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पक्षपात से अछूता नही है ऑस्कर अवॉर्ड! चार्ली चैपलिन को मिला लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, जबकि लता मंगेश्कर की याद तक एकेडमी को नहीं आयी है, क्यों?

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By Sharad Rai
पक्षपात से अछूता नही है ऑस्कर अवॉर्ड! चार्ली चैपलिन को मिला लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, जबकि लता मंगेश्कर की याद तक एकेडमी को नहीं आयी है, क्यों?
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भारत मे बनी फिल्म RRR के गीत 'नाटू नाटू' और डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'द एलिफेंट व्हिस्पर्स' को अकेडमी (ऑस्कर)अवार्ड क्या मिला, चारों तरफ हंगामा बरप रहा है जैसे  ऑस्कर का प्रसाद पाकर हमारी फिल्में विश्व फतह कर बैठी हैं. दक्षिण के फिल्मकार एसएस राजा मौली की तस्वीरें अखबारों में देख देख कर लोग थक गए हैं.  बधाइयों का तांता रुक ही नही रहा है. जबकि हकीकत ये है कि यह  एकेडमी अवार्ड भी  कथित भारतीय फिल्मी अवार्डों से कम पक्षपात पूर्ण नही होता.

विश्व सिनेमा पटल पर चार्ली चैप्लिन कितने बड़े सितारे थे बताने की जरूरत नही है. वह एक्सप्रेशन के कलाकार थे. अपनी  माइम अभिव्यक्ति से वह  मूक फिल्मों से बोलती फिल्मों तक के 70 साल के फिल्मी सफर में, जिनकी हर एक अदा पर तालियों की गड़गड़ाहट से जो हाल गुंजायमान होता था, उसकी पुनरावृति फिर कभी दिखाई नही पड़ी. उन्हें दुनिया भर के अवार्ड, सम्मान मिलते रहे लेकिन एकेडमी अवार्ड वालों की नजर उनपर लम्बे समय तक नही गयी.

वजह यह थी कि चार्ली अपनी अभिव्यक्ति और फिल्मों ( द किड, द सर्कस, गोल्डरस, मॉडर्न टाइम्स, सिटी लाइट, द ग्रेट डिक्टेटर आदि) से सिस्टम और समाज पर सीधा प्रहार करते थे. उनको लेफ्टिस्ट माना जाता था. इसलिए वह ऑस्कर से लम्बे समय तक दूर रहे. चार्ली अप्रैल 1889 में जन्मे थे और उनकी मौत हुई थी जून 1977 में. उनको ऑस्कर के लिए  मृत्यु से चार साल पहले लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया था. जब ऑस्कर को लेकर बहुत आलोचना शुरू हो गई थी तब. तब चार्ली बहुत बीमार रहा करते थे.

बताते हैं लाइफ टाइम अचीव मेन्ट अवार्ड दिए जाने के समय चार्ली चैप्लिन को स्टेज पर सिर्फ 5 मिनट का समय बोलने के लिए दिया गया था. वह चुप रहे. उनका जो स्टेज पर बिना कुछ बोले पीड़ा दायक एक्सप्रेशन था, वो 12 मिंट तक तालियों के बीच चलता रहा.बिना उनके कुछ बोले लोग उनके मन का दर्द समझ गए थे. हालांकि उनके स्टेज पर होने का सिर्फ डेढ़ मिनट का वीडियो ही देखने के लिए रिलीज किया गया था. चार्ली को सारी दुनिया पसंद करती थी लेकिन उनकी लेफ्टिस्ट सोच के चलते वह ऑस्कर में बहुत देर से सम्मानित किए गए थे. ऑस्कर के इतिहास में ऐसे बहुत से  पक्षपाती उदाहरण हैं. 

भारत की स्वर कोकिला स्वर्गीय लता मंगेशकर को ही लीजिए. जिसे सरस्वती का अवतार माना जाता है. जो पूरे विश्व मे नाइटिंगेल ऑफ इंडिया के रूप में जानी जाती हैं. सम्मान की इस साक्षात विभूति पर जिसने 46000 गाने गाने का रेकोर्ड बनाया है. उनके मरणोपरांत भी अभी तक  ऑस्कर अवार्ड देने वाली एकेडमी अवार्ड समिति की नजर उनपर नहीं गयी है. मतलब साफ है कि ऑस्कर अवार्ड को लेकर डफली बजाने वाले और वाह वाह की टीम को समझ लेना चाहिए कि ऑस्कर भी वैसा ही एक अवार्ड है जैसा भारत के होने वाले दूसरे पक्षपात पूर्ण अवार्ड्स. वहां भी पक्षपात का खेल वैसे ही चलता है जैसे हमारे देश के अवार्डों को लेकर कहा सुना जाता है.

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