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Sharmila Tagore: बढ़ी उम्र विवशता नहीं, सोचने और विशेष काम करने का मौका लेकर आती है

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By Sharad Rai
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Sharmila Tagore: बढ़ी उम्र  विवशता नहीं, सोचने और विशेष काम करने का मौका लेकर आती है

सीनियर एक्ट्रेस शर्मिला टैगोर इनदिनों पर्दे पर बहुत कम नजर आती हैं. पिछले दिनों वह फिल्म 'गुलमोहर' में मनोज बाजपेयी के साथ काम करते हुए नजर आयी थी. तब उन्होंने कहा था कि वह रिटायर नहीं हुई हैं वह लगातार काम करती रहती हैं.काम करने का मतलब सिर्फ पर्दे पर एक्टिंग करते हुए दिखाई देना ही नहीं है. वह कहती हैं-  "बढ़ी उम्र भार नही होता, विवसता नही होती, यह उम्र एल्डरली पीपल के लिए कुछ सोचने और विशेष काम करने का मौका होता है."

शर्मिला टैगोर  खुद की व्यस्तता को लेकर कहती हैं कि वह कभी भी खाली नहीं रहती. तमाम कार्यो से खुद को जोड़कर रखती हैं. वह  ब्रॉड कास्टिंग कंटेंट  कम्प्लेन कौंसिल (BCCC) से जुड़ी  हैं. निर्माताओं को सुझाव देती हैं, लोगोंकी कम्प्लेन सुनती हैं. वह मानती हैं कि व्यवसायिकता सबके आड़े आती है. टीवी धारावाहिकों में लगता है कि औरत ही औरत की दुश्मन है.हम निर्माताओं को बोलते हैं कि इतना भी मत करो. जब उन्हें समझाओ तो उनके तर्क मानने जैसे नहीं होते. वह व्यापार की मजबूरी बताते हैं. 

मैं मानती हूं कि व्यक्ति किसी भी फिल्ड में कर सके उसको काम करता रहे, यह जरूरी है. जरूरी नही की मैं सिनेमा ने हूं तो सिनेमा में एक्टिंग ही करते बैठी रहूं. मैंने लोगों को कहते सुना है कि उनके बेटे बहू विदेश में हैं और वह निराश्रित हो कर अकेले रह रहे हैं. इस तरह से सोचने वालों को मै कहूंगी की वे खुद को निराश्रित क्यों मानते हैं? उनको अपने दोस्तों के साथ रेपो बनाना चाहिए, अपने ग्रुप में सपोर्ट सिस्टम बनाना चाहिए. बेटे बहू की अपनी जिंदगी है, आपकी अपनी जिंदगी है. उन्हें उनकी जिंदगी जीने दो, तुम अपनी जिंदगी जीओ. तनाव नही लोगे तो जिंदगी खुशहाल रहेगी. हमको उम्र को मुड़कर देखना होगा कि हम उसको किस तरह ले रहे हैं. अपने बुढ़ापे को बर्डेन या अपने काम को गिरावट के रूप में देखना बंद करिए. बुढापा वो समय है जब कुछ नया सीखा जा सकता है. जो पहले नही कर पाए थे वो काम सीखो, करो, अपनी उन इच्छाओं को पूरा करने का समय है बुढापा. मैं  इनदिनों  खुद पर्दे की एक्टिंग कम करती हूं तो मुझे समय मिलता है बहुत सारा काम करने के लिए.अपनी उन इच्छाओं को पूरी करती हूं जो पहले नहीं कर पाई थी. 

शर्मिला टैगोर उनलोगों की सोच के खिलाफ अपनी राय रखती हैं जो बुढ़ापे की लाठी की बात करते हैं. यह पूछना भी गलत है कि आप ठीक हो ? बुढापा है तो क्या हुआ उनके पास भी दिमाग होता है. उनको कुछ करने के लिए इंस्पायर करना चाहिए, उनको कमजोर बनाने वाली बातें नहीं करना चाहिए.

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