ओल्ड एज होम एक ऐसी दुनिया है, जहां अकेलापन झेल रहे बुजुर्गों को थोड़ा सहारा मिलता है। ऐसे बुजुर्ग, जो अपने बच्चों से मिली प्रताड़ना सह चुके हैं और अब ओल्ड एज होम ही उनका असली बसेरा हैं, लेकिन यह विडंबना है कि अधिकांश ओल्ड एज होम बुरी अवस्था में हैं। कई बार बुजुर्ग बदनामी होने की वजह से भी ओल्ड एज होम नहीं जाते और बेटों का अपमान सहते रहते हैं। आखिर जाएं तो जाएं कहां? इसका समाधान निकालने की कोशिश की है अभिनेता-निर्देशक डॉक्टर जेएस रंधावा ने, जिन्होंने अपनी फिल्म ‘10 नहीं 40’ में ओल्ड एज होम को डे केयर सेंटर का रूप देते हुए बुजुर्ग लोगों को यह अवसर दिया है कि वे अपनी 10 साल की ज़िंदगी को डे केयर सेंटर में मज़े के साथ बिता सकें।
जेएस रंधावा अपनी इस फिल्म के जरिए दिखाना चाहते हैं कि अकेलापन झेल रहे बुजुर्ग लोग 60 से लेकर 80 तक की उम्र में भी 10 साल इतने मज़ेदार तरीके से बिता सकते हैं कि उन्हें यही लगने लगेगा कि उनकी उम्र 40 साल बढ़ गई है। ये 10 साल उन्हें डे केयर सेंटर देगा, जो ओल्ड एज होम का आधुनिक रूप है। निर्देशक रंधावा का मानना है कि फिल्म में हमने बीरबल, मनमौजी, रमेश गोयल आदि बुजुर्ग अभिनेताओं को इसलिए लिया है ताकि वे अपने किरदारों के जरिए लोगों को बता सकें कि डे केयर सेंटर उनका अकेलापन कैसे दूर कर सकता है। इस सेंटर में मनोरंजन के साथ-साथ बुजुर्गों को खेलों में भाग लेने का भी मौका दिया जाता है। कुल मिलाकर बुजुर्ग लोग यहां युवाओं जैसी मस्ती कर सकते हैं और उन्हें अहसास होगा कि बच्चों के बिना भी उनकी ज़िंदगी में रंग भरे जा सकते हैं।
बुजुर्ग अभिनेताओं से काम लेना पाना कितना मुश्किल रहा? इस सवाल पर जेएस रंधावा कहते हैं कि अनुभवी होने के कारण उन्हें काम ले पाना आसान रहा। नए अभिनेता गलती करते हैं, उन्हें बार-बार समझाना पड़ता है जबकि बुजुर्ग अभिनेता सीन को खुद ही इम्प्रोवाइज़ करते हैं और गलतियां नहीं करते। रंधावा कहते हैं कि ‘10 नहीं 40’ मेरी तीसरी फिल्म है और मेरा मकसद अर्थपूर्ण फिल्में बनाना है। मेरा दायित्व बनता है कि मीनिंगफुल फिल्मों के जरिए मैं समाज को भी कुछ दे सकूं।