पुण्यतिथि: पृथ्वीराज कपूर का अद्भुत अभिनय ही उनके व्यक्तित्व की पहचान है

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By Sangya Singh
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पुण्यतिथि: पृथ्वीराज कपूर का अद्भुत अभिनय ही उनके व्यक्तित्व की पहचान है

अपनी कड़क आवाज और दमदार अभिनय से लगभग चार दशकों तक लोगों के दिलों पर राज करने वाले भारतीय सिनेमा के युगपुरुष पृथ्वीराज कपूर अपने काम के प्रति हमेशा समर्पित और नरम दिल वाले इंसान थे। पृथ्वीराज कपूर फिल्म इंडस्ट्री में 'पापाजी' के नाम से मशहूर थे। इन पैसों के जरिए पृथ्वीराज कपूर ने एक वर्कर फंड बनाया था जिसके जरिए वे पृथ्वी थिएटर में काम कर रहे सहयोगियों को जरूरत के समय मदद किया करते थे। आइए आज उनकी पुण्यतिथि के दिन हम आपको बताते हैं उनके जीवन की कुछ खास और दिलचस्प बातें...

- पृथ्वीराज कपूर का जन्म 3 नवंबर 1901 में पश्चिमी पंजाब के लॉयलपुर जो कि अब पाकिस्तान में है में हुआ था। उनके पिता दीवान बशेश्वरनाथ कपूर पुलिस उपनिरीक्षक थे।

- पृथ्वीराज ने पेशावर पाकिस्तान के एडवर्ड कालेज से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने एक साल तक कानून की शिक्षा भी प्राप्त की जिसके बाद उनका थियेटर की दुनिया में प्रवेश हुआ।

पहली बोलने वाली फिल्म आलम आरा में निभाई मुख्य निभाई

- 1928 में वो मुंबई आए और कुछ एक मूक फ़िल्मों में काम करने के बाद उन्होंने भारत की पहली बोलने वाली फ़िल्म 'आलम आरा' में मुख्य भूमिका निभाई। publive-image

- 1932 में पृथ्वीराज कपूर ने एंडरसन थिएटर कम्पनी ज्वाइन कर ली और इसकी टीम के साथ देश के विभिन्न स्थानों का भ्रमण किया। एंडरसन कम्पनी बंद हो गयी तो पृथ्वीराज कलकत्ता में बी.एन.सरकार द्वारा स्थापित न्यू थिएटर कंपनी  में आ गये। यहा उन्हें हीरो के रूप में कई फिल्मों में काम करने का मौका मिला |

- पृथ्वीराज ने सन् 1944 में मुंबई में पृथ्वी थिएटर की स्थापना की, जो देश भर में घूम-घूमकर नाटकों का प्रदर्शन करता था। 16 वर्षों की अवधि में पृथ्वी थिएटर ने कुछ 2,662 शो दिखाए। इन्हीं से कपूर ख़ानदान की भी शुरुआत भारतीय सिनेमा जगत में होती है।publive-image

- उनकी प्रमुख फिल्में वी. शांताराम की ‘दहेज’, ‘आवारा’ , आसमान महल (1965), तीन बहूरानियां (1968),कल आज और कल (1971) और पंजाबी फिल्म ‘नानक नाम जहाँ है’ (1969) जैसी कई फिल्में शामिल हैं। publive-image

निर्देशन करते हुए खोई अपनी आवाज

- उन्होंने ‘पैसा’ नामक फिल्म का निर्देशन करते हुए अपनी आवाज खो दी, जिसके परिणाम स्वरूप पृथ्वी थिएटर बंद हो गया और उन्होंने फिल्मों करनी छोड़ दी। इसी दौरान पृथ्वीराज कपूर की 'मुग़ले आजम', 'हरिश्चंद्र तारामती', 'सिकंदरे आजम', 'आसमान महल' जैसी कुछ सफल फ़िल्में रिलीज हुईं। publive-image

- साल 1960 में रिलीज हुई के. आसिफ की 'मुग़ले आज़म' में उनके अपोजिट दिलीप कुमार थे, इसके बावजूद पृथ्वीराज कपूर अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। publive-image

- साल 1965 में रिलीज हुई फ़िल्म 'आसमान महल' में पृथ्वीराज ने अपने सिने कैरियर की एक और न भूलने वाली भूमिका निभाई। इसके बाद वर्ष 1968 में रिलीज फ़िल्म 'तीन बहुरानियां' में पृथ्वीराज ने परिवार के मुखिया की भूमिका निभाई, जो अपनी बहुरानियों को सच्चाई की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है।publive-image

पंजाबी फिल्मों में भी किया काम

- इसके साथ ही अपने पुत्र रणधीर कपूर की फ़िल्म 'कल आज और कल' में भी पृथ्वीराज कपूर ने यादगार भूमिका निभाई। वर्ष 1969 में पृथ्वीराज कपूर ने एक पंजाबी फ़िल्म 'नानक नाम जहां है' में भी अभिनय किया। publive-image

- पृथ्वीराज को देश के सर्वोच्च फ़िल्म सम्मान दादा साहब फाल्के के अलावा पद्म भूषण तथा कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया। उन्हें राज्यसभा के लिए भी नामित किया गया था।

- उनकी अंतिम फ़िल्मों में राज कपूर की 'आवारा' (1951), 'कल आज और कल' और ख़्वाजा अहमद अब्बास की 'आसमान महल' भी थी।publive-image

- फ़िल्मों में अपने अभिनय से सम्मोहित करने वाले और रंगमंच को नई दिशा देने वाली यह महान् हस्ती 29 मई, 1972 को इस दुनिया से रुखसत हो गए। उन्हें मरणोपरांत दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

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