मिशन रानीगंज फिल्म रियल स्टोरी पर बेस्ड है, ये 13 नवम्बर 1989 को बंगाल की एक घटित घटना पर आधारित कहानी है, जिसमे 65 मजदूर एक कोयले कि खदान में फँस गये थे ये उनके रेस्क्यू की कहानी है.
सवाल- जब कोई भी रियल-स्टोरी बेस्ड फिल्म बनती है, तो उसका इतना अच्छा रिस्पांस मिलता है, कैसा लगता है?
अक्षय- जब मुझे ये कहानी निर्देशक दीनू ने सुनाई थी तब मुझे बहुत अच्छी लगी आज तक किसी ने इस विषय पर एक ही फिल्म आई थी वो थी ‘काला पत्थर’, तो इस फिल्म के जरिये हमे ये जानने का मौका मिला कि आखिर कोयले कि खदान के मजदूरों को क्या क्या परेशानी और दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ये एक सच्ची कहानी है, एक सच्चे और अच्छे इन्सान के बारें में.
अक्षय कुमार ने आगे अपने साथी कलाकार कुमुद मिश्रा से कहा कि आप बताएं कैसी होती है खदान में काम करने वाले माइनर्स की जिंदगी, कुमुद मिश्रा ने बताया कि, एक समय ऐसा था की उनका करियर 15 से 20 साल के अन्दर खत्म हो जाता था, और माइन के अन्दर के जो फ्यूमस और डस्ट होते है, वो उनकी जीवन आयु को कम कर देते थे.
अक्षय कुमार ने बताया कि जब इस विषय के बारे में सुना तो, इस चीज के बारे में जानने की और इच्छा हुई, ठीक वैसे ही जैसे जब एयरलिफ्ट बनाई थी तब बहुत लोगो को ये पता नही था उसकी असल कहानी में एक लाख सतर हज़ार लोगो को बचाया गया था.
ऐसी कहानियों को लोगो के सामने लाना मुझे अच्छा लगता है, जैसे सेनेटरी नैपकिन के ऊपर फिल्म बनाई थी, शौचालय के ऊपर बनाई थी, जानता हूँ कि इसकी कमर्शियल वैल्यू बाकी फिल्मों कि जितनी नहीं है, पर ये जानकारी और नॉलेज के बारें में है, हर चीज सिर्फ इस बारे में नहीं होती है, कि पैसे से मुझे क्या मिल सकता है, इसके बारें में भी है की मै सोसाइटी को क्या दे सकता हूँ, और यही वजह है कि मैंने ये फिल्म की, और मै शुक्रगुजार हूँ निर्देशक टीनू का जिन्होंने मुझे ये फिल्म करने का मौका दिया, और आज इस फिल्म को इतना प्यार मिल रहा है, फिल्म को आज जो साढ़े चार स्टार मिला है, उसमे से चार स्टार टीनू के हैं और बाकी के आधे स्टार हम स्टार-कास्ट की है.
फिल्म के हीं एक कलाकार ने बताया कि टीनू सर रिसर्च बहुत ही तगड़ा करते है, इस फिल्म में कहानी, इमोशन, जो इमोशनल सीन्स हैं, हर चीज नपी-तुली है, कहानी आपको पूरे फिल्म के दौरान एंटरटेन करती है, तो मेजोरिटी का क्रेडिट टीनू सर को ही जाना चाहिए.
सवाल- इस फिल्म के गाने को भी बहुत ही अच्छा रिस्पांस मिला है तो क्या आप रानीगंज के लोगो से मिले हो उनसे बात हुई है?
अक्षय- नहीं अभी तक तो नही गया हूँ, पर एक ज़ूम कॉल पर तक़रीबन पांच हज़ार लोगो के साथ जो कि माइन ऑफिसर्स और वर्कर्स थे उनसे बात हुई है, क्योंकि मै उस समय लन्दन में था, मैंने वादा भी किया है कि अगर मै कभी उधर शूट करने गया तो मई उनसे मिलने जरुर जाऊंगा.
सवाल- आप दोनों तरह कि फ़िल्में करते हैं, और आपने कहा कि आपको इसका कोई स्ट्रेस भी नहीं है?
अक्षय- अगर मै बना सकता हूँ दोनों तरह कि फ़िल्में तो क्यूँ नहीं, मुझे गर्व है कि मैंने कुछ अच्छे टॉपिक्स पर फिल्म बनाई है, और मै अपने बच्चों को गौरवान्वित महसूस करवाना चाहता हूँ .
कुमुद ने टीनू की बात करते हुए कहा कि फिल्म के एक सीन के दौरान 40 एक्टर्स जब 2 दिन तक पानी में शूट कर रहें तब, निर्देशक टीनू भी उनके साथ वहीँ पानी में ही थे, कुमुद ने कहा कि ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है. टीनू के कमिटमेंट के लिए कुमुद ने मजाकिया अंदाज़ में कहा कि आप आधा नंबर और डीसर्व करते हैं. फिल्म काफी डिफिकल्ट थी सबके लिए, तो पूरी टीम ने बहुत मेहनत कि है तो फिल्म को जितने भी स्टार्स में मिले हैं, वो पूरी फिल्म कि टीम की मेहनत का कमाल है. अच्छा लग रहा जो प्यार मिल रहा है, वो उम्मीद करते हैं कि मैक्सिमम लोगो तक ये फिल्म पहुंचे और लोग इसको देखे और प्यार दें.
टीनू ने आगे बताया कि वो बहुत शुक्रगुजार हैं कि उन्हें ये फिल्म बनाने का मौका मिला और वो सभी लोग जिन्होंने हामी भरी इस फिल्म को लेकर, जिन्होंने इस फिल्म को बनाया, उन सबका धन्यवाद.
सवाल- आप जब नॉन-कमर्शियल फ़िल्में करते हैं, तो क्या जिन निर्माताओं की डिमांड कमर्शियल फिल्म करना है, वो आपको डिसकरेज करते हैं?
अक्षय- मै इस तरह कि फ़िल्में अपने प्रोडक्शन हाउस के अंडर ही करता हूँ, तो मुझे किसी से भी डिसकरेज होने कि जरुरत नहीं है.
सवाल- इस फिल्म की प्रमोशन उतनी ज्यादा नहीं कि गयी, तो क्या अगर इसकी प्रमोशन की जाती तो ये और ज्यादा लोगो तक पहुँच पाती.
अक्षय- ऐसा कुछ नहीं है, सेल्फी के लिए हमने प्रमोशन किया था उसका कुछ नहीं हुआ, प्रमोशन एक गलत आस्पेक्ट है, जब आप कोई फिल्म देखते है आप किसी को बताते हैं वो देखता है और वो किसी को बताता है, अच्छी फ़िल्में ऐसे ही लोगो तक पहुँचती है. प्रमोशन एक ट्रेंड की तरह हो गया है, लोग आपके कंटेंट को देखना चाहते हैं, हर फिल्म का अपना तरीका होता है.
पवन मल्होत्रा ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रेस को पहले फिल्म दिखाई गयी है फिर इंटरव्यू के लिया बुलाया गया है.
कुमुद ने कहा चूंकि आपने फिल्म देखी और आपको अच्छी भी लगी तो क्या ये काम मीडिया का नहीं है कि अगर कोई फिल्म अच्छी है तो लोगो को ये बतलाना, तो मीडिया को ये लिखना चाहिए कि कौन सी फिल्म अच्छी है और देखने लायक है, तो लोग फिर देखंगे.
सवाल- आपके बच्चों का आपकी फिल्मों का लेकर क्या रिएक्शन होता है?
अक्षय- उन्हें अगर फिल्म अच्छी लगी तो बोलते हैं, डैड नाईस फिल्म अगर नहीं तो तो डैड ये अच्छी नहीं थी, बस इतना ही.
सवाल- आपके घर में सबसे बड़ा क्रिटिक कौन है?
अक्षय- वो सिर्फ दो शब्द ही बोलतें है, पसंद आया या नहीं पसंद आया, बस!
सवाल- काल्पनिक और वास्तविक फिल्मों पर काम करना कितना अलग होता है?
टीनू- अलग से ज्यादा कठिन होता है, जब काल्पनिक विषयों पर काम करते है तो हमे छुट होती है पर जब वास्तविक विषयों पर काम करते हैं, तो हमे वो चीजे भी रखनी हैं जो सच में हुई थी और उन चीजों को भी जोड़ना जो लोग इस तरह की फिल्म्स से एक्स्पेक्ट करते हैं, तो उस मिश्रण परदे पर दिखाना थोड़ा कठिन होता है.
सवाल- जब फिल्मों का लो-फेज आता है तब आप उसके साथ कैसे डील करते हैं?
अक्षय- आपको हमेशा खुश रहना है कंटेंट फील करना है, नेगेटिव चीजों पर ध्यान नही देना, आपको अपने जीवन में हाई फील करना है, अपने पुरे 33 साल के करियर में मै हाई ही था, कोई भी चीज मेरे लिए लो नहीं है, मुझे फिल्म कि कहानी अच्छी लगी मै फिल्म करता हूँ, बस !
इसी सवाल के जवाब में पवन ने कहा कि आप जानते हो कि अक्षय हर केटेगरी की फिल्म कर रहा है तो उसका फेलियर का हक है, वो सेफ गेम नहीं प्ले कर रहा है वो नयी चीजे कर रहा है तो थोड़ा बहुत ऊपर नीचे होना तो बनता है, और एक आर्टिस्ट का हक है नीचे गिर कर ऊपर उठने का जब वो अलग अलग केटेगरी कि फ़िल्में कर रहा हो तो.
सवाल- आप कमर्शियल और ट्रू इवेंट बेस्ड फ़िल्में भी करते हो तो क्या आप पर इसका प्रेशर है, ऑडियंस को लेकर
अक्षय- मुझे ऐसा कोई प्रेशर नहीं है, मै बैलेंस करता हूँ दोनों के बीच में पर मुझे ज्यादा ट्रू इवेंट वाली ही फ़िल्में करना पसंद है जो समाज के लिए इम्पैक्टफूल हो. मुझे कमर्शियल फ़िल्में भी करना पसंद है, जैसे हेरा-फेरी, वेलकम कि तरह. तो बैलेंस बना कर रखता हूँ.
सवाल- किसी क्रिटिक ने लिखा है, कि जब आप पग पहनते हो तब फिल्म हिट होती है.
अक्षय- अब ये तो मुझे नहीं पता, पर हाँ जब पग पहनता हूँ तो गर्व महसूस होता है. पग पहनने के बाद एक रेस्पोंसिब्लिटी फील होती है.
सवाल- दीपशिखा जी जब आप रियल-स्टोरी पर फिल्म बनाती हैं तो ये कितना चैलेंजिंग होता है?
दीपशिखा- जब रियल लाइफ कहानी पर फिल्म बनाते हैं तो आप पर अपने आप एक रेस्पोंसिब्लिटी आ जाती है कि आप किरदार को एक ट्रैक पर रखें, कहानी सुन कर ही मुझे ऐसा लगा कि एक ऐसे रियल लाइफ हीरो कि कहानी तो बड़े परदे पर जरुर ही जानी चाहिए.
सवाल- जब दो नेशनल अवार्ड विनर साथ काम कर रहें हैं, तो क्या एक तीसरे अवार्ड कि उम्मीद की जा सकती है?
टीनू- अभी तो पहले जनता का रिस्पांस देख लें.
सवाल- अभी जब फिल्म का रिस्पांस आ रहा है, लोग कह रहें कि अक्षय आप एक नेशनल अवार्ड डीसर्व करते हो.
अक्षय- मेरा तो पता नही पर टीनू ने जितना मेहनत किया है इस फिल्म को लेकर वो जरुर करता है, वो इस फिल्म के साथ पिछले 4 साल से जुड़ा हुआ है, और मुझे गर्व है उसपर उसने इतनी अच्छी फिल्म बनाई है और मै उसका हिस्सा हूँ, मै ये दावे के साथ कह सकता हूँ कि ये आज तक कि मेरी बेस्ट फिल्मों में से एक है.
सवाल- आप प्रोडक्शन और स्क्रिप्ट डेवलपमेंट प्रोसेस में कितना जुड़ते हैं?
अक्षय- अगर मै निर्माता हूँ तो मै जुड़ता हूँ प्रोडक्शन में, और अगर मै उस फिल्म में एक एक्टर के तौर पर भी हूँ तो स्क्रिप्ट डेवलपमेंट के टाइम भी मै जुड़ता हूँ.
सवाल- अभी पैन इंडिया फिल्म का समय चल रहा तो आपो कब एक पैन इंडिया फिल्म में देखने को मिलेगा?
अक्षय- शायद अगले साल
सवाल- चूंकि ये कोल माइनर्स के ऊपर बनाई गयी है, तो क्या आप उनके लिए कुछ डोनेट करना चाहेंगे?
अक्षय- (मजकिया अंदाज़) तुमको बता कर नहीं करूँगा, कर दूंगा.