एक मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की नींव प्राथमिक देखभाल केन्द्र के आधार पर बनती हैबजट 2019-20 पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ने सरकार से सभी के लिए बेहतर स्वास्थ्य की अपनी प्रतिबद्धताओं को फिर से दोहराने का आह्वान किया
एक मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की नींव प्राथमिक देखभाल केन्द्र के आधार पर बनती है. इस जरूरत को अक्सर अन्य राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के मुकाबले पीछे धकेल दिया जाता है. मुजफ्फरपुर में हाल ही में एक्यूट इन्सेफेलाइटिस के प्रकोप से 150 बच्चों की मृत्यु हो गई. यह बताती है कि हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में उच्च निवेश की कितनी जरूरत है.
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में भारत का निवेश अपर्याप्त हैं और जब जरूरत का वक्त होता है तब हमारी स्वास्थ्य प्रणाली लड़खड़ाने लगती हैं. दुर्भाग्य से, हमारा सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च जीडीपी का 1.18 प्रतिशत मात्र है. भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमानों के अनुसार, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में केवल 51 प्रतिशत का निवेश किया जाता है. यह बहुत कम है. यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के विपरीत है, जो प्राथमिक देखभाल के लिए दो-तिहाई या इससे अधिक संसाधनों के निवेश की वकालत करता है.
नीति आयोग की हालिया हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट 2019 से राज्यों के स्वास्थ्य परिणामों में भारी असमानता का पता चलता है. मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव है. इन राज्यों में जन्म का पंजीकरण, शिशुओं का जन्म के समय वजन, क्षय रोग के उपचार में सफलता और राज्य के खजाने से एनएचएम धनराशि को लागू करने आदि के क्षेत्र में ठीक से काम नहीं हो रहे है. जो राज्य स्वास्थ्य सूचकांक में बेहतर हैं, उनके स्वास्थ्य देखभाल बजट पर अधिक खर्च होता है. उदाहरण के लिए, केरल, तमिलनाडु और राजस्थान में करीब 6 प्रतिशत बजट स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च किया जाता है, जबकि अन्य राज्यों में यह 4 प्रतिशत या उससे कम है.
स्वास्थ्य बजट में आयुष्मान भारत योजना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित किए जाने की आवश्यकता है. राष्ट्र के विकास के एजेंडे पर परिवार नियोजन को फिर से प्राथमिकता देने की तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि परिवार नियोजन के लिए बजट 2014-15 के बाद से 4 प्रतिशत ही बना हुआ है. गर्भनिरोधक उपायों तक पहुंच, सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के 19 लक्ष्यों में से एक है. 2015 के बाद की आम सहमति के अनुसार यह लक्ष्य पैसे का सर्वोत्तम मूल्य देता है. खर्च किए गए प्रत्येक 1 डॉलर के मुकाबले यह 120 डॉलर के बराबर सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ देता है. ये बचत बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में इस्तेमाल की जा सकती है ताकि सरकार को हमारे जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने में मदद मिल सके.. इस जरूरत को अक्सर अन्य राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के मुकाबले पीछे धकेल दिया जाता है. मुजफ्फरपुर में हाल ही में एक्यूट इन्सेफेलाइटिस के प्रकोप से 150 बच्चों की मृत्यु हो गई. यह बताती है कि हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में उच्च निवेश की कितनी जरूरत है.
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में भारत का निवेश अपर्याप्त हैं और जब जरूरत का वक्त होता है तब हमारी स्वास्थ्य प्रणाली लड़खड़ाने लगती हैं. दुर्भाग्य से, हमारा सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च जीडीपी का 1.18 प्रतिशत मात्र है. भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमानों के अनुसार, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में केवल 51 प्रतिशत का निवेश किया जाता है. यह बहुत कम है. यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के विपरीत है, जो प्राथमिक देखभाल के लिए दो-तिहाई या इससे अधिक संसाधनों के निवेश की वकालत करता है.
नीति आयोग की हालिया हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट 2019 से राज्यों के स्वास्थ्य परिणामों में भारी असमानता का पता चलता है. मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव है. इन राज्यों में जन्म का पंजीकरण, शिशुओं का जन्म के समय वजन, क्षय रोग के उपचार में सफलता और राज्य के खजाने से एनएचएम धनराशि को लागू करने आदि के क्षेत्र में ठीक से काम नहीं हो रहे है. जो राज्य स्वास्थ्य सूचकांक में बेहतर हैं, उनके स्वास्थ्य देखभाल बजट पर अधिक खर्च होता है. उदाहरण के लिए, केरल, तमिलनाडु और राजस्थान में करीब 6 प्रतिशत बजट स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च किया जाता है, जबकि अन्य राज्यों में यह 4 प्रतिशत या उससे कम है.
स्वास्थ्य बजट में आयुष्मान भारत योजना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित किए जाने की आवश्यकता है. राष्ट्र के विकास के एजेंडे पर परिवार नियोजन को फिर से प्राथमिकता देने की तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि परिवार नियोजन के लिए बजट 2014-15 के बाद से 4 प्रतिशत ही बना हुआ है. गर्भनिरोधक उपायों तक पहुंच, सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के 19 लक्ष्यों में से एक है. 2015 के बाद की आम सहमति के अनुसार यह लक्ष्य पैसे का सर्वोत्तम मूल्य देता है. खर्च किए गए प्रत्येक 1 डॉलर के मुकाबले यह 120 डॉलर के बराबर सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ देता है. ये बचत बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में इस्तेमाल की जा सकती है ताकि सरकार को हमारे जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने में मदद मिल सके.