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कचरे का पहाड़: दिल्ली के परिदृश्य को दर्शाता हुआ

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By Mayapuri Desk
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कचरे का पहाड़: दिल्ली के परिदृश्य को दर्शाता हुआ

एक दिन अन्‍नू अपने पिता के साथ अपनी मौसी से मिलने जा रही तिजो की उत्तरी दिल्ली में रहती है. तभी अननु को एक बड़ा सा पहाड़ दिखा. 

अन्‍नू: पापा  प्लीज देखिये, इतना बड़ा पहाड़. क्या दिल्ली मे भी पहाड़ होते हैं?

पापा: नहीं अन्‍नू, यह उस तरह का पहाड़ नहीं है जैसा हमने शिमला में देखा था. यह कचरे का पहाड़ है. 

अन्‍नू: क्या,  कचरे का पहाड़?वो क्या होता है पापा 

पापा: कचरे का पहाड़ यानि...चलो एक काम करते हैं, मैं आपको अपने एक दोस्त के पास ले चलता हूं जों वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी DMSWSL मे ही काम करते हैं, वो आपको इसके बारे मे बेहतर बता पाएंगे.

अन्‍नू: वे कौन हैं पापा?

पापा: उनका नाम श्री डी पी सिंह है. वह डीएमएसडबल्यूएसएल मे उपाध्यक्ष के पद पर हैं. 

अन्‍नू: ओके पापा. यह जानकारी तो बहुत ही रोचक होगी. कचरे यानि कूड़े का पहाड़. 

डीएमएसडबल्यूएसएल के ऑफिस मे

डी पी: ओह वैल्कम सिंधु जी . साथ मे शायद आपकी बिटिया हे?

पापा: हाँ, डीप . हम भलस्वा की तरफ से गुजर रहे थे तो मेरी बेटी ने लैंडफ़िल याने इसकी भाषा मे    कूड़े का पहाड़ देखा . ये इसके बारे मे जानने को उत्सुक थी. मैने सोचा भला इसके बारे मए आपसे बेहतर कौन बताएगे इसलिए आपसे मिलने का समय लिया. धन्यवाद की आपने अभी समय दे दिया. 

डीपी: ठीक  है सिंधु. सौभाग्य से मैं कार्यालय मे ही था और सभी  मीटिंग्स लंच के बाद ही थी.

डीपी सिंह अन्‍नू के तरफ देखते हैं और कहते हैं, 

डीपी: जैसा की आपने कहा था यह कचरे का पहाड़ है. लेकिन क्या आप जानते  हैं की यह कचरा वह ही कचरा है जो आप फेंक देते हैं और एमसीडी की गाड़ी उसे ले के जाती है. 

अन्‍नू: ऐसा है क्या? लेकिन ये पहाड़...

डीपी: बताता हूँ, ध्यान से सुनो. हम घर या अन्य जगहों पर जो कचरा उत्पन्न करते हैं , उसे दो श्रेणियों मे बांटा जाता है.म्सूखा कचरा और गीला कचरा. गीले कचरे मिस्टर पका और कच्चा भोजन, फलों और फूलों का कचरा , गिरे हुए पत्ते आदि शामिल हैं. दूसरी और प्लास्टिक, रबर, धातु, चमड़ा, कपड़े के चीथड़े, तार, काँच आदि सूखे कचरे की श्रेणियों मे आते हैं. घरेलू कचरे के एक और श्रेणी है, घेरलु खतरनाक कूड़ा जिसमे पैंट, , सफाई के सामान, सोलवेंट, कीटनाशक, केमिकल्स, दवाइयाँ, सुइयां, थरमामिटर, कॉस्मेटिक्स  आदि शामिल हैं. 

अन्‍नू: हाँ सर, हमारे स्कूल मे भी मैडम ने बताया था.  लेकिन इतने विस्तार से नहीं . कृपया मुझे और बताए. 

डीपी: हाँ, क्यों नहीं. अभी तो कचरे का सफर शुरू ही हुआ है. लेकिन समस्या यह है की दिल्ली मे स्टीथ तीनों लैंडफ़िल अपने क्षमता से अधिक भर चुके हैं और इसलिए एक बड़े पहाड़ का रूप ले रहे है. हम सब का प्रयास हे की हम एस पहाड़ को कम करे.

अन्‍नू: वो कैसे सर?

डीपी: घर के कचरे को घर पर ही गीले और सूखे को अलग अलग कर दे. सूखा तो रीसाइकल हो जाता है और गीला कचरे से खाद और बिजली बनती है. सरकार द्वारा स्थापित अपसीष्ट प्रबंधन नियम 2016 है जिसका पालन सभी को करना होता है.  

हमारे घरो से कचरा घर  के नजदीक मे स्थित कॉम्पैक्टर मे आता है. यहाँ गीले कूड़े मे से सूखा कूड़ा अलग करके डाला जाता है. सूखे कूड़े को रिसाइक्लिंग के लिए भेज देते हैं, और गीला कूड़ा आगे की प्रक्रिया के लिए प्लांट मे भेज देते हैं. प्लांट मे फिर इस  कचरे को प्रोसैस करके इसका कुछ हिस्सा  खाद बन जाता है  और प्रक्रिया के दौरान ऊर्जा उत्पन्न होती है जिससे  बिजली बनाई जाती है, यही कारण है की इस प्लांट को डबल्यू॰टी॰ई॰ कहा जाता है यानि वेस्ट टु एनर्जी. 

अन्‍नू: अरे वाह..फिर तो यह कचरे का नहीं  दौलत का पहाड़ है. कचरा बेकार है जब तक घर मे है लेकिन अगर ठीक से अलग अलग होकर प्लांट तक पाहुंच जाये तो बहुत काम की चीज़ है. मैं तो आज से ही मम्मी से कहूँगी की घर में गीले और सूखे को अकग अलग करके ही नगर निगम की गाड़ी वाले को दे. 

डीपी: एक दम सही बात. 

अन्‍नू: थैंक यू सर. आपने तो आज मेरा कचरे को देखने का नज़रिया ही बदल दिया.

पापा: वास्तव मे, डीपी. आज तो मुझे भी कई नयी बातों की जानकारी मिली है. थैंक यू.

और फिर पिता और बेटी अपनी मौसी के घर को चल देते है.

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