पिछले दिनों सन्यास अश्रम तथा द इंडियन प्लानेटरी सोसाइटी, परमार्थ सेवा समिति और गुजराती सेवा समाज मुंबई ने सन्यास अश्रम विले पार्ले पश्चिम मुंबई में गौ महोत्सव का पावन उत्सव का आयोजन करते हुए, भारतीय संस्कृति में विश्व माता माने जाने वाली सार्वभौमिक मां अर्थात हमारी गौ माता पर एक बृहद अंतर्दृष्टि का उत्सव प्रस्तुत किया जिसमें अध्यक्ष रहें महामंडलेश्वर 1008 श्री स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरीजी महाराज, आशिर्वचन परम पूज्य श्री मोरारी बापू तथा गेस्ट ऑफ ऑनर में देश के कई गुणी जनों में भारतीय सिनेमा तथा टीवी और ओटिटी जगत के सुप्रसिद्ध हस्ती श्री प्रेम रामानंद सागर भी उपस्थित थे. प्रेम सागर सुपुत्र हैं कालजेयी फिल्मों और टीवी सीरीज के रचयता डॉक्टर रामानंद सागर के, जो हर पल अपने पुत्र धर्म पालने में तत्पर रहते हैं. इन्ही सुंदर अवसरों पर फिर से बार बार हमारी पीढ़ी को यह महसूस होता है कि भारत में हिंदुत्व की लौ जलाने में, तथा भारत को राम मय रंग में रंगने में जिन महान हस्तियों का जोर लगा है उनमें मॉडर्न युग के तुलसीदास, भारतीय सिनेमा जगत के अग्रणी तथा टेलीविजन जगत के प्राण दाता स्वर्गीय डॉक्टर रामानंद जी भी एक महत्वपूर्ण स्तंभ रहें हैं.
आज देश में भगवान रामचन्द्र जी के अमृत नारे लगते हैं, हिन्दुत्व की महिमा से पूरा देश अलोकित है, शंखनाद, मंदिर की घंटियों, श्लोक, मंत्र और राम राम का रस स्वादन गली गली में हर भारतीय के मुख में है और अपनी जन्म दायिनी माता के साथ साथ सार्वभौमिक माँ, यानी हमारी गौ माता की पूजा, जय जयकार की गूँज से भारत गुंजित है. परंतु एक समय ऐसा भी था जब ऐसा कुछ भी दृष्टिगत नहीं था, यानी इतना उजागर नहीं था जितना आज है. आज भारत में इन पावन विचारों की जो गंगा बह रही है उसका काफी श्रेय डॉक्टर रामानंद सागर को जाता है जिन्होने अस्सी के दशक में (1987) भगवान राम की दिव्य कथा को इलेक्ट्रॉनिक मीडियम अर्थात टेलीविजन पर अद्भुत, अकल्पनीय ढंग से, एक महान, मेगा धारावाहिक 'रामायण' के रूप में प्रस्तुत करके ना सिर्फ एक इतिहास रचा बल्कि पूरे भारत को प्रभु राम के रंग में रंगते हुए विश्व में राम जी की कथा को घर घर और जन जन तक पंहुचा दिया. सच कहूं तो मेरी पीढ़ी ने भगवान राम की जीवन कथा, राम जी के पुरुषार्थ, रामराज्य की महिमा सब कुछ इसी रामायण धारावाहिक से जाना और समझा. आइए एक बार फिर याद कर लें उस महान राम चन्द्र जी के सच्चे भक्त को जिन्हे मॉडर्न जमाने के तुलसीदास भी पुकारा जाता है.
29 दिसंबर, 1917 को चंद्र मौली चोपड़ा के नाम से पैदा हुए रामानंद सागर एक समर्पित भारतीय फिल्म निर्माता, निर्देशक, लेखक और स्टोरी टेलर थे, जिन्होंने भारतीय फिल्म इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी. वे एक पटकथा लेखक, निर्माता और निर्देशक थे, जिनके कलम के जादू से ना जाने कितनी फिल्में पचास साठ के दशक में सुपर हिट हुई, जब वे स्वतंत्र रूप से निर्माता निर्देशक बने तो उनकी बनाई गोल्डेन जुबली फिल्मों की झड़ी लग गई. उनकी फिल्में 'पैगाम, बरसात, घुंघट, जिंदगी, आरज़ू, आँखें, गीत, ललकार, बगावत' कल्ट फिल्मों में शुमार है. जब डॉक्टर रामानंद सागर ने अस्सी के दशक में टेलीविजन की ओर अपनी शुभ दृष्टि डाली तो जैसे टीवी की दुनिया में एक क्रांति आ गई. भारतीय पौराणिक कथाओं और राम संस्कृति को भारतीय मनोरंजन में सबसे आगे लाने में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता था. डॉक्टर रामानंद सागर अपने समय के सबसे महान कहानीकारों में से एक थे, जिन्हें कालातीत कहानियों को पिरोने की आदत थी, जिन्होने पीढ़ी दर पीढ़ी दर्शकों के दिलों पर कब्जा किया. उन्होंने 1940 के दशक में भारत के संपन्न सिनेमा उद्योग में एक लेखक और निर्माता के रूप में अपना करियर शुरू किया और अपने समय की कुछ सबसे प्रतिष्ठित फिल्मों का निर्देशन किया. भारतीय पौराणिक कथाओं और विशेष रूप से रामायण के लिए डॉक्टर रामानंद सागर का प्रेम उनके काम में स्पष्ट था.
1980 के दशक में, उन्होंने एक ऐसी परियोजना पर काम करना शुरू किया, जिसे बाद में भारतीय संस्कृति में उनके सबसे बड़े योगदानों में से एक माना जाएगा - वो है टेलीविजन श्रृंखला, रामायण. यह श्रृंखला भारत के राष्ट्रीय टेलीविजन नेटवर्क दूरदर्शन पर प्रसारित की गई और 1987 से 1988 तक सतत चलते हुए यह एक त्वरित हिट थी, जिसने देश भर के दर्शकों को ही नहीं बल्कि दुनिया भर के एन आर आई से लेकर ठेठ विदेशियों को भी आकर्षित किया. इस तरह डॉक्टर सागर ने रामायण और रामायण की शिक्षाओं के प्रति श्रद्धा की एक नई लहर को जन्म दिया. डॉक्टर रामानंद सागर की रामायण सिर्फ एक टेलीविजन श्रृंखला ही नहीं है बल्कि इससे भी कहीं अधिक है. यह एक सांस्कृतिक घटना है जिसने भारतीयों की पीढ़ियों को प्रभावित किया है. उन्होने पौराणिक भारतीय महाकाव्य कहानी, रामायण को छोटे पर्दे पर वापस लाने का बीड़ा उठाया और भारत में राम संस्कृति के प्रति प्रेम को फिर से जगाया. इस श्रृंखला ने युवा पीढ़ी को राम के आदर्शों और मूल्यों से परिचित कराने का अवसर प्रदान किया, साथ ही पुरानी पीढ़ी के लिए सरल समय के नोस्टालजिक अनुस्मारक के रूप में भी काम किया. डॉक्टर रामानंद सागर की महान टीवी रचना, "रामायण" का भारतीय मानस और इसकी संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा. इस श्रृंखला ने भारतीय समाज में पारिवारिक बंधन, भक्ति, धार्मिकता और करुणा के महत्व को प्रबल किया. यह भारतीय इतिहास में सबसे प्रभावशाली टीवी श्रृंखलाओं में से एक है, और इसकी शिक्षाएं दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करती रहती हैं.
अब आइए गौ महोत्सव के बारे में जान लें. यह एक वार्षिक त्यौहार है जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं में गायों के महत्व का जश्न मनाता है. यह त्योहार देश के विभिन्न हिस्सों में होता है और बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है.गायों को हिंदुओं द्वारा पवित्र माना जाता है और यह श्रद्धा सदियों से भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है. बताया जाता है कि गाय के दूध, गोबर और मूत्र में औषधीय गुण होते हैं और विभिन्न आयुर्वेदिक उपचारों में इसका उपयोग किया जाता है. इसलिए, गायों के प्रति हमेशा भारत में सम्मान और भक्ति के साथ व्यवहार किया गया है. गौ महोत्सव गायों और मनुष्यों के बीच के बंधन को मनाने के लिए आयोजित किया जाता है. लोग अपनी गायों को रंगीन गहनों से सजाते हैं, उन्हें सुंदर डिजाइनों से रंगते हैं. यह प्रतियोगिता, दैनिक जीवन में गाय के महत्व और पारिस्थितिकी तंत्र में इसकी भूमिका पर भी प्रकाश डालती है. इस त्योहार में गौ रक्षा, जैविक खेती और पारंपरिक चिकित्सा जैसे विषयों पर सेमिनार और कार्यशालाएं भी शामिल हैं. यह लोगों को कृषि में गायों के महत्व को समझने और सतत विकास के लिए इसका उपयोग कैसे किया जा सकता है, यह समझने का अवसर प्रदान करता है. हाल के वर्षों में, गौ महोत्सव, गाय संरक्षण का एक मंच बन गया है और इसने गायों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में जागरूकता बढ़ाई है. यह त्योहार न केवल गायों का उत्सव है, बल्कि इन पवित्र पशुओं के प्रति मनुष्य की जिम्मेदारी का भी स्मरण कराता है. गौ महोत्सव एक ऐसा त्यौहार है जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं में गहराई से निहित है.