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सौ वर्ष पहले, पंजाब के गुजरांवाला के एक मध्यम वर्गीय परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ उसका नाम रोशनलाल नागरथ पड़ा. अपनी उम्र के अन्य बच्चों से अलग यह नन्हा बच्चा बहुत ही शर्मिला और संवेदनशील था जो खेल कूद के बनिस्पत सरोद बजाने में ज्यादा रुचि रखता था. सरोद वादन के प्रति ही नहीं बल्कि कई अन्य संगीत वाद्य सीखने में भी उनकी दिलचस्पी बढ़ती गई. उनके संगीत के प्रति इतनी दिलचस्पी ने आगे चलकर उन्होने संगीत को ही अपना कैरियर चुनने का फैसला किया, लेकिन यह कैसे संभव होगा, यह उन्हें तब तक समझ नहीं आया जब तक वे जीविका की तलाश में मुंबई नहीं आ गए. मुंबई पहुंच कर कई दिनों के पशोपेश, ऊहापोह और रात भर जागरण के बाद उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में संगीतकार के रूप में करियर बनाने का फैसला किया. सबसे पहले उन्होंने अपना नाम छोटा करते हुए रोशन रख लिया.
आज से कुछ वर्ष बाद, संभवता हम रितिक के दोनों हैंडसम नन्हे पुत्र, हृधान तथा रेहान को भी सफलता के आसमान में चमकते हुए देखेंगे और क्योंकि मैंने शुरू से ही रोशन खानदान को रोशनी फैलाते देखा है, इसीलिए भविष्यवाणी कर सकता हूं कि ये बच्चे भी आगे चलकर उज्जवल भविष्य के साथ खूब रोशन होंगे क्योंकि चमकना रोशन खानदान के जीन्स में है. जैसे-जैसे महान रोशन साहब के सौवें एनिवर्सरी का दिन नजदीक आ रहा है, मुझे पता नहीं कि रोशन परिवार या फिल्म इंडस्ट्री ने उसे मनाने की क्या योजना कर रखी है लेकिन मैं सोचता हूँ कि काश, आज वो शर्मिले और संवेदनशील रोशन यहाँ होते तो देखते कि उन्होंने जो बीज उस समय बोये थे उसने कितना विशाल रूप ले लिया है.
उस वक्त उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि वे एक ऐसे खानदान की बुनियाद डाल रहे हैं जो आगे चलकर रोशन फैमिली या रोशन खानदान के रूप में जगप्रसिद्ध होगा और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का एक मजबूत स्तंभ बनेगा. वे अपने भाग्य और भविष्य को लेकर एकदम अनजान तथा मासूम थे लेकिन उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ संगीत जगत में डूबकर काम किया, यह सोचते हुए की कभी ना कभी उनकी यह मेहनत और दीवानगी उन्हें जरूर कामयाब बनाएगाी. वे महानतम संगीतज्ञ अनिल विश्वास तथा हुस्नलाल भगतराम के प्रशंसक तो थे लेकिन उन्होंने यह फैसला किया कि जब उन्हें फिल्मों में संगीत देने का मौका मिलेगा तो वे कभी उन लोगों की नकल नहीं करेंगे और वह मौका जल्दी उन्हें मिल गया जब वरिष्ठ तथा आल राउंडर केदार शर्मा ने, जो खुद बेहतरीन गीत लिखने के लिए जाने माने जाते थे और जिन्होंने के एल सहगल के लिए कई बेस्ट गीत लिखे थे और जिन्हें राज कपूर के गुरु के रुप में जाना जाता है तथा जिन्होंने राज कपूर को उस वक्त थप्पड़ भी रसीद किया था जब राज कपूर उनके पास बतौर असिस्टेंट काम कर रहे थे ने उन्हें मौका दिया.
राज कपूर को केदार शर्मा ने भारतीय सिनेमा के पितामह पृथ्वीराज कपूर के सिफारिश पर रखा था. पहली बार जिस फिल्म के लिए रोशन ने संगीत दिया. वह फ्लाॅप हो गया लेकिन जल्दी उन्होंने कई छोटी बड़ी फिल्मों में खूबसूरत म्यूजिक देकर यह साबित कर दिया कि वे कितने मल्टी टैलेंटेड है. वैसे तो उनके द्वारा रचा गया हर गीत एक हीरा है लेकिन यादगार फिल्मों में उन्होंने जो यादगार गीत संगीत बद्द किये उसके लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे. उनकी सारी फिल्मों में, जिनमें उनके द्वारा संगीत बद्द यादगार फिल्में बन गई, उनमें से प्रमुख है बावरे नयन, मल्हार, नवबहार, अनहोनी, बरसात की रात, अर्थी, ताजमहल, दिल ही तो है, चित्रलेखा, देवर, भीगी रात, बहू बेगम और अनोखी रात जो उनकी अंतिम फिल्म साबित हुई क्योंकि उनका असमय निधन 16 नवंबर 1967 में हो गया. उनके द्वारा सदाबहार संगीतबद्ध गीत आज भी लोकप्रिय हैं और हमेशा रहेंगे.
रोशन ने उन प्रत्येक संवेदनशील इंसान की तरह अपनी जीवन संगिनी चुनने में वक्त जरुर लगाया लेकिन जब उन्होंने आखिर जीवनसंगिनी का चुनाव किया तो वह बंगाली लड़की इरा थी, जिसे भी संगीत से लगाव था. उन दिनों जब वे अपने करियर की सफलता के लिए संघर्ष कर रहे थे और हुस्नलाल भगतराम के अंधेरी वर्सोवा (आज सात बंगला) स्थित विशाल बंगले के एक हिस्से में रह रहे थे तब उनका पहला बेटा राकेश पैदा हुआ. उनका दूसरा बेटा राजेश उस वक्त पैदा हुआ जब उनके दिन कुछ अच्छे हो गए थे.
राकेश को संगीत के प्रति खास दिलचस्पी नहीं थी हालांकि उनके पास अपने संगीतज्ञ पापा के रूप में संगीत का खजाना था. उन्हें अभिनय में ज्यादा रुचि थी. राकेश में नायक बनने के सारे गुण थे लेकिन अभिनय की शुरुआत, उन्हें संजीव कुमार ऋषि कपूर तथा कई और नायकों की फिल्मों में विलन का किरदार निभाते हुए करना पड़ा. इस बात से राकेश अपने एक्टिंग करियर को लेकर संतुष्ट नहीं थे. अंततः उन्होंने अपनी पत्नी पिंकी के पिता जी यानी अपने ससुर जी, वरिष्ठ सुप्रसिद्ध फिल्ममेकर, जे ओम प्रकाश (जिन्होंने सत्तर अस्सी के दशक में सफलतम सुपर हिट फिल्में बनाई थी) के आशीर्वाद से अपनी खुद की फिल्म कंपनी शुरू की जिसका नाम रखा 'फिल्म क्राफ्ट'. शुरू मे उन्होंने कुछ आउट एंड आउट कमर्शियल फिल्में बनाई जो चल नहीं पाई जिससे असंतुष्ट होकर राकेश ने दक्षिण भारत के बेहतरीन निर्देशक के विश्वनाथ को ढूंढ निकाला. के विश्वनाथ ने ना केवल राकेश के अभिनय गुणो को जगजाहिर किया बल्कि उनके होम प्रोडक्शन की फिल्में, कामचोर, शुभकामना, जाग उठा इंसान को निर्देशित करके उनकी प्रोडक्शन कंपनी को नाम प्रसिद्धि और स्टैंड दिया. इन्ही विश्वनाथ जी के साथ काम करते हुए राकेश को महसूस हुआ कि उनके अंदर भी फिल्म बनाने के गुण हैं और उसके पश्चात जो हुआ उसने हिंदी फिल्मों का एक इतिहास रच डाला.
राकेश रोशन की सफलतम फिल्में जैसे, खुदगर्ज, खून भरी मांग, करण अर्जुन, कोयला तथा, बेटे रितिक रोशन को बतौर हीरो लेकर बनाई फिल्में, कहो ना प्यार है, कोई मिल गया तथा कृष के सिक्वल तथा इस फिल्म के तीन और सीक्वेल ने राकेश रोशन को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री दस सर्वश्रेष्ठ कामयाब बेहतरीन निर्देशको में शुमार कर दिया.
उनके बैनर द्वारा रितिक को हीरो लेकर बनाई सिर्फ एक फिल्म 'काइट' नहीं चली, लेकिन इससे पिता-पुत्र की इस जोड़ी ने फिल्में बनाने के रिस्क से डरे नहीं और अब रितिक रोशन को फिर से बतौर हीरो तथा संजय गुप्ता को बतौर निर्देशक लेकर उन्होंने फिल्म 'काबिल' का निर्माण किया. इस फिल्म को लेकर लोगों की उम्मीदें आसमान छूने लगी है क्योंकि इस फिल्म में रितिक, एक, एकदम अलग तथा डेरिंग रोल (एक अंधे व्यक्ति की भूमिका) निभा रहे हैं, जिसमें नायिका यामी गौतम भी अंधी है और इस फिल्म में उन दोनों नायक नायिका ने वह काम किया जो किसी भी फिल्म में नार्मल तरीके से एक्टर नहीं करते हैं. इस फिल्म से उम्मीदें और भी ज्यादा है क्योंकि यह फिल्म क्लैश कर रही है शाहरुख खान की फिल्म 'रईस' से.
राजेश रोशन का अपने पिता की तरह संगीत रचना में रुचि थी लेकिन उनके पिता ने अपने उसूलों के चलते राजेश को अपने बलबूते पर इंडस्ट्री में करियर बनाने दिया और उस वक्त सीनियर रोशन गर्व से भर उठे जब राजेश रोशन को उनकी काबिलियत के बलबूते पर कॉमेडी किंग महमूद ने अपनी फिल्म 'कुंवारा बाप' मे बतौर संगीतकार पहला ब्रेक दिया. महमूद ने आर डी बर्मन और वासु तथा मनोहारी को भी ब्रेक दिया था जो उस जमाने में एस डी बर्मन के सहायक थे.
राजेश रोशन द्वारा संगीत बद्ध उस फिल्म की अपार सफलता के चलते राजेश रोशन को साउथ इंडिया के पायोनियर तथा कई हिंदी फिल्मों के मेकर, बी नागी रेड्डी की फिल्म 'जूली' में सबसे बड़ा मौका मिला, जिसकी अपार सफलता सबको विदित है. राजेश रोशन फिल्में चुनने के मामले में बेहद चूजी हैं और उन्होंने देवानंद बासु चटर्जी राकेश कुमार और सर्वोपरि अपने भाई राकेश रोशन की फिल्मों में बेहतरीन संगीत दिया.अपने भाई राकेश रोशन के लिए उन्होंने हमेशा सर्वश्रेष्ठ संगीत की रचना को आरक्षित रखा. आज उनकी फिल्म 'काबिल' के गीत, सभी चार्ट के टाॅप पर हैं जो राजेश रोशन के संगीत की चर्चा कर रहे है.राजेश की कार्यप्रणाली में भले ही धीरता हो पर वे समय के अनुसार संगीत की रचना करते हैं. अब और क्या कहा जाए भारतीय सिनेमा के एडोनिस के बारे में.
मुझे याद है, कैसे वो (रितिक) नन्हा सा खूबसूरत बच्चा हमेशा अपने नाना, जे ओम प्रकाश तथा पापा राकेश रोशन के शूटिंग के सेट पर, सदैव कैमरे के पीछे के कामों में ज्यादा दिलचस्पी लेता था. उसे कभी भी एक्टर बनने में दिलचस्पी नहीं थी. यह बात उसने अपने पापा की फिल्म 'भगवान दादा' के सेट पर कही थी , जिसमें दक्षिण फिल्मों के आइकाॅन रजनीकांत नायक थे. तब यह सुनकर रजनीकांत ने कहा था, 'भले ही यह बच्चा इस वक्त कुछ भी कहे, लेकिन मुझे इसमें भविष्य का एक बहुत बड़ा स्टार नजर आ रहा है.' रितिक रोशन ने ना सिर्फ रजनीकांत की भविष्यवाणी को सही साबित किया बल्कि अपने करियर में सफलता की हर ऊंचाई और क्षितिज के आगे बढ़ गए. अपने पापा राकेश रोशन द्वारा निर्मित प्रत्येक फिल्म उनके लिए यकीनन स्पेशल फिल्म होती है और 'काबिल' भी उन्हीं में से एक बेहद खास फिल्म है. उन्होंने अपनी अच्छे भाव से आगे बढ़कर इस फिल्म में काम किया है और साबित कर दिया कि वे कितने मेहनती तथा काबिल एक्टर है.