(राजस्थान सरकार की पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी की ओर से जोधपुर में राजस्थान उत्सव के अवसर पर प्रख्यात साहित्यकार प्रबोध कुमार गोविल को "बाल साहित्य मनीषी" सम्मान प्रदान किया गया. इस अवसर पर शिक्षाविद डॉ. सुशीला राठी ने उनसे साक्षात्कार कर बातचीत की. प्रस्तुत है इस बातचीत के कुछ अंश)
डॉ. सुशीला राठी: आपको "बाल साहित्य मनीषी पुरस्कार" से नवाजा़ गया है. बाल साहित्य सृजन आप कब से कर रहे हैं?
प्रबोध कुमार गोविल # वैसे तो बच्चों के लिए लिखना मैंने अपने विद्यार्थी काल में ही शुरू कर दिया था किंतु सोच समझ कर उद्देश्य पूर्ण लेखन की शुरुआत तब हुई जब मुझे अपनी अखिल भारतीय सर्विस में दिल्ली, मुंबई, कोटा, उदयपुर, कोल्हापुर, ठाणे, जबलपुर आदि कई नगरों में रहना पड़ा. कई बार परिवार से दूर भी. मुझे कालांतर में पता चला कि ऐसे में अपने परिवार तथा बच्चों से छपे शब्दों के ज़रिए की गई बातचीत ही मेरे द्वारा रचित बाल साहित्य के दायरे में विस्तार पाती जा रही है. लगभग पचास साल पहले आठवें दशक से ही ये आरंभ हो गया. मैं पराग, नंदन, देवपुत्र, बच्चों का देश आदि से लेकर कई प्रतिष्ठित अखबारों में भी लिखने लगा. धर्मयुग और साप्ताहिक हिंदुस्तान में भी मैंने बच्चों के लिए लिखा है.
डॉ. सुशीला राठी : वर्तमान में लिखे जा रहे बाल साहित्य के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
प्रबोध कुमार गोविल # वर्तमान में खूब लिखा जा रहा है. एक तो बच्चे ख़ुद लिख रहे हैं, दूसरे वयस्कों द्वारा बच्चों के लिए लिखा जा रहा है. एक विभाजन और भी है. कुछ लोग बच्चों की दुनिया चित्रित कर रहे हैं - फूल, पेड़, बगीचे, तितलियां, जीव- जंतु, खेल - खिलौने, मौसम यथा सर्दी- गर्मी- बरसात आदि ऋतुएं आदि इसका विषय बन रहे हैं. अर्थात ये केवल बच्चों का मनभावन संसार चित्रित करने का उपक्रम है. दूसरी ओर बच्चों को बौद्धिक, वैज्ञानिक, व्यापारिक, व्यावहारिक संसार के लिए तैयार करने के प्रेरक उद्यम भी हैं. दोनों ही महत्वपूर्ण हैं.
डॉ. सुशीला राठी: एक सफल बाल साहित्य लेखक होने के लिए आपके अनुसार क्या है जो लेखक में होना चाहिए?
प्रबोध कुमार गोविल # मुझे लगता है कि बाल साहित्यकार की भूमिका एक माली जैसी भूमिका है. उसे बीज को पौधा और पौधे को पेड़ बनाना है. बीज के लिए उपयुक्त ज़मीन का चयन, अंकुरण के बाद संरक्षण, पल्लवन के दौरान हिफाज़त और बाद में फूल फल को समुचित उपयोग की दिशा में जाने के लिए तैयार करना... सभी तो बाल साहित्यकार का दायित्व है. बच्चों को मिलने वाला मानसिक, बौद्धिक, पोषक वातावरण रचा जाना चाहिए. फूल, कांटे और फल का भेद बालक के कोमल मन में जो लेखक सहजता से रोप पाए वो सफल होगा ही. भाषा लेखक का अस्त्र है. उगती हुई सोच लेखक का प्लस प्वाइंट है. सकारात्मकता लेखक की आस्ति (एसेट) है. धैर्य, संस्कार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण लेखक के बटुए में धन की तरह है. नाकारात्मक शक्तियों से बचाव उसके लिए चुनौती है.
डॉ.सुशीला राठी: बाल साहित्य के सृजन में बाल मन की गहराइयों तक पहुंचना पड़ता है. आप वहां तक कैसे पहुंचते हैं?
प्रबोध कुमार गोविल # जैसे एक गोताखोर के पास सागर में उतरने के लिए कुछ सुरक्षा उपकरण होते हैं वैसे ही मेरे पास भी कुछ सामान है, जैसे - मेरे अपने बचपन की यादें, एक साफ़ शुद्ध भाषा, अब तक भी अपने को बच्चा समझने की ललक, शिक्षकों और घर परिवार से मिला संस्कार, सपनों को अनुभव की डिबिया में सहेज कर रखने का शौक़ आदि. मैं ये मानता हूं कि जीवन से बचपन निकल जाए तो बहुत कुछ निकल जाता है.
डॉ. सुशीला राठी : अब एक थोड़ा व्यक्तिगत सवाल... हमने तो वर्षों से बाल साहित्य ( मंगल ग्रह के जुगनू, उगते नहीं उजाले, याद रहेंगे देर तक आदि) के साथ - साथ आपके उपन्यास, कहानियां, कविताएं, संस्मरण, आत्मकथा, लघुकथाएं भी खूब पढ़ी हैं. क्या आप अपने को एक बाल साहित्यकार ही मानते हैं?
प्रबोध कुमार गोविल # यदि मैं कहूं कि आप एक अच्छी "वक्ता" हैं तो इसका अर्थ ये नहीं है कि आप अच्छे वक्तृत्व के साथ- साथ अच्छी गायिका, अच्छी शिक्षिका, अच्छी कारचालक, अच्छी तैराक या अच्छी खिलाड़ी नहीं हो सकतीं! ऐसे ही लेखक भी कई विधाओं में रचता है. बल्कि मुझे तो खुशी है कि अकादमी ने मेरे बहुविध साहित्य की भारी गठरी में से भी गुणवत्ता पूर्ण बाल साहित्य को पहचान लिया. मैं अकादमी का आभारी हूं और आपका भी, कि आपने ये प्रश्न पूछ कर मेरी दुविधा को हल करने का मुझे मौक़ा दिया. शुभकामनाएं और नमस्ते.