इसमें कोई संदेह नहीं है कि चाहे भूमिका कोई भी हो। लेकिन नवाजुद्दीन सिद्दीकी वह काफी आसानी से निभाते हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नही, की हिंदी फिल्म उद्योग के वह बेहतरीन और बहुमुखी प्रतिभा में से एक है। लेकिन अपने किरदार को निभाने के लिए वह क्य़ा तरीका इस्तमाल करते हैं।
मेरे पास इमोशन्स नही है
इस बारे में बात करते हुए नवाज कहतें हैं, “मैने कुछ इतने डार्क किरदार निभायें हैं, की मुझे कई बार यह समझ में नही आता की क्य़ा ऐसे किरदार असल जिंदगी में होते हैं। ऊन किरदारों के विचार और बर्ताव मुझसे बिलकुल भी मेल नही खातें। कुछ डार्क किरदार निभाने के बाद वह आपको इतना मानसिक रूप से थका देते हैं, की ऐसा लगता है, जैसे यार, मेरे पास तो खुद के इमोशन्स ही नही हैं।“
ऐसे किरदारों से बाहर निकलकर सामान्य होने के लिए भी नवाजुद्दीन के पास एक अलग प्रबंधन होता हैं। वह कहते हैं, “मैं अपने गांव में वापस जाता हूँ। मेरे गांव की मिट्टी मुझे नॉर्मल रूटिन में आने में मदद करती हैं। मेरी फिल्म 'रमन राघव 2.0' के किरदार का ही उदाहरण लीजिए। इस किरदार ने मुझे मानसिक रूप से काफी थका दिया था। यह फिल्म को पूरा करने के बाद में गांव लौटा। तब सरसों की खेती चल रहीं थी। मैंने अपने खेतों में काम किया। मुझे थोड़ा बेहतर लगने लगा। यह सारे पैतरे ही मुझे, अपने जडों से जु़ड़े रखतें हैं।“
नवाजुद्दीन की लोकप्रियता के चलतें, क्या उनके आस पड़ोस के गांव के लोग उन्हें इतने आराम से खेती करने देते हैं। या उनको देखने भीड़ उमड़ पड़ती हैं। इस बारे में पूछने पर नवाज कहतें हैं, “दो दिन बाद वह मुझसे सामान्स बर्ताव करने लगतें हैं। जब में तपते सूरज में खेत में अपना पसीना बहाता हूँ। तो पसीने के साथ, सारा स्टारडम भी पिघल जाता हैं।“ नवाजुद्दीन सिद्दीकी का यही विनयशील स्वभाव उन्हें फिल्म इंडस्ट्री का आदरणीय अभिनेता बनाता हैं।