मुंबई की सड़कों पर धूम मची थी जन्माष्टमी की, एक बिल्डिंग से दूसरे बिल्डिंग तक, तीसरे चौथे मंजिल के बीच डोर बंधी थी और उसपर झूल रही थी सुंदर, अलंकृत मिट्टी की हांडी जो सजी थी नोटों, फूल मालाओं और फलों से. पार्श्व में बज रहा था, 'मच गई शोर सारी नगरी में, आया बिरज का बांका, संभाल तेरी गगरी रे' और अनायास मेरे जहन में इस गीत पर अमिताभ बच्चन और परवीन बाबी की नटखट अदाएँ उभरने लगी और फिर मेरी सोच में वो परवीन बाबी एक उदासी बनकर छा गई जिसे मैंने 2001 या शायद 2002 के आसपास अंतिम बार देखा था. ठीक से साल याद नहीं.
यह वो परवीन बाबी नहीं थी जिन्होने सत्तर अस्सी के दशक में अपने मंत्रमुग्ध कर देने वाली पाश्चात्य स्टाइल की खूबसूरती और अभिनय से लाखों लोगों के दिलों पर कब्जा कर लिया था. बॉलीवुड के चकाचौंध क्षेत्र में, जहां सितारे उल्काओं की तरह उगते और गिरते हैं, परवीन बाबी एक चमकदार धूमकेतु थीं जिन्होंने सिल्वर स्क्रीन पर एक अमिट छाप छोड़ी थी. रहस्यमय परवीन बाबी बॉलीवुड के उन सितारे में से एक थी जिन्हे किस्मत ने ठगा था . वो अलगाव की एक कहानी बनकर रह गई. प्रसिद्धि के अस्थिर ज्वारभाटा के माध्यम से उनकी यात्रा स्टारडम की अल्पकालिक प्रकृति की एक मार्मिक याद दिलाती है.
मुझे याद है कि जब मैं मायापुरी पत्रिका में एक ग्रीनहॉर्न रिपोर्टर थी, (नई रिपोर्टर) तब पहली बार मेरी मुलाकात इस रहस्यमयी परवीन बाबी से हुई थी, जो कभी हिंदी सिनेमा की महान हस्ती हुआ करती थीं. उन दिनों वो सुर्खियों से दूर हो चुकी थीं, लेकिन मायापुरी के वरिष्ठ पत्रकार और मेरे गुरु श्री पन्नालाल व्यास जी के साथ परवीन बाबी की अच्छी पहचान ने मुझे एक दुर्लभ साक्षात्कार देखने का सौभाग्य दिया. जब वह अपनी सिनेमाई उपलब्धियों के बारे में बात कर रही थी, तो मैं उसकी सुंदरता, छरहरी काया और सुंदर रेशमी लंबे बालों से मंत्रमुग्ध होकर विस्मय में उन्हे चुपचाप देखती रही थी.
लगभग एक दशक बाद, भाग्य ने मुझे फिर से उनसे मुलाकात करवा दी. अंधेरी पश्चिम स्टेशन के पास हलचल भरे डाकघर में मैं अपना पोस्ट बॉक्स चेक करने आई थी. वहां परवीन बाबी को देख मैं हैरान रह गई. उनके हाथों में एक मोटी सी फाइल थी और साथ में थे कई ब्राउन बंद लंबे लिफाफे. वो शायद स्टैंप खरीदकर उन लिफाफों को पोस्ट करने आई थी. वक्त ने उनमें गहरा बदलाव ला दिया था. अब वह छरहरी, रेशमी, लंबे बालों वाली, मूर्ति जैसी सुंदर लंबी परवीन बाबी नहीं रही, वह अपने पूर्व स्वरूप की छाया में बदल गई थी. यह परवीन बाबी बेडौल, भारी और शायद मोटापे की वजह से कम हाइट की दिखाई दे रही थी . उनके एक समय शानदार दिखने वाले लंबे, मखमली, रेशमी बाल अब कट गए थे. उनके चेहरे पर थकान की रेखाएँ अंकित थीं, और जीवन से हारने का एक स्पष्ट भाव कफन की तरह उसके चारों ओर लटका हुआ था.
वह पत्रों का बंडल भेजने के लिए स्टैंप खरीदने की कतार में खड़ी थी. जैसे ही मैं उनके करीब आई उन्होने अपनी नज़रें दूसरी ओर फेर लीं, शायद वे गुमनामी का सहारा ले रही थी. बिना किसी दुविधा के, मैंने उन्हे हैलो कहा और उनसे अपनी प्रारंभिक मुलाकात की यादों को फिर से ताज़ा करने की उम्मीद में अपना परिचय उन्हे दिया. अफसोस की बात है कि उन्हे हमारी पिछली मुलाकात याद नहीं रही. फिर भी उन्होने मुस्कुरा कर हाथ मिलाया और मुझे पूछा कि मैं किस तरह के आर्टिकल लिखती हूँ. मैंने उन्हे सब बताया और साथ ही मैंने उन्हे स्टैंप वगैरह खरीदने के लिए लाइन में ना खड़े होकर साइड में खड़े होने की पेशकश की और उन्हे बताया कि उनकी जगह मै खड़े होकर उनके लिए स्टैंप वगैरह खरीद सकती हूँ जिसे बाबी ने विनम्रतापूर्वक लेकिन दृढ़ता से अस्वीकार कर दिया.
जैसे ही उन्होने अपनी स्टाम्प खरीद पूरी की, मैंने इस बदली हुई अभिनेत्री से जुड़ने की इमरजेंसी को महसूस करते हुए, उनसे कुछ मिनटों की बातचीत का अनुरोध किया. गहमा गहमी भरी उस भीड़ के बीच, परवीन बाबी पर एक अजीब सी खामोशी छा गई, जिस पर हमारे चारों ओर बेखबर भीड़ का ध्यान नहीं गया. कमाल की बात तो यह थी कि किसी ने उन्हे ना पहचाना ना उनपर ध्यान दिया. हम दोनों वहीं पास के एक बंद काउंटर के बगल में एक एकांत कोने में चले गए, और वहाँ हमने बातचीत शुरू की. उनकी प्रतिक्रियाएँ एलुसिव थीं, जैसे टूटे हुए दर्पण के टुकड़े में स्टारडम और एकांत में डूबे जीवन की जटिलताएं बिखरे बिखरे दिख रहें होते हैं . परवीन बाबी ने बॉलीवुड के बदलते परिदृश्य के बारे में बात की और अफसोस जताया कि यह कैसे असहिष्णुता और पागलपन का क्षेत्र बन गया है इसलिए जिस इंडस्ट्री ने कभी उनको सर माथे पर बिठाया था , उसी इंडस्ट्री से उन्होंने मुंह मोड़ लिया है और वह अब अलगाव के सागर में डूब गई हैं.
उनके शब्दों में, मैंने बीते समय के जीवंत सितारे की गूँज सुनी, जो समय के निरंतर बीतती घड़ियों के साथ, प्रसिद्धि की धुंधलाती छवि में, अक्सर सफलता के साथ आने वाले अकेलेपन से जूझने का डर महसूस किया. हालाँकि, यह जल्दी ही स्पष्ट हो गया कि उनका दिल और दिमाग लगातार अस्थिर स्थिति में था, क्योंकि वह अपने विचारों और वाणी में सामंजस्य बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही थी. वे खुशी और दुःख की एक टेपेस्ट्री लग रही थी , उनकी बातचीत में अचानक अपार खुशी और अचानक भयावह निराशा की भावनाएं पीपल के पत्तों की तरह अस्थिर लग रही थी, कांप रही थी. हमारी बातचीत के दौरान, उन्होंने छोटे छोटे टुकड़ों में अपनी कहानी के अंश साझा किए, जो अक्सर एक घटना से उछलकर दूसरी घटना में स्थानांतरित हो रही थी और मै उनका कोई ठोस अर्थ नहीं निकाल पा रही थी. परवीन की आँखों में आँसू आ जाते थे, जो उसके द्वारा अनुभव की गई भावनात्मक उथल-पुथल को दर्शाता था तो कभी वो हँस पड़ती थी.
ऐसा लगता था कि परवीन बाबी की हर हरकत पर एक वहम हावी हो गया था. मैंने वातावरण को हल्का करने के लिए उनसे पूछ लिया कि उन्होने अपने सिल्की ट्रेसेस (रेशमी बाल) क्यों कटवा लिए जिसपर उन्होने खुलासा किया कि उसने इस डर से अपने खूबसूरत बाल काट दिए थे कि कहीं कोई उसके कानों के पीछे ट्रैकिंग चिप न लगा दे. उन्होने पूरे विश्वास के साथ बताया कि एक बार उनके साथ ऐसा हो भी चुका है जिसके निशान अब भी उनके कानों के पीछे है. उनकी यह सतर्कता उनके कथित या शायद काल्पनिक दुश्मनों से खुद को बचाने का एक हताश और कमजोर प्रयास था. यहां तक कि अंधेरी स्टेशन के पास मोती महल जैसे लोकप्रिय रेस्तरां में चाय नाश्ता करने के मेरे पेशकश के विचार से भी वह भयभीत हो गई, उसे डर था कि कहीं वेटर उसे खाने पीने में नुकसान पहुंचाने वाली चीज़े ना डाल दें.
ऐसा लगता था कि परवीन बाबी की हर हरकत पर वहम हावी हो गया था. परवीन बाबी की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से लड़ाई के बारे में काफी अटकलें लगाई गई थीं, और हमारी मुलाकात ने इन दावों को कुछ और हवा दे दी. उसका अनियमित व्यवहार और निराधार भय उसकी नाजुक मानसिक स्थिति के स्पष्ट संकेत थे. एक समय की जीवंत और प्रतिभाशाली अभिनेत्री के भावनाओं में ऐसा उथल पुथल और पतन देखना हृदयविदारक था. बमुश्किल बीस मिनट, खड़े खड़े बातचीत जैसे ही ख़त्म हुई मैंने परवीन बाबी को जहां भी वह जाना चाहती थी, वहां तक ऑटो रिक्शे में छोड़ने की पेशकश की, उनका वहम फिर से उभर आया, और उन्होने ऑटो चालक द्वारा उन्हे संभावित रूप से नुकसान पहुँचाने के बारे में चिंता व्यक्त की. उन्होंने मुझे भी सावधान रहने की हिदायाद दी, साथ ही वे ये भी बोली कि उनकी गाड़ी सड़क के पार पार्किंग में है. उन्होने चलते चलते कहा कि वे कभी अनजान लोगों से बातचीत नहीं करती है लेकिन वो मायापुरी नाम के पत्रिका को पहचानती है इसलिए मुझसे बातें की.
मैंने परवीन बाबी को अलविदा कहा और पोस्ट ऑफिस के पिछले दरवाजे की ओर बढ़ी क्योंकी मुझे अंधेरी ईस्ट में जाना था लेकिन एक उत्सुकता मुझ पर हावी हो गई. मैं उनकी कार की एक झलक पाने की लालसा को रोक नहीं पाई जिसके बारे में उन्होने बताया था कि वह सड़क के उस पार खड़ी है. मैंने तेजी से मुड़कर एक अंतर रखते हुए उनका पीछा किया. मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ, कि परवीन ने सड़क पर आकर एक ऑटो रिक्शे को रोका और उसमें बैठ गई. यह घटनाओं का एक अप्रत्याशित मोड़ था जिसने मुझे हैरान कर दिया. जैसे ही वह ऑटो में बैठी, हमारी नज़रें थोड़ी देर के लिए मिलीं और मैं अपना हाथ हिलाए बिना नहीं रह सकी. लेकिन उन्होने दूसरी तरफ अपना मुँह फेर लिया, ऐसा लग रहा था मानो उन्होने मुझे नहीं पहचाना या हमारी अभी अभी हुई मुलाकात को स्वीकार नहीं किया या जैसे हमारी मुलाकात कभी हुई ही न हो.
मैं वहीं खड़ी रह गई. मेरे भीतर भ्रम और जिज्ञासा का मिश्रण घूम रहा था, देखते देखते परवीन बाबी की ऑटो-रिक्शा मुंबई की हलचल भरी सड़क पर गायब हो गई. विरोधाभासों और अनुत्तरित सवालों से भरी इस मुलाकात ने परवीन बाबी के अस्तित्व को परिभाषित करने वाली जटिलताओं के बारे में मेरी समझ को और गहरा कर दिया. यह एक सबक के रूप में कार्य करता है कि उनका जीवन, उनके ऑन-स्क्रीन परफॉर्मेंस की तरह, रहस्यमय भावनाओं और अनकही कहानियों का एक कैनवास था. यह एक मार्मिक क्षण था, जो परवीन बाबी के जीवन की अप्रत्याशित और रहस्यमय प्रकृति पर जोर देता था.
इस अप्रत्याशित मोड़ पर विचार करते हुए, मैं परवीन के दिमाग में व्याप्त जटिलताओं के बारे में आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सकी . उनके हावभाव और प्रतिक्रियाएँ विरोधाभासी थी. शायद यह उन चुनौतियों की याद दिलाता है जिनका उन्होने जीवन भर सामना किया था और मानसिक स्वास्थ्य के साथ संघर्ष के बीच जिस नाजुक संतुलन को बनाए रखने की उन्होने कोशिश की थी. परवीन बाबी से मुलाकात ने प्रसिद्धि, त्रासदी और मानसिक स्वास्थ्य संघर्ष की दुनिया की एक झलक पेश की. उनके भटके हुए विचार, बदलती मनोदशा और संभवतः निराधार भय, उस पीड़ा पर प्रकाश डालते हैं जो उसने सहन की थी. परवीन बाबी की कहानी मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने वाले लोगों के लिए एक अंडरस्टैंडिंग और सपोर्ट के महत्व की याद दिलाती है, खासकर एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की चकाचौंध और ग्लैमर के भीतर.
मैं मानव अस्तित्व की नाजुकता पर विचार करने से खुद को रोक नहीं सकी. खासकर उन लोगों के लिए जो प्रसिद्धि की चोटी में चढ़ते हैं और फिर गहरी खाई में उतर जाते हैं. परवीन बाबी की कहानी स्टारडम की जिजीविषा और एक ऐसी दुनिया में रहने के खतरों से होने वाले भावनात्मक नुकसान का एक मार्मिक प्रमाण है, जो अक्सर अपनी ख्याति का जश्न मनाते है और जब वो उस लाइमलाइट को त्याग देते हैं तो वो खुद को भी खो देते हैं. बॉलीवुड के इतिहास में, परवीन बाबी का जीवन आज भी एक रहस्यमय और दुखद शख्सियत बनी हुई हैं, एक ऐसी महिला जिसकी सुंदरता ने एक समय सिल्वर स्क्रीन पर धूम मचाई थी, लेकिन बाद के वर्षों में वह अकेलेपन और दुख में डूबी रही. उनकी कहानी एक सबक के रूप में कार्य करती है कि शोबिज़ की चकाचौंध और ग्लैमर के पीछे, आखिर एक नाजुक और पतनशील इंसान ही बसते हैं, जो सुर्खियों की अक्षम्य चकाचौंध के बीच अपनेपन के लिए तरसते हैं.
परवीन बॉबी के दुखद जीवन का असामयिक अंत 20 जनवरी 2005 को हुआ, जब वह अपने मुंबई अपार्टमेंट में मृत पाई गईं. खबरों के मुताबिक तीन दिन तक दरवाजा ना खोलने और उनके दरवाजे पर अखबार, दूध के पैकेट तथा पोस्ट के सामान पड़े रहने पर पड़ोसियों ने संदेह के आधार पर पुलिस को इत्तीला किया और पुलिस ने जब दरवाजा खुलवाया तो अंदर वे मृत पड़ी हुई थी. डायबिटीज के चलते उनके पाँव में गैग्रीन फैल गया था, बेड के नजदीक एक व्हील चेयर रखी थी. पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट से पता चला था कि उनके पेट में तीन दिनों तक खाना नहीं था, बस दवाइयों के अवशेष थे जो उन्हे लेना पड़ता था. उनका निधन मनोरंजन उद्योग में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियों की याद दिलाता है. इसने मानसिक कल्याण के संबंध में बेहतर सहायता प्रणालियों और जागरूकता की आवश्यकता के बारे में चर्चा को प्रेरित किया.