पिछले दिनों राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार रीमा दास ने अपनी चैथी असमिया फीचर फिल्म ''तोरा के पति'' का ट्रेलर अपने गृहनगर असम में लॉन्च किया.
यॅूं तो इस फिल्म का विष्व प्रीमियर 47वें टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में संपन्न हो चुका है. इतना ही नहीं इसका एषिया प्रीमियर '27वें बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल'में तथा भारतीय प्रीमियर '28वें कोलकाता इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल' में संपन्न हो चुका है.
लेखक,निर्देशक व निर्माता ने अपने छोटे दल के साथ स्वतंत्र रूप से इस फिल्म का निर्माण किया है. अभिजीत दास और तराली कलिता दास की मुख्य भूमिकाओं वाली यह फिल्म एक प्यार करने वाले पिता और एक दयालु पड़ोसी की कहानी है, जो अपने छोटे शहर के व्यवसाय को बचाए रखने के लिए संघर्ष करते हैं.मगर नुकसान और लॉकडाउन के बीच उसके रिश्ते बिगड़ जाते हैं. लॉकडाउन के दौरान शूट की गई इस फिल्म में महामारी के दौरान एक छोटे शहर के जीवन को दिखाया गया है.
ट्रेलर लॉच के अवसर पर उत्साहित रीमा दास ने कहा- "फिल्म 'तोरा के पति' एक बहुत ही निजी फिल्म है. जब मैंने देखा कि महामारी अलग-अलग लोगों और मुझे कैसे प्रभावित कर रही है तब मेरे दिमाग में इस फिल्म ने आकार लिया. यह सिर्फ तोरा के पति की कहानी नहीं है बल्कि जीवन, प्यार और नुकसान का प्रतिबिंब है. मुझे बहुत खुशी है कि लोग अब ट्रेलर देख सकते हैं और अपनी दुनिया की एक झलक पा सकते हैं."
फिल्म "तोरा के पति" की निर्माता,लेखक व निर्देषक रीमा दास किसी परिचय की मोहताज नही है. दो बार के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता को स्वदेशी और यथार्थवादी कहानियां बनाने के लिए जाना जाता है,जो जटिल रिश्तों का पता लगाती हैं, उद्देश्य ढूंढते हैं, प्रकृति के बीच उम्र और जीवन का आगमन करते हैं. उनकी पिछली फिल्में 'विलेज रॉकस्टार्स' और 'बुलबुल कैन सिंग' का भी टीआईएफएफ में प्रीमियर हुआ था, और दुनिया भर के 120 से अधिक प्रतिष्ठित फिल्म समारोहों में 70 से अधिक पुरस्कार जीते थे. उनकी फिल्म 'विलेज रॉकस्टार्स' अकादमी पुरस्कार 'ऑस्कर' 2019 के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि भी थी. उसने अपनी परियोजनाओं के लिए लेखक, निर्देशक, निर्माता, छायाकार, संपादक के रूप में कार्य कर चुकी है. रीमा दास को 2018 के सबसे प्रभावशाली युवा भारतीयों में से एक के रूप में नामित किया गया था. वह टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स के 'शेयर हर जर्नी' अभियान की ब्रांड एंबेसडर भी हैं, जो सिनेमा में लैंगिक समानता का कारण है. वह बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल जनरेशन 14प्लस, मुंबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, तेलिन ब्लैक नाइट्स फिल्म फेस्टिवल और ज्लिन फिल्म फेस्टिवल फॉर चिल्ड्रन एंड यूथ की जूरी में रही हैं.
कहानी का सार
फिल्म ''तोरा के पति'' नुकसान और तालाबंदी, जीवन और मृत्यु की कहानी है. दुनिया भर में हर जगह की तरह, असम में एक छोटे शहर का व्यवसायी अनिश्चितता और बेचैनी से जूझ रहा है. अपने आसपास रहने वालों के विपरीत विश्वदृष्टि के साथ, वह खुद का एक बेहतर संस्करण बनने का प्रयास करता है और अपने आसपास के लोगों से भी यही उम्मीद करता है. वह कभी आक्रामक हो जाता है तो कभी प्यार और धैर्य से तर्क करता है. लेकिन बार-बार उसकी उम्मीदों पर पानी फिरता है. अपने खराब प्रदर्शन वाले व्यवसाय और तनावपूर्ण व्यक्तिगत संबंधों से जूझते हुए, वह चलते रहने के लिए प्रेरणा खोजने की कोशिश करता है.