सेंसर बोर्ड ने निर्देशक सचिन गुप्ता की फिल्म पाखी को प्रमाण पत्र देने से इंकार कर दिया है। पाखी के प्रमाणीकरण पर सेंसर की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है कि बाल तस्करी और यौन हमले के आसपास घूमती इस फिल्म में, इस विषय को बहुत ही अपरिष्कृत तरीके से दर्शाया गया है। इसलिए जांच समिति ने फिल्म का प्रमाणन करने से इंकार कर दिया है।
पाखी एक सोशियल क्राइम ड्रामा फिल्म है जिसने हाल के दिनों में मीडिया में सुर्खियों मिली थी और राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित गया था। इस फिल्म को १० अगस्त २०१८ को रिलीज होना था। लेकिन सेंसर सर्टिफिकेट न मिलाने के कारण अब फिल्म की रिलीज आगे बढ़ा दी गयी है।
निर्माता का दावा है कि फ़िल्म पाखी सोशल क्राइम ड्रामा फ़िल्म है जो बच्चों के अवैध व्यापार ( चॉइल्ड ट्रैफिकिंग) जैसी सामाजिक बुराइयों से जुडी सत्य घटनाओं पर आधारित है। पिछले एक दशक से देश के कई हिस्सों में महिला अत्याचार और बाल शोषण की खबरों ने सुर्खियाँ बनायीं है ऐसे माहौल में फ़िल्म पाखी बच्चों के अवैध व्यापार (चॉइल्ड ट्रैफिकिंग) बहुत ही महत्पूर्ण समस्या की तरफ ध्यान आकर्षित करती है।
पहले भी सामाजिक अपराध के आधार पर फिल्म बनाई गई थी
सेंसर सर्टिफिकेट के इनकार पर, फिल्म निदेशक सचिन गुप्ता कहते हैं, 'यह वास्तव में चौंकाने वाला है कि सेंसर बोर्ड ऐसे सामाजिक अपराध ड्रामा को प्रमाणित करने से इंकार कर रहा है। फिल्म में न तो अपमानजनक भाषा है और न ही हिंसा है, लेकिन फिर भी सेंसर ने प्रमाणित करने से मना कर दिया गया है। पहली बार ऐसी सामाजिक अपराध ड्रामा फिल्म नहीं आ रही है। इससे पहले भी सामाजिक अपराध के आधार पर फिल्म बनाई गई थी और सेंसर प्रमाणपत्र मिला है । अब फिल्म को संशोधित समिति ( रिवाइजिंग कमेटी ) के लिए आवेदन किया गया है। '
सेंसर बोर्ड की टिपण्णी से साफ़ है कि पाखी में एक संजीदे विषय को बेहद अपरिष्कृत ढंग से फिल्माया गया है। यानि, फिल्म को समाज पर प्रभाव डालने के लिहाज़ से बनाने के बजाय इस अपराध को सिर्फ दिखाने का इरादा था। आजकल, बॉलीवुड में बालिका यौन शोषण, तस्करी और बलात्कार, आदि विषयों को उठा तो लिया जाता है। लेकिन फिल्मांकन बेहद बचकाने ढंग से होता है। ऐसी फिल्में सिर्फ विषय भुनाने के ख्याल से ही बनाई जाती है।