The Kashmir Files: विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri) की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' (The Kashmir Files) एक बार फिर सुर्खियों में आ गई है. गोवा में आयोजित 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' ( को अश्लील और प्रोपेगंडा फिल्म करार दिया गया है. जिसके बाद सोशल मीडिया पर लगातार रिएक्शन आने शुरू हो गए. वहीं सोशल मीडिया पर हो रहे भारी बवाल को लेकर अब फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देने के लिए ट्विटर का सहारा लिया. अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा कि बिना नादव का नाम लिए सच लोगों को झूठ बोल सकता है. चालिए जानते है आखिर पूरा मामला क्या हैं?
नादव लापिड ने कही ये बात
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गोवा में 20 नवंबर 2022 से इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया 2022 (IFFI 2022) का आयोजन किया गया था. वहीं इस फिल्म फेस्टिवल का समापन 28 नवंबर 2022 को हुआ, जहां इस फेस्टिवल के चीफ जूरी इजरायली फिल्ममेकर नादव लापिड ( IFFI jury head Nadav Lapid) ने द कश्मीर फाइल्स को लेकर बड़ी बात कही. उन्होंने कहा कि हमें यह फिल्म एक अश्लील और प्रचार आधारित फिल्म लगी. नदव लापिड ने सोमवार को इवेंट में कहा, "द कश्मीर फाइल्स को देखकर हम सभी परेशान और शॉक्ड थे. हमें यह फिल्म अश्लील और प्रचार आधारित लगी. यह फिल्म इतने बड़े फिल्म फेस्टिवल के लिए ठीक नहीं है. मैं अपनी भावनाओं को खुले तौर पर शेयर कर रहा हूं क्योंकि यह वह आयोजन है जहां हम आलोचनाओं को स्वीकार करते हैं और चर्चा करते हैं. इस इवेंट में हम सभी द कश्मीर फाइल्स से परेशान हो गए. ये हैरान कर देने वाली फिल्म थी".
विवेक अग्निहोत्री ट्विट कर दी ये प्रतिक्रिया
द कश्मीर फाइल्स के निर्देशक विवेक राजन अग्निहोत्री (Vivek Ranjan Agnihotri) ने ट्विटर पर लिखा,
"GM. सच सबसे खतरनाक चीज है. यह लोगों को झूठ बोल सकता है #CreativeConsciousness (sic)".
आपको बता दें कि 'द कश्मीर फाइल्स' 1990 में कश्मीर विद्रोह के दौरान कश्मीरी पंडितों के जीवन पर आधारित है. विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित इस फिल्म में अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, पल्लवी घोष और दर्शन कुमार हैं.
ज्यूरी चीफ ने फिल्म को अश्लील बताया था।
एक कश्मीरी पंडित की टिप्पणी, जो पहले IFFI Selection Committee में रह चुके हैं,"हमने निष्पक्ष निर्णय की अपनी भावना खो दी है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोसा जा रहा है। वर्षों पहले मैं खाड़ी युद्ध के दौरान भी ऐसी ही स्थिति में था और इराकी फिल्म को IFFI में चुने जाने से बाहर कर दिया था।" (We have lost our sense of fair judgement. Getting whipped internationally. years ago i was in the same situation during the gulf war and threw out the iraqi film from being selected in iffi.)
एक फिल्म को उसकी योग्यता के आधार पर आंका जाना चाहिए... फिल्म के उपचार, प्रस्तुति, कहानी के आधार पर... बाहरी विचारों पर नहीं...
लगता है इस बंदे को किसी ने पैसे दिए हैं. उसके पास इसे प्रोपोगैंडा फिल्म कहने का कोई कारण नहीं है जब तक कि वह पूरे तथ्यों से वाकिफ न हो. उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्द ने उन्हें उजागर कर दिया. ऐसा लगता है कि उसने अपना अमाउंट ले लिया है. आयोजकों को फिल्म ज्ञान और जूरी की प्रतिबद्धता की जांच करनी चाहिए.
अलग जूरी है जो फिल्मों का चयन करती है। यह साथी उनके सामूहिक चयन को अस्वीकार कर रहा है। इसके अलावा उनसे पुरस्कार विजेता फिल्मों के चयन पर विचार देने की अपेक्षा की जाती है न कि भाग लेने वाली प्रत्येक फिल्म पर