नई दिल्ली में आयोजित विश्व हिंदी मेले में बोधि प्रकाशन के सौजन्य से कालजयी अभिनेता दिलीप कुमार के जीवन की दास्तान "साहेब सायराना" का लोकार्पण संपन्न हुआ जिसमें मायापुरी के संपादक श्री प्रमोद बजाज, प्रतिष्ठित साहित्यकार नंद भारद्वाज, ओम निश्चल, फारूक आफरीदी, गजेंद्र रिझवानी तथा संदीप मायामृग सहित कई विशिष्ट साहित्यकारों की उपस्थिति दर्ज हुई. उल्लेखनीय है कि यह कार्यक्रम दिलीप कुमार के सौंवें जन्मदिन के अवसर पर महाराष्ट्र साहित्य अकादमी की ओर से मुंबई में आयोजित था किंतु प्रख्यात अभिनेत्री सायराबानो के कुछ अस्वस्थ हो जाने के कारण मुंबई में न होकर नई दिल्ली के प्रगति मैदान में विश्व पुस्तक मेले के अवसर पर संपन्न हुआ. इस किताब में दिलीप कुमार की दास्तान को उनकी जीवन संगिनी सायरा बानो की नज़र से दर्शाया गया है जिसके चलते किताब का नाम "साहेब सायराना" रखा गया है. पुस्तक के लेखक विख्यात साहित्यकार प्रबोध कुमार गोविल हैं. किताब को जयपुर के बोधि प्रकाशन द्वारा छापा गया है. प्रबोध कुमार गोविल ने बताया कि बदलते हुए परिदृश्य में फिल्मी किरदारों के बारे में और ज्यादा जानने की ललक दर्शकों व पाठकों में बढ़ी है. गोविल ने पिछले दिनों गुज़रे ज़माने की लोकप्रिय अभिनेत्री साधना और वर्तमान शिखर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की जीवनी भी लिखी है. उनका कहना है कि लोकप्रिय चेहरों की वास्तविक जीवनी में भी कई ऐसी विलक्षण बातें होती हैं जो नई पीढ़ी को जाननी चाहिए. कोई चोटी का फिल्मस्टार ऐसे ही नहीं बन जाता इसके लिए प्रतिभा, लगन और ज़ुनून की ज़रूरत होती है.
"दिलीप कुमार की जन्मशती प्रबोध कुमार गोविल की नज़र से" ये कहानी एक ऐसे शख्स की है जिसने अपनी तमाम जिन्दगी जवानी में ही गुजारी. ये कालजयी कहानी है दिलीप कुमार की, ये कहानी है स्वाभिमानी सायराबानो की, ये कहानी है जिन्दगी की, मोहब्बत की, जिंदादिली की."
प्रबोध जी लिखते हैं सायरा से शादी के वक्त दिलीप कुमार ने पूछा,"इस मुबारक मौके पर तोहफे के रुप में क्या चाहिए?" सायरा ने उत्तर दिया,"बस ये वादा कीजिए कि जिन्दगी भर उन्हें अपने से दूर नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें अपने शौहर की दूसरी बेगम बनने से बेहद डर लगता है."
गोविल ने बड़ी सधी हुई भाषा में फिल्म समीक्षकों और फिल्मों की बारीकियों पर गहन चर्चा की है. फिल्म खर्चीला मनोरंजन है, विचारधाराएं प्रभावित करती हैं और छल-पत्रकारिता से भी जूझना पड़ता है. पुरस्कारों की अपनी राजनीति है. गोविल जी कहते हैं, "फिल्मी दुनिया काबिलियत की दुनिया ही नहीं है बल्कि ये नसीब और सिफारिशों की दुनिया भी है." दिलीप कुमार को 'अभिनय सम्राट' कहा गया, वे मुम्बई के शेरिफ बने और कुछ समय के लिए देश के सर्वोच्च सदन राज्यसभा के सदस्य भी रहे. दिलीप कुमार की हाजिर जवाबी के बहुत किस्से हैं. फिल्मी दुनिया में एक-दूसरे से नजदीकियों और प्रेम प्रसंग को लेकर खूब चर्चाएं होती हैं और बहुत सारे सम्बन्ध बनते-बिगड़ते रहते हैं. फिल्मों पर भी प्रभाव पड़ता है. गोविल जी ने अपनी पुस्तक में बड़ी शालीनता व सहजता से ऐसे प्रसंगों का उल्लेख किया है. वे लिखते हैं, "स्त्री के भीतर एक अनोखी शक्ति होती है जो पहचान लेती है."
दिलीप कुमार को पद्मविभूषण, दादा साहब फाल्के अवॉर्ड और पाकिस्तान का सर्वोच्च सम्मान भी मिला. उन्हें 8 बार फिल्मफेयर का बेस्टएक्टर अवार्ड दिया गया. दिलीप कुमार सामाजिक व सैन्य- कल्याण कार्यक्रमों में लगातार रुचि लेते रहे. उन्होंने अपने दौर की लगभग हर अभिनेत्री के साथ काम किया.सायराबानो जीवनपर्यन्त अपने साहेब की फ्रेंड, फिलास्फर और गाइड बनी रहीं. भारतीय फिल्म जगत की ये एक अनूठी मिसाल है. निस्संतान दिलीप कुमार ने शाहरुख खान को पुत्रवत माना. उन्हें 'ट्रेजडी किंग' कहा गया. वे दुखद और गम्भीर फिल्मों के लिए जबरदस्त तैयारी करते थे. उन्हें प्रेम करने वाले, चाहने वाले बहुत थे. उन्हें खाना बनाने और क्रिकेट खेलने का शौक था. सायरा की सेवा को लेकर किसी डॉक्टर ने सार्वजनिक रुप से कहा था- "दिलीप कुमार के साथ करोड़ों लोगों की दुआएं तो हैं ही, सती सावित्री-सी पत्नी भी है, इसलिए वे हर झंझावात से निकल पाने में सक्षम हैं.“ गोविल लिखते हैं,- "कामयाबी और शोहरत कभी अकेले नहीं फिरते, उनके इर्द- गिर्द मोहब्बतें, इबादतें, तिजारतें और मिल्कियत भी रहती है." दिलीप कुमार के साथ जैसे एक युग का अवसान हुआ.- विजय कुमार तिवारी