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यादें नवाज को हीरो बनाने वाली निर्मात्री सुनीता चौहान की

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By Sharad Rai
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यादें नवाज को हीरो बनाने वाली निर्मात्री सुनीता चौहान की

आज नवाजुद्दीन सिद्दीकी की कामयाबी में हिस्सा मांगने वाले कई हैं, लेकिन उनके संघर्ष में कोई  साथ नही था!

आजकल ख़बर्रे आ रही हैं कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी से उनकी कमाई और प्रोपर्टी में हिस्सा मांगने के लिए उनके कई  रिश्तेदार सामने आ रहे हैं. उनपर उनकी पत्नी ने केस किया है, भाई ने हक की मांग किया है. शून्य से शिखर तक (किराए के घर से बंगले में) पहुचने वाले इस कलाकार के जीवन के आरंभिक दिनों को जानने वाली एक निर्मात्री हैं सुनीता चौहान. सुनीता चौहान कई फिल्मों के प्रोडक्शन एक्सक्यूटिव के रूप में फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी रही हैं- उन्होंने पहली बार अपनी एक शार्ट फिल्म के लिए नवाज को हीरो के रूप में  साइन किया था. प्रस्तुत है उनकी यादों का एक लमहा-

"किसी भी कामयाबी का दो पक्ष होता है. नवाजुद्दीन सिद्दीकी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं.वह आज बॉलीवुड के बड़े स्टार हैं. लेकिन, उनके संघर्ष के दिनों की  उनकी कुछ फिल्में (सरफरोश,  पिपली लाइव, मुन्ना भाई एमबीबीएस आदि की छोटी भूमिकाओं वाली फिल्मों) के बनने तक यह अंदाजा लगाना मुश्किल था कि यह आदमी एक दिन हिंदी फिल्मों का चहेता स्टार बन पाएगा. बात उनदिनों की है जब मैं एक शार्ट फ़िल्म बना रही  थी. इस शार्ट फिल्म "सफर' के मुख्य पात्र  नवाजुद्दीन सिध्दिकी ही थे. "नवाज हैरान हुए थे सुनकर की मैं उनको अपनी फिल्म में 'हीरो' ले रही हूं." याद करती हैं सुनीता चौहान.

"तब  मुझे भी अंदाजा नही था कि एक दुबला पतला सा लड़का, जो एक चाल के रूम से निकल कर एक कमरे के घर मे चार लड़कों के साथ रहता था और एक स्टोर की नौकरी छोड़कर चौकीदारी किया था, एक दिन बड़ी बड़ी फिल्मों का चेहरा बन जाएगा !" सुनीता बताती हैं. "मेरी शार्ट फिल्म 'सफर' के बनने के बाद ही उनकी बड़ी फिल्में आयी हैं, इसलिए मैं जानती हूं कि नवाज ने कितने संघर्ष के बाद अपना मुकाम पाया है ! और बॉलीवुड नगरी में अपना आलीशान बंगला बनवाया है... वो बंगला जो शायद बॉलीवुड में शाहरुख खान के बाद दूसरा सबसे बड़ा बंगला है."

शार्ट फिल्म ''सफर'' कालाघोड़ा फिल्म फेस्टिवल सहित देश- विदेश के कई फिल्म फेस्टिवलों में सराही गयी फिल्म है. जिसकी स्टोरी और डायरेक्शन कलीम खान का था. एप्पल एंटरटेनमेंट के बैनर तले बनाई गई  इस फिल्म के कलाकार हैं- नवाजुद्दीन सिद्दीकी, शाहनवाज शाह (जो हाल ही में दिवंगत हुए हैं) धरम गुप्ता, स्वेत सिन्हा, सुनीता आदि.फिल्म की शूटिंग मुम्बई में कई लोकेशनों पर अंधेरी, जुहू, वर्सोवा, चार बंगला आदि स्थानों पर की गई थी. निर्मात्री सुनीता चौहान फ़िल्म प्रोडक्शन से जुड़ी रही हैं. फिल्म 'रातरानी', 'बाल ब्रह्मचारी' और पंजाबी धारावाहिक की पूरी शूटिंग उनकी देखरेख में हुआ है. इसलिए जब वह "सफर" का निर्माण अपने बैनर एप्पल से शुरू की तो मुख्य भूमिका के लिए कई चेहरों का ओडिशन की थी और फाइनल नवाज हुए थे.

"'सफर' की कहानी एक ऑटो ड्राइवर की है और दिन भर की है.ऑटो ड्राइवर की भूमिका में नवाजुद्दीन सिद्दीकी हैं. पहले उनके ऑटो रिक्से में एक प्रेमी युगल बैठता है. वो प्यार की बातें करते हैं, प्यार करते हैं , चूमा चाटी करते हैं. उनको लगता है कि ड्राइवर को कुछ पता नहीं चलता और वे बेफिक्र होकर अपनी मस्ती में रहते हैं. जब वे उतर जाते हैं, ड्राइवर मुस्कराता है. बैकग्राउंड में एक रोमांटिक गाना बजता है.उनके उतरने के बाद रिक्से में एक बुड्ढ़ा बुड्ढी चढ़ते हैं.ये दोनों अपने बेटों को कोसते हैं- 'उनको पढ़ाया लिखाया, बड़ा किया, उनकी परवरिश में कोई कमी नही किया और वे ही हमें घर से निकल दिए हैं!' उनके उतरने के बाद दीवार पर अमिताभ बच्चन हेमा मालिनी की फिल्म 'बागवान' का पोस्टर लगा दिखाई देता है.उनके बाद ऑटो में एक बार डांसर लड़की बैठती है जो फोन पर अपने एक ग्राहक को चिल्लाती है- 'साला पैसा नही देता.' वहां भी दीवार पर फिल्म का पोस्टर दिखाई देता है. बादमे रिक्से में एक मेच्योर उम्र के प्रेमी- प्रेमिका बैठते हैं. औरत फोन पर अपने पति से बात करती है कि वह ज़रूरी मीटिंग में है, लौटने में देर हो जाएगी.बच्चों को खाना खिला देना. वहां भी दीवार पर लगा एक फिल्म का पोस्टर कहानी परी करता दिखाई देता है. अन्त मे रात में ऑटो ड्राइवर नवाजुद्दीन घर अपनी चाली में लौटता है. उसकी माँ टीवी देख रही है, कहती है- 'मेरा चश्मा बनवा देना.' वह सोता है तो दिन भर की बातें उसके जहन में चलती हैं. सपने में उन औरतों के साथ खुद को देख रहा है. बीवी जगाती है उसे कहती है- 'काम पर नही जाना क्या?'

सुनीता चौहान बताती हैं -"उस समय नवाज बहुत दुबले पतले हुआ करते थे. ऑटो ड्राइवर की शर्ट जो हमलोग मंगाए थे, उनके पहनने पर लगता था खूंटी पर लटकाया गया है. लगता था जैसे वह खाना ही नही  खाते हों.उसी नवाजुद्दीन सिद्दीकी की जब बाद की फिल्में ( गैंग्स ऑफ वासेपुर, कहानी, रात अकेली है, बजरंगी भी जान, मांझी, बाबू मोसाय बन्दूकबाज़ आदि) देखते हैं तो पाते हैं वह एकदम बदल गए हैं. लेकिन नही, जमीनी तौर पर यह आदमी नही बदला है और ना ही कुछ भुला है." सुनीता चौहान याद करती हैं. "हमने पिछले दिनों एक फिल्म के लिए नवाज से सम्पर्क किया तो वह हैरानी के साथ मेरे बारे में पूछते हुए बोले- 'मैडम मुझे कुछ नही भूला है. 'सफर' वो छोटी मगर मीनिंग फूल फिल्म रही- जिसने मुझे ज़िंदगी की चाल समझाया था.'"

सचमुच जिंदगी का सफर तय करना कोई नवाजुद्दीन से सीखे !वह संघर्षशील कलाकारों के लिए एक प्रेरणा हैं ! आज जो लोग नवाज से कामयाबी में हिस्सा मांग राह हैं काश वे नवाज को समझ भी पाते!

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