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'कितनी होली आई और कितनी होली गई, लेकिन वह होली फिर ना आई जो राज कपूर के आंगन में सबने देखी थी।' कहते हैं बॉलीवुड के सितारे जिन्होंने बॉलीवुड होली का वो जमाना देखा था और आज के जमाने की होली भी देख रहे हैं। कहते है, आज की तरह उस जमाने में स्टूडियो के गेट पर इतनी चेकिंग और सिक्योरिटी नहीं होती थी। जिसे भी बॉलीवुड के बड़े-बड़े स्टार, सुपर स्टार को देखना होता, वे चेहरे पर रंग लगाकर आर के स्टूडियो में दाखिल हो जाते। होली के दिन गेटकीपर को राज कपूर की तरफ से किसी को भी ना भगाने की कड़ी चेतावनी होती थी, इसलिए कोई भी राह चलते आदमी मुंह उठाए अंदर घुस जाता था। आरके के आंगन में जब होली का खुमार चढ़ता तो पूरी बॉलीवुड वहां होली के बुखार में तपते नजर आते थे। चाहे कोई बूढ़ा हो, जवान हो, बच्चा हो, स्त्री हो या पुरुष, सबको आरके के आंगन में बने होली के हौज में डुबकी लगाना ही पड़ता था। राज कपूर खुद वहां खड़े होकर इस बात की कड़ी निगरानी रखते कि किसी भी स्त्री के साथ पानी में डुबकी लगाते हुए या रंग डालते हुए कोई बदतमीजी ना हो पाये। उस जमाने की टॉप हीरो हीरोइन से लेकर नए कलाकार, सभी को रंग में डूबना अनिवार्य होता था, सिर्फ एक व्यक्ति जो राज कपूर की उस अनिवार्य डुबकी से बचने का अधिकार रखते थे वह थे देवानंद, जिन्हें शुरू से ही होली खेलना बिल्कुल पसंद नहीं था और इसलिए वे कभी किसी होली जश्न में शामिल नहीं होते थे और होली के दिन अपने कमरे में से बाहर कदम रखने को तैयार नहीं होते थे, लेकिन राज कपूर से गहरी दोस्ती के चलते देव आनंद को राज कपूर से होली की मुबारकबाद लेने देने के लिए मिलना ही पड़ता था, लेकिन देवानंद की शर्त होती थी कि कोई उस पर रंग ना लगाएं और राज कपूर ने जीवन भर उस शर्त का पालन किया। राज कपूर के होली पार्टी में रंग खेलने के अलावा सबको नाचना या फिर गाना भी अनिवार्य था। ऐसे में ललिता पवार जैसी स्ट्रिक्ट सास की भूमिका निभाने वाली कड़क एक्ट्रेस को भी ठुमके लगाने पड़ते थे। युवा अमिताभ बच्चन से जब राज कपूर ने कोई गाना सुनाने को कहा तो अमिताभ बच्चन ने अपने पिताजी, सुप्रसिद्ध कवि श्री हरिवंश राय बच्चन रचित, फोक गीत पर आधारित गाना 'रंग बरसे भीगे चुनरवाली' गा दिया। उस वक्त उन्हें पता नहीं था कि आगे चलकर उन्हें अपनी ही एक फिल्म में इसे खुद गाना पड़ेगा जो आने वाले बरसो बरस तक होली का सबसे पॉपुलर गीत बन जाएगा। राज कपूर की होली पार्टी में उस दिन तरह-तरह के लजीज पकवान, पय- पदार्थों की ऐसी रेलपेल लगती थी कि अजनबी राहगीर भी आकर भर भर के खा जाते थे और फिर भी खाना खत्म नहीं होता था। राज कपूर के जाने के बाद वाकई बॉलीवुड से होली का वह नशा उतर गया जो उन दिनों होली के बाद भी दस दिनों तक सब पर चढ़ा रहता था।