S. P. Balasubrahmanyam: मैं तो सारे हिन्दुस्तान का प्लेबैक सिंगर बनना चाहता हूँ

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By Mayapuri Desk
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S. P. Balasubrahmanyam: मैं तो सारे हिन्दुस्तान का प्लेबैक सिंगर बनना चाहता हूँ

बताइये, कौन सा दिन होता है जब ऑल इन्डिया रेडियो के किसी न किसी प्रोग्राम में ये गाने न बजते हों--'तेरे मेरे बीच में मैंने नहीं जाना तूने नहीं जाना कैसा है यह बंधन अनजाना' मेरे जीवन साथी प्यार किये जा'...... 'जवानी दीवानी खूबसूरत जिद्दी पड़ौसन सत्यम् शिवम् सुन्दरम्'..... यही नहीं, अब ये गाने गली कूचों में गूँजने लगे हैं. शादी ब्याह स्वागत समारोह और सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी इन गानों की धून रहती है. बिहार शरीफ के एक गाँव में एक दूल्हे ने यह 'शर्त रखी कि जब उसकी बारात के आगे बैंड बाजे वाले 'एक डिजे के लिए' गानों की धुन बजायेंगे तभी वह घोड़ी पर सवार होगा. यही क्यूँ, अब तो 'मैं इंतकाम लूंगा', 'एक ही भूल', 'जरा सी जिंदगी', 'सुगंध', 'अंधा कानून', 'रास्ते प्यार के' गानों के हिट होने पर यह आवाज भी ऐसी हिट हो गयी कि अब फिल्मवालों को मुहम्मद रफी साहब का अभाव नहीं खटकेगा. इस आवाज के अभ्युदय से रफी साहब के रिक्त स्थान की पूर्ति हो जायेगी. इस तरह की संभावना बम्बई के फिल्मी अंचलों में प्रगट की गयी है.

यह आवाज है पाश्र्व गायक बाला सुब्रहमण्यम की जो दक्षिण में बालू के नाम से विख्यात है. यह भले ही बम्बई फिल्मी दुनिया के लिए नयी आवाज को पर दक्षिण में पहले से ही एक लंबे समय से इस आवाज की धून मची हुई है.

कुछ ही दिनों पहले जब वे एक नयी फिल्म में फिल्म के हीरो कमल हासन के लिए प्लेबैंक देने आये तो अचानक की सन एण्ड सैंड होटल में मेरी उनसे मुलाकात हो गयी. मैंने परिचय देकर समय मांगा तो उन्होंने उसी दिन शाम को वहीं लाउंज पर मिलने के लिए कहा.

'आप मिलेंगे न?' मैंने यह शंका इसलिए प्रगट की कि उनके बारे में सुना है कि वे सुबह गाना गा कर शाम की फ्लाइट से साउथ छमंतर हो जाते हैं जहाँ उन्हें एक एक दिन में पाँच पाँच गाना, गाने पड़ते हैं.

मेरी शंका पर कुछ हल्के से आवेग में आकर उन्होंने कहा-'कमिटमेंट इज कमिटमेंट. मेरा एपाइंटमेंट किसी दुर्घटना के कारण ही रद्द हो सकता है वर्ना नहीं.'

और हुआ भी ऐसा ही. मैं अवश्य पाँच मिनट के लिए लेट हो गया था पर वे वहाँ ठीक साढ़े पाँच बजे पहुंच गये थे.

चाय नाश्ते की फॉर्मेलिटी से छुट्टी पाकर हम दोनों अपने अपने मकसद के लिए तैयार हो गये. इंटरव्यू की खिड़की खोलते हुए बिना किसी बोझ के उन्होंने सीधा कहा-'आप क्या खास पूछना चाहते हैं?'

'मैं खास और आम दोनों पूछना चाहता हूँ. पहले तो आप अपनी पृष्ठभूमि बता दीजिये. क्षमा करें, हमें आपके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है.'

'वह हो भी कैसे सकती है. हिन्दी फिल्मों में तो मैं अभी अभी आया हूं. पर हां साउथ में मैंने 1969 से ही गाना शुरू कर दिया था. सबसे पहले मैंने एम. जी. आर के लिए तमिल फिल्म 'अरसा कट्टालायी' के लिए गाया. फिर तेलगु फिल्मों के लिए गाना शुरू किया. वहां से कन्नड़ फिल्मों का प्लेबैंक सिंगर बना जब कि वह लेग्वेज मुझे नहीं आती. तमिल, तेलगु, कन्नड़ और उसके बाद मलायलम फिल्मों में गाते गाते मैं 'एक दूजे के लिए' हिन्दी फिल्म के साथ हिन्दी फिल्मों में आया. पिछले डेढ़ साल से अब लगातार साउथ की हिन्दी फिल्मों के लिए गा रहा हूं और उसी सिलसिले में मैं बम्बई आ रहा हूं.'

उनकी यह पृष्ठभूमि जानकर मैंने पूछा-' क्या गाने का शौक बचपन से ही रहा है ? क्या शास्त्रीय गानों की आपने बाकायदा ट्रेनिंग ली है?'

उन्होंने पूछ गये इस ज्ञातव्य पर बड़ी नम्रता से कहा-'गाने का शौक इतना जरूर था कि संगीत की महफिलों और प्रोग्रामों में जाया करता था और बड़े ध्यान से संगीत सुनता था. संगीत रस में डूब जाया करता था. पर गायक बनने का कभी ख्याल तक नहीं आया. मैं तो मैकेनिकल इंजीनियर बनने का सपना देखा करता था. एक बार लोकल कम्पीटीशन हुआ. पढ़ाई की छुट्टियां थी सो मैंने भी भाग ले लिया उसमें मैं अव्वल रहा. तभी वहाँ फिल्मों के डायरेक्टर कोडन्डापाणी ने पाश्र्व गायन के लिए बुलाया. पिताजी के मार्गदर्शन पर मैंने वह आॅफर मन में यह सोचकर स्वीकार कर लिया कि यदि उस दिशा में कामयाब रहा तो उसे अपना कैरियर बना लूंगा. वर्ना फिर से अपनी स्टडी शुरू कर दूंगा.'

'तो आप हिट हो गये?'

'यह सब कुदरत की बात है. मैंने कहीं भी क्लासिकल म्युजिक की बेसिक ट्रेनिंग नहीं ली पर क्लासिकल बेस के गाने बड़े मजे से गा लेता हूँ. शंकराभरण एक क्लासिकल राग है. उसी राग पर उसी के नाम से बनी फिल्म में जब उसके डायरेक्टर विश्वनाथ और म्युजिक डायरेक्टर महादेवन के जोर देने पर गाया तो एक अनहोनी कामयाबी मिल गयी. उसी फिल्म पर मुझे पिछले साल फिल्म फेयर अवार्ड मिला है.'

'सुना है आपको काफी अवार्ड  मिल चुके हैं?'

'ढे़रों ! दो बार स्टेट अवार्ड  और इस बार फिल्म फेयर अवार्ड  मिला है. वैसे अनेक क्लबों और फिल्म फैन सोसायटियों की ओर से अवार्ड  मिलते ही रहते हैं जुबली ट्राॅफियाँ तो इतनी मिली है कि सारा कमरा भर गया है. पर मैं सबसे बड़ा अवार्ड  अपनी पोप्पुलर्टी को मानता हूँ क्योंकि संगीत प्रेमियों का असवी अवार्ड  यही है. जब भी मेरा कोई गाना हिट होता है तो समझ लेता हूं कि वही राष्ट्रीय अवार्ड अवार्ड है.'

'एक दूजे के लिए' जब आपने लता मंगेशकर के साथ गाया तो कैसा लगा?

'शी इज एन्जल्स.' शी इन डिवाइन पहले तो मैं अपनी लाइनें ही भूल गया था पर चूंकि वह मेरे लिए चुनौती थी और जिंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा. मैंने अपने को सम्हाल लिया और हिम्मत से पास हो गया. भगवान की मेहरबानी से उस फिल्म के सारे गानें हिट हो गये. हिन्दी फिल्मों में उस कामयाबी के कारण मुझे इजीली इन्ट्रेस मिल गया. अब मैं जितेन्द्र और कमल हासन की आवाज के लिए एकदम फिट माना गया हूं. धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना के लिए गाना गा रहा हूं. आर. डी. बर्मन. बप्पी लहरी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसे म्यूजिक डायरेक्टर्स मुझे बराबर यहां बुला रहे हैं.'

'तो आप किशोर कुमार की छुट्टी करने वाले हैं जिस तरह आपने यसूदास की छुट्टी कर दी.'

'यह कहना और सोचना गलत है कोई किसी की छुट्टी नहीं करता. किशोर कुमार अपने आप ग्रेट आर्टिस्ट और सिंगर है. मैंने तो उनकी 'पड़ौसन' के तेलगू रिमेक में उनका ही पार्ट किया है मैं तो उनका फैन हूं. इसी तरह यसूदास की आवाज मैं नहीं हो सकता और मेरी आवाज यसूदास की आवाज नहीं हो सकती.'

'आपने कुछ तेलगू फिल्मों में म्यूजिक डायरेक्शन भी तो दिया है. क्या आप हिन्दी फिल्मों में म्युजिक डायरेक्शन देने का सपना नहीं देखते?'

'नहीं ! मेरा मुख्य प्रोफेशन प्लेबैंक ही है. ऐसे शौकिया मैं म्यूजिक डायरेक्शन कर लेता हूं पर प्रोफेशनली नहीं. जब लक्ष्मीकांत प्यारेलाल बहुत ज्यादा बिजी थे तब उनके कहने पर मैंने सुरिन्दर कपूर की 'हम पाँच' के लिए बैक ग्राउंड म्युजिक दिया. मैं कमल हासन के लिए डबिंग भी कर लेता हूं पर एक भी पैसा नहीं लेता. यह सब रिलेशन्स की बातें हैं प्रोफेशन की नहीं.'

'अच्छा तो बताइये पाश्र्व गायन के प्रोफेशन में आपका अल्टीमेट मकसद या सपना क्या है?'

इस पर एस. पी. बाला सुब्रहमण्यम ने कहा-'मैं सारे हिन्दुस्तान का प्लेबैक सिंगर बनना चाहता हूं. लोग मुझे अब तक केवल साउथ का मानते हैं मैं यह ठप्पा मिटाना चाहता हूं. मैं तमिल तेलगू कन्नड़, मलायलम, हिन्दी फिल्मों के अलावा मराठी, गुजराती, बंगाली, रिजल फिल्मों में भी प्लेबैक देकर नाम कमाना चाहता हूं. चाहता हूं कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक मेरे गाये गानों की धूम मची रहे.'

कहकर उन्होंने रिस्टवाच की ओर देखा. उन्हें किसी के आने की प्रतीक्षा थी. मैं आगे कुछ पूछने जा ही रहा था कि लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के घर से एक आदमी उन्हें लिवाने आ गया. उनके घर दावत थी वे उठ खड़े हुए. कई सवाल मेरे मन में गहरा कर रहे गये.

जो हो उनसे बातें करने से यह बात स्पष्ट हो गयी कि वे सुलझे हुए गायक है और कामयाबी का उन्हें लेशमात्र भी हैंगओवर नहीं है.

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