होली के दिन जब पेड़ पर चढ़ गई थी नटखट सायरा बानो

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By Sulena Majumdar Arora
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होली के दिन जब पेड़ पर चढ़ गई थी नटखट सायरा बानो

आज बॉलीवुड में जिस तरह की होली मनाई जाती है उससे कई गुना ज्यादा हुल्लड़बाजी मचती थी उस गोल्डन एरा में जो हमारे जेनरेशन के पत्रकारों ने नहीं देखा। ऑल टाइम ब्यूटी सायरा बानो कैसे भूल सकती है उस जमाने को जब उनकी मां ब्यूटी क्वीन नसीम बानो अपने पूरे परिवार के साथ मनाती थी होली इतनी धूमधाम से, जिसकी गूंज और रंग आज भी उनके मन से उतरने का नाम नहीं ले रहा है। सायरा जी ने कहा था, ‘‘भले ही मैं लंदन में पढ़ाई करती थी लेकिन भारतीय त्योहारों के वक्त हम अपने मुंबई सांताक्रूज स्थित घर में जरूर त्योहार मनाने आते थे। सांताक्रुज में हमारा विशाल भवन था और उसके इर्द गिर्द दूर-दूर तक कई एकड़ों तक फैला हमारा बगीचा था जिसमें तरह-तरह के फूल और फलों के पेड़ लगे थे, आम अमरूद, अनार, कटहल, लीची, मैं अपने इस विशाल बगीचे में दिन भर दौड़ती भागती कुलाँचे भरती रहती थी। होली के दिन घर में बड़ी तैयारियां शुरू हो जाती थीं, बाजार से कोई रंग नहीं खरीदा जाता था बल्कि मेरी मां घर पर फूल पत्तियों और हर्बल्स से रंग बनवाया करती थी। बगीचे में उगने वाले ढेरों-ढेरों गुलाबों को तोड़कर उसकी पंखुड़ियों को पीसकर लाल और जामुनी रंग तैयार किया जाता था, हल्दी से पीला रंग, उबले बीट से गहरा लाल रंग तथा एडिबल हरी पत्तियों से हरे रंग और इन सब के साथ मोगरे, रजनीगंधा के फूलों को भी मिलाया जाता था जिससे सारे रंग खुशबू से भर जाते थे। होली के दिन हमारे बंगले के आसपास के बंगलो में रहने वाले हमारे फैमिली फ्रेंड्स, उनके बच्चे और मेरे पुराने स्कूल, सेंट टेरेसा की सहेलियां आती थीं, हम सब खूब मस्ती करते, एक दूसरे को कलर लगाते थे। हमारे पड़ोस में फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज कहलाए जाने वाले मुखर्जी परिवार रहते थे, वे भी होली खेलने हमारे घर आते थे, जब आंटी (श्रीमती मुखर्जी) मुझे रँगने आती तो मैं उन्हें खूब दौड़ाती और आखिर पेड़ पर चढ़ जाती थी। वक्त के साथ धीरे धीरे होली खेलने का ढंग बदलने लगा, कैमिकल वाले रंगों का इस्तेमाल होने लगा और हम सबने होली खेलना छोड़ दिया। मैंने कई फिल्मों में होली के दृश्य दिए जिसकी शूटिंग में बिल्कुल रियल होली जैसा मजा आता था लेकिन सारा दिन रंगों से भीगे कपड़ों में होना भारी पड़ता था। मुझे प्रकाश मेहरा कृत फिल्म ‘देश द्रोही’ का वो होली गीत ‘आज होली है’ सबसे अच्छा लगता है जो मेरे बचपन की होलियों की याद दिलाता है। दिलीप साहब ने भी कई फिल्मों में होली के दृश्य दिए और उन्हें फिल्म ‘आन’ का अपना होली सीन सबसे पसन्द है। आज जिस तरह से गुब्बारों में गंदे पानी और केमिकल कलर भरकर होली के दिन लोगों पर मारा जाता है वो बहुत डरावना है। आज हम लोग होली के दिन सिर्फ एक टीका लगाकर शगुन कर लेते हैं।’’

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