वह एक भक्कर (रोटी) पकाता, आधा राजा को खिलाता और बाकी खा लेता। फिर वह और राजा अपनी सहायक आब्या के साथ अपने खेत पर निकल जाते।
फिल्म में कई अन्य पात्र भी हैं,जो कई अहम सवाल उठाते हैं। इसके साथ ही विकास की आंधी किस तरह से गांव को प्रभावित कर रही है,उसका भी चित्रण है। जी हाॅ! ‘डोब्या’ देखकर लोगों को अहसास होगा कि कैसे मानव प्रकृति प्रामाणिकता और प्रकृति पर विकास को प्राथमिकता देती है। फिल्म यह संदेश देती है कि कैसे आजकल हर कोई रिश्तों से ज्यादा भौतिक तत्वों को महत्व देता है। फिल्म ‘‘डोब्या’’ में बहुत ही अहम सवाल उठाया गया है। फिल्म कहती है कि आज की युवा पीढ़ी का गांव से मोहभंग हो रहा है और वह शहरो के आदी बनते जा रहे हैं. शहरीकरण,औद्योगीकरण व विकास अनिवार्य है,मगर किस कीमत पर? इस पर हम सभी को विचार करना होगा। आज की युवा पीढ़ी रोजगार के लिए गांव छोड़कर शहरों की तरफ भाग रही है और शहरों की व्यस्त व भागमभाग वाली जिंदगी के बीच गांव व अपने बूढे मां बाप को भूल जाते हैं,तो इसमें किसकी गलती है?अगर युवा पीढ़ी गलत नही है तो क्या गांव में अपने बेटे का इंतजार कर रहे बूढ़े माता पिता दोशी हैं?अगर यह फिल्म इन सारे सवालो पर लोगों को सोचने के लिए मजबूर कर दे,तो कई समस्याओं का समाधान निकल सकता है। फिल्म ‘‘डोब्या’’ में शशांक शेंडे, सिद्धेश झडबुके, अभिमान उनवने और नचिकेत देवस्थली की अहम भूमिकाएं हैं। फिल्म का निर्देशन आशुतोश पोपट जारे ने किया है। कान्स फिल्म फेस्टिवल में अनोखी और दिल को छू लेने वाली कहानी ‘डोब्या’, नेकेड वर्ड नाम की 3 लघु फिल्मों के संकलन का हिस्सा होगी। सेजल दीपक पेंटर द्वारा उनके प्रोडक्शन हाउस, स्वर्ण पट कथा के तहत निर्मित और आशुतोश पोपट जारे द्वारा निर्देशित, लघु फिल्म डोब्या का प्रीमियर 2023 कान फिल्म समारोह में किया जाएगा।