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Comedian Birbal aka Satinder Kumar Khosla: हमे जो भूमिकाएं मिलती है उनमें दम नहीं होता

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By Mayapuri Desk
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Comedian Birbal aka Satinder Kumar Khosla: हमे जो भूमिकाएं मिलती है उनमें दम नहीं होता

हास्य-अभिनेता की जमायत में पिछले दो-तीन वर्षो से बीरबल एक सुपरिचित नाम है. आंखों पर मोटे फ्रेम के चश्मे के साथ उन्हें देखने पर ऐसा लगता है जैसे वह किसी काॅलेज के प्रोफेसर हैं लेकिन बावजूद इसके कि आप उन्हें प्रोफेसर समझें, वे फिल्मों में कॉमेडियन हैं. बीरबल दिल्ली के रहने वाले हैं और यहीं उनके पिता का पिं्रटिंग प्रेस हैं. वैसे मां-बाप शायद ही एकाध कहीं मिल जायें जो अपने बेटे को फिल्मों में अभिनय के लिए भेजते होंगे वरना अधिकांश तो अपने बेटे को फिल्म की छाया से भी दूर रखना चाहते हैं. बीरबल को भी फिल्मों से दूर रखने की कोशिश की गयी और पिता ने उन्हें प्रेस के कामों में लगाना अधिक उचित समझा लेकिन वे तो फिल्मों में एक्टर बनने के सपने देखते थे. फिल्में देखने का बेहद शौक होना ऐसी हालत में बेहद जरूरी है लेकिन बीरबल भी इस शौक के कायल रहे हैं. कहते हैं, 'किशोर कुमार की फिल्मों से मैं बहुत मौज लेता था और उनकी फिल्मों को मैं कई-कई बार देखा करता था. आप यकीन कीजिये कि 'चलती का नाम गाड़ी' को मैंने पूरे 22 बार देखा है, 'दिल्ली का ठग' 18 बार और 'प्यार किये जा' 19 बार. किशोर कुमार की उछल-कूद का अंदाज मुझे काफी प्रिय रहा है और उनकी एक्टिंग से मैंने अपने आपको बहुत प्रभावित महसूस किया है. किशोर कुमार के एक्टिंग की सबसे बड़ी खूबी यही है कि उसमें आदमी बोरियत नहीं झेलता. वे अपनी उछल-कूद के साथ दर्शकों को अपने साथ रखते हैं. बल्कि मैं तो यहां तक कहूंगा कि उनकी एक्टिंग में गतिशीलता है, कोई ठहराव नहीं. किशोर की रवानगी से भरपूर अदाएं मेरे लिए प्रेरणा बनीं और मैं भी उन्हीं की तरह अभिनय करके दर्शकों को हंसाने का सपना देखता था. फिल्मों में काम करने के अरमान रखता था.

लेकिन बीरबल के अरमान उस समय दम तोड़ने की हालत में होते जब उन्हें प्रेस जाना पड़ता और पिता की आज्ञाओं का बेमन से पालन करना पड़ता. व्यवसाय के सिलसिले में ही एक दिन बीरबल को अपने जीवन की राह तलाश करने में मदद मिली. पिता ने बीरबल को डायरी और अन्य स्टेशनरी चीजों के आर्डर बुक करने के लिए बंबई भेजा. बीरबल के लिए यह सुनहरा अवसर था और उन्हें ऐसा लगा जैसे बिना मांगे उनकी झोली में उनकी सारी कामनाएं दे दी गई हों. बंबई आकर डायरियों के आर्डर बुक करने के बदले बीरबल ने अपना आर्डर बुक करना शुरू कर दिया. व्यवसाय पीछे छूट गया और अपनी लगन आगे चली आयी. यह करीब 63-64 की बात है और इन्हीं वर्षो में बीरबल राज खोसला और राम दयाल जैसे लोगों से मिले. इन दोनों ने ही इस युवक के उत्साह को कम नहीं किया जाय. यह सोचकर अपनी-अपनी फिल्मों में बहुत छोटी भूमिकाएं भी दी. पिता को जब इसकी खबर मिली कि लड़का व्यवसाय करने के बदले फिल्मों के चक्कर में पड़ गया है तो उन्होंने बीमारी का इलाज शुरू में ही करना चाहा और बीरबल को दिल्ली से बंबई आकर अपने साथ वापस ले गये. लेकिन घर जाकर भी बीरबल की बीमारी कम नहीं हुई बल्कि अब तो उन्हें बंबई की हवा लग चुकी थी और जिसे एकबार यहां की हवा लग जाती है और फिल्म के नशे का मौज मिल जाता है वह आदमी कहीं का नहीं रहता और उसका इलाज सिर्फ बंबई में ही होता है. बीरबल के साथ भी यही बातें लागू होती हैं. बीरबल वापस '65 में बंबई आ गये थे और अपने उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में संघर्षरत हो गये.

बंबई फिल्म-उद्योग में यश और धन तो प्राप्त होता है लेकिन उसके पहले आदमी को अपनी बलि चढ़ानी पड़ती है. बीरबल ने भी अपनी बलि चढ़ायी है. एक स्थिति यह भी आयी जब कोट गिरवी रखना पड़ा. एक-एक फिल्म में सात-सात गेट-अप बदले लेकिन निर्माताओं ने बीरबल को बहला देना ही उचित समझा. एक वक्त तो ऐसा भी आया जब शूटिंग के लिए कालबा देवी से चैंबूर जाने तक के लिए भी जेब में पैसे नहीं बचे. और पूरे बीस मील का सफर पैदल ही तय करना पड़ा. लेकिन इस परीक्षा में बीरबल सफल हुए और उन्होंने हार नहीं मानी. इसी लगन का परिणाम यह निकला कि बीरबल को व्ही. शांताराम जैसे विश्व-विख्यात निर्देशक की फिल्म में काम करने का मौका मिला. इस फिल्म में बीरबल ने मुमताज के छोटे भाई की भूमिका निभायी है जो गांव का एक सीधा-सादा आदमी है. बीरबल का कहना है, 'अगर यह फिल्म चली होती तो मुझे काफी फायदा होता. लेकिन फिल्म नहीं चली. फिर भी इसी के कारण लोगों ने मेरे बारे में जाना जरूर. इस फिल्म में काम करने की मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी की बात यह है कि मुझे व्ही. शांताराम जैसे निर्देशक के साथ काम करने का मौका मिला. फिल्म चली अथवा नहीं, यह इस उपलब्धि के सामने बड़ी छोटी बात लगती है.'

'बूंद जो बन गई मोती' के बाद 'अनिता' शांतिसागर कृत 'दरार' 'बंधन' 'राम और श्याम' जैसी फिल्मों में काम करने का भी मौका मिला और भूमिकाएं जैसी भी मिलीं बीरबल ने उनमें अपनी तरफ से भरसक अच्छा करने की कोशिश की इधर हाल-फिलहाल में 'तपस्या' के बाद 'अनुरोध' और मनोज कुमार कृत ' शिरडी के साई बाबा' में बीरबल ने जमकर काम किया है. 'शिरडी के साई बाबा' में कॉमेडियन और विलेन दोनों चरित्र एक साथ ही सक्रिय हैं यानी एक ही चरित्र से लोग हंसते भी हैं और फिर उसे नफरत भी मिलती है. इस मुश्किल काम से भीतर की बेहद तसल्ली मिली है. इसके साथ 'अनुरोध' का अफीम के नशे में डूबा चरित्र जब भी पर्दे पर आता है लोग उसे देखकर जी भर कर हंसते हैं. इस तरह बीरबल अपने फिल्म-जीवन में विकास के रास्ते पर चलते हुए अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते दिखायी पड़ रहे हैं.

हिंदी फिल्मों में हास्य की स्थिति पर विचार व्यक्त करते हुए बीरबल का कहना है, 'वस्तुतः हमें जो भूमिकाएं दी जाती है उनमें दम नहीं होता. उटपटांग ढंग से चरित्र पेश किये जाते हैं और दृश्यों में वैसी स्थिति होती ही नहीं जिससे हास्य उत्पन्न हो. निर्देशक हमसे कहता है- यार ! कुछ ऐसा करो कि मजा आये. यह बात स्वयं निर्देशक भी नहीं जानता कि वह मुझसे क्या काम लेना चाहता है.' 'इसके साथ ही जहां हमें सही ढंग के चरित्र पेश किये जाते हैं, वहां हमारी भूमिकाओं में वजन होता है. ये चरित्र ऐसे होते हैं जिसके साथ कॉमेडी की स्थिति हमेशा जुड़ी होती है. उदाहरण के लिए 'अनुरोध' की कॉमेडी में मेरी सफलता का राज यही है कि मुझे एक ढंग का चरित्र दिया गया जहां हास्य की भरपूर गुंजाइश है, अगर यह गुजाइश नहीं होती तो मेरे चरित्र का वह प्रभाव कभी नहीं होता, जो है.

लेकिन सवाल यह उठता है कि ऐसी स्थिति क्यों है जिसमें हास्य-अभिनय की गुंजाइश नहीं. इसके कारणों की व्याख्या करते हुए बीरबल कहते हैं-"हमारे यहां फिल्म-उद्योग में बहुत कम निर्माता-निर्देशक ऐसे हैं जिन्हें वास्तविक हास्य की सही समझ हो. और, पटकथा लेखक के पास भी यही लाचारी है कि वह फिल्म में ज्यादातर हीरो और हीरोईन के दृश्यों में उलझा रहता है. हमारे लिए फिल्म में वह वही पुराने रटे-रटाये और पिटे-पिटाये मुहरें इस्तेमाल करता है, जो पचासों बार दर्शक देख चुके होते हैं. फिर भी बप्पी सोनी, राज खोसला, बासु चटर्जी, शक्ति सामंत, प्रमोद चक्रवर्ती और असित सेन जैसे गिने-चुने निर्देशक जरूर हैं, जो फिल्मों के हास्य दृश्यों के प्रति सचेत रहते हैं."

अक्सर यह देखा जाता है कि फिल्मों में हास्य कलाकारों को दूसरे दर्जे का कलाकार माना जाता है और फिल्म के नायक-नायिका की तुलना में उसके प्रति ज्यादा गंभीरता से नहीं सोचा जाता है. यह बात सही है अथवा गलत इसके बारे में बीरबल अपनी टिप्पणी पेश करते हुए कहते हैं "यह प्रश्न काफी उलझा हुआ है और इस पर ठीक ढंग से टिप्पणी नहीं पेश की जा सकती. यह सच है कि फिल्म में हीरो अथवा हीरोईन को ज्यादा महत्व दिया जाता है लेकिन हास्य कलाकारों को दूसरे दर्ज का कलाकार माना जाता है. इस बात से मुझे एतराज है. मसलन किसी भी फिल्म में हास्य-अभिनेता की अपनी जगह होती है. फिल्म का हीरो सिर्फ गाने गा सकता है और रोमांस कर सकता है, फाइट कर सकता है लेकिन हास्य-अभिनेताओं के जिम्मे बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है और वह जिम्मेदारी है लोगों को हंसाना. हीरो चाहे कितना बड़ा भी क्यों न हो लेकिन निर्देशक बिना हास्य अभिनेता के अपनी गाड़ी को पूरी तरह नहीं खींच सकता."

हिंदी फिल्मों में कॉमेडी के नाम ज्यादातर उछलने-कूदने की ही परंपरा चल पड़ी है. क्या इसे कॉमेडी माना जाये ? बीरबल कहते हैं-"मैं कब कहता हूं कि सिर्फ उछलना-कूदना कॉमेडी है लेकिन लोगों को हंसाने के लिए कुछ विचित्र किस्म की हरकत जरूर करनी पड़ती है. क्योंकि सामान्य स्थिति में रहकर दर्शकों को हंसाना मुश्किल है. परन्तु मेरे अनुसार सिर्फ उछल कूद की कॉमेडी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकती आज से दस-पंद्रह साल पहले इस तरह की हवा चली थी और थोड़ी देर के लिए लोगों ने उसमें अपनी दिलचस्पी भी बतायी लेकिन चूंकि उस तरह की कॉमेडी में भीतर से कुछ नहीं था इसलिए ठीक से बात जम नहीं पायी और वह कॉमेडी आज कहीं नहीं है."

अपने तौर पर हास्य-भूमिकाओं को लेकर हर हास्य कलाकार कुछ न कुछ सोचता है और बीरबल अपने बारे में बताते हुए कहते हैं. "कॉमेडी का मतलब है कि लोग हंसे और हमारे सामने सिर्फ दर्शकों को हंसाने का ही उद्देश्य होता है. किंतु जहां तक मैं सोचता हूं, कॉमेडी वैसी नहीं होनी चाहिये जिससे किसी को तकलीफ हो. मसलन हकलाने वाले लोगों की जब हम कॉमेडी करते हैं तो उस आदमी को जरूर तकलीफ होती है जो हकलाता है. फिर किसी एक्टर का मजाक भी उड़ाना अच्छी बात नहीं." 

हास्य कलाकार के रूप में बीरबल अपने दायरे के बारे में अच्छी समझ रखते हैं और हर विषय के बारे में गंभीरता से विचार करते हैं, यह बात बहुत कम हास्य-अभिनेता के साथ है. बीरबल को में उसी श्रेणी के हास्य कलाकारों में रख दूंगा. 'फांसी' 'चोर के घर चोर' 'ड्रीम गर्ल' 'आजाद' वकील बाबू' और 'बगला भगत' बीरबल की आगामी मुख्य फिल्में हैं. 

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